इटली का एकीकरणइतिहासविश्व का इतिहास

काउण्ट कैवूर कौन था

काउण्ट कैवूर कौन था

काउण्ट कैवूर का जन्म 1810 में ट्यूरिन (सार्डीनिया) के एक कुलीन परिवार में हुआ था। सैनिक शिक्षा प्राप्त कर वह सेना में इंजीनियर के रूप में भर्ती हुआ, किन्तु अपने उदार विचारों के कारण 1831 में उसे सैनिक सेवा से त्याग पत्र देना पङा। इसके बाद वह 15 वर्ष तक अपनी जमींदारी संभालता रहा।

इसी काल में उसने फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि की यात्राएँ कर राजनीति का ज्ञान प्राप्त कर लिया। इंग्लैण्ड में रहकर उसने वहाँ की संसदीय प्रणाली का अध्ययन किया, जो उसे बहुत पसंद आई और अपने देश में भी इसी प्रकार की व्यवस्था स्थापित करने का प्रयत्न किया।

काउण्ट कैवूर

1846 में कैवूर ने कृषि की उन्नति के लिये एक समिति बनाई। आगे चलकर इस समिति का कार्यालय राजनैतिक वाद-विवादों का केन्द्र बन गया।1837 में उसने इल रिसर्जिमेण्टो नामक उदारवादी समाचार-पत्र निकाला तथा इसके माध्यम से अपने देश के एकीकरण और सुधारों के लिये प्रचार करना आरंभ कर दिया।

1848 में वह पीडमाण्ट-सार्डीनिया की प्रथम संसद का सदस्य चुना गया। देश में बार-बार चुनाव हुए, किन्तु कैवूर हर बार निर्वाचित होता रहा। उसकी योग्यता के कारण 1850 में उसे वित्त एवं उद्योग मंत्री नियुक्त किया गया। 1852 में डी एजेग्लिओ के मंत्रिमंडल द्वारा त्याग पत्र देने पर विक्टर इमेनुअल ने उसे प्रधानमंत्री बनाया।

कैवूर का यह निश्चित मत था, कि इटली की स्वाधीनता और एकता के कार्यों के लिये पीडमाण्ट का सेवाय राजवंश ही देश का नेतृत्व कर सकता है। वह पीडमाण्ट को एक आदर्श राज्य का रूप देना चाहता था, ताकि इटली के अन्य राज्य उसे अपना नेता मान लें।

कैवूर के राजनैतिक विचार एवं उद्देश्य

कैवूर भी मेजिनी के समान सच्चा देशभक्त था तथा उसका लक्ष्य भी वही था, जो मेजिनी का था, किन्तु इटली का एकीकरण किस प्रकार किया जाय तथा उस एकीकृत इटली का स्वरूप क्या हो, इस संबंध में उसके विचार मेजिनी के गणतंत्र से भिन्न थे। मेजिनी कल्पनाशील था, जबकि कैवूर व्यावहारिक था। कैवूर राजतंत्र का प्रबल समर्थक था और उसे मेजिनी के गणतंत्रीय विचारों एवं क्रांतिकारी साधनों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी।

कैवूर अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु तलवारबाजी के पैंतरों के स्थान पर राजनैतिक दाँव पेच और कूटनीति में अधिक विश्वास रखता था। वह इटली की समस्या को अंतर्राष्ट्रीय समस्या बना देना चाहता था। वह आस्ट्रिया को इटली से बाहर धकेलने के लिये यूरोप की किसी महाशक्ति से सहानुभूति प्राप्त करना चाहता था।

इस संबंध में भी उसका दृढ विश्वास था, कि आस्ट्रिया के विरुद्ध यदि कोई देश इटली को सहायता दे सकता है तो वह केवल फ्रांस ही है। उसने कहा भी था कि हम चाहें या न चाहें, किन्तु हमारा भाग्य फ्रांस पर निर्भर करता है। वह इस तथ्य से भली भाँति परिचित था, कि यदि पीडमाण्ट सार्डीनिया को इटली के स्वाधीनता संग्राम में नेतृत्व करना है तो उसे आर्थिक एवं सैनिक दृष्टि से सुदृढ बनाना होगा तथा जनता का विश्वास प्राप्त करने हेतु पीडमाण्ट का शासन उदार होना चाहिये।

इटली का एक अन्य देशभक्त गैरीबाल्डी भी था जो मूलतः कुशल सैनिक था। केटलबी ने लिखा है कि, वह कैवूर के महान मस्तिष्क का कार्य था, जिसने मेजिनी की प्रेरणा को कूटनीतिक शक्ति के रूप में गतिमान बनाया तथा गैरीबाल्डी की तलवार का एक राष्ट्रीय शस्र के रूप में प्रयोग किया। कैवूर अपनी कूटनीति से अपनी योजना को एक के बाद एक पूरी करता गया तथा आस्ट्रिया के चारों ओर ऐसा जाल बिछाया कि आस्ट्रिया इस कूटनीतिक जाल में फँसे बिना न रह सका और इटली का एकीकरण रुक नहीं सका।

वस्तुतः कैवूर के बिना मेजिनी का आदर्शवाद तथा गैरीबाल्डी का सैनिकवाद निर्थक सिद्ध होता। कैवूर ने अपनी कूटनीति में इन दोनों का उचित सामंजस्य स्थापित किया।

कैवूर की आंतरिक नीति

कैवूर ने इंग्लैण्ड की संसदीय प्रणाली के आधार पर पीडमाण्ट-सार्डीनिया को भी पूर्णतः वैधानिक राज्य बनाने का प्रयत्न किया। उसने स्वशासी संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया, जिससे कि स्वतंत्र राजनैतिक जीवन का विकास हो सके। कैवूर ने पीडमाण्ट-सार्डीनिया की कानून व्यवस्था पर भी ध्यान दिया तथा आठ वर्षों में विधि संबंधी सुधारों को पूर्ण कर दिया। वह जानता था, कि इटली के स्वाधीनता संग्राम में पीडमाण्ट को इटली के अन्य राज्यों के सहयोग की आवश्यकता होगी।

इटली के अन्य राज्यों के शासकों से सहयोग प्राप्त करना कठिन था, अतः उसने इन राज्यों के प्रगतिशील विचारों के लोगों का सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न किया। उसने इटली की उन सभी संस्थाओं से निकट संपर्क स्थापित किया जो इटली की स्वाधीनता के लिये उत्सुक थी। कैवूर के प्रयत्नों से पीडमाण्ट को मेजिनी जैसे गणतंत्रवादियों, गैरीबाल्डी जैसे क्रांतिकारियों, कार्बोनेरी जैसी गुप्त संस्थाओं तथा युवा इटली जैसी अनुशासित संस्थाओं का सहयोग प्राप्त हुआ।

कैवूर ने राज्य की आर्थिक उन्नति के उद्देश्य से उद्योग, व्यापार और कृषि के विकास के लिये अथक प्रयास किया। उसने मुक्त व्यापार की नीति के आधार पर पङोसी राज्यों से व्यापारिक संधियाँ की, जिससे जीवन की आवश्यक वस्तुएँ सरलता से उपलब्ध होने लगी। उसने कारखानों को सरकारी सहायता दी तथा रेलों, सङकों और नहरों का विकास किया।

नए बैंक स्थापित किये गये तथा सरकारी समितियाँ स्थापित की गयी। कृषि के लिय ऋण आदि का प्रबंध किया। बंजर भूमि को खेती योग्य बनाया गया। राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने के लिये वित्त विभाग में भी सुधार किये गये। कुछ नए कर लगाकर राज्य की आय में वृद्धि की गयी। सेना के संगठन में सुधार किये तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में किलेबंदी की गयी। शिक्षा की उन्नति के लिये अनेक कदम उठाए गये।

उसने गिरजाघरों की भूमि पर कल लगाया। चर्च के प्रभाव और उनके विशेषाधिकारों को कम करने का प्रयत्न किया। कैथोलिक, इटली की एकता के विरुद्ध थे, अतः उन्हें राज्य से निकाल दिया गया और चर्च के मठों को समाप्त कर दिया गया।

कैवूर की इस आंतरिक नीति के परिणामस्वरूप पीडमाण्ट एक समृद्ध, सुदृढ एवं सशक्त राज्य बन गया। इटली के सभी लोग पीडमाण्ट की प्रशंसा करने लगे। यद्यपि उसके आंतरिक सुधारों के आधार पर ही उसके प्रगतिशील एवं योग्य मंत्री होने का श्रेय प्राप्त हो जाता, किन्तु इटली के एकीकरण संबंधी कार्यों तथा उसकी विदेश नीति की सफलता के कारण उसके आंतरिक सुधारों की ओर प्रायः ध्यान नहीं दिया जाता है।

कैवूर की विदेश नीति

इटली के एकीकरण के लिये आस्ट्रिया के प्रभुत्व से मुक्त होना तथा पीडमाण्ट के शासन की अध्यक्षता में उसे संगठित करना, कैवूर की विदेश नीति का मूल उद्देश्य था। कैवूर, मेजिनी तथा कुछ अन्य लोगों के इस विचार से सहमत नहीं था, कि अकेला इटली बिना किसी बाह्य सहायता के, ऑस्ट्रिया को इटली से बाहर धकेल देगा। कैवूर का निश्चित मत था कि, किसी यूरोपीय महाशक्ति की सहायता के बिना ऑस्ट्रिया के प्रभाव से मुक्त होना संभव नहीं है।

इसलिये वह कोई शक्तिशाली मित्र की खोज करना चाहता था तथा इसके साथ ही वह इटली के प्रश्न पर यूरोपीय राज्यों की सहानुभूति भी प्राप्त करना चाहता था। यद्यपि इस नीति को कार्यान्वित करना अत्यन्त कठिन कार्य था, तथापि कैवूर ने कठिनाइयों का बङी दृढता से सामना किया तथा अपने लक्ष्य के लिये डटा रहा। सर्वप्रथम उसका प्रयास यह रहा कि इटली की समस्या को अंतर्राष्ट्रीय समस्या का रूप दे दिया जाय ताकि यूरोपीय महाशक्तियों की सहानुभिति प्राप्त की जा सके और तत्पश्चात उनसे मित्रता की जा सके।

इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये कैवूर ने विदेश नीति के क्षेत्र निम्नलिखित कार्य किये

क्रीमिया का युद्ध और कैवूर

कैवूर इस बात को भली – भाँति जानता था कि फ्रांस और इंग्लैण्ड ही इटली के एकीकरण में सहायक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिये उसने फ्रांस और इंग्लैण्ड के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में इटली के देशभक्तों के लेख प्रकाशित करवाए, जिससे दोनों देशों की इटली के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गयी। दूसरा अवसर उसे उस समय मिला जब ऑस्ट्रिया ने इटली में स्थित लोम्बार्डी और वेनेशिया के निर्वासित क्रांतिकारियों की संपत्ति पर अधिकार कर लिया। कैवूर ने इसका विरोध किया तथा उसने संपत्ति को वापस दिलाने का प्रयत्न किया।

यद्यपि उसे अपने प्रयत्नों में सफलता तो नहीं मिली, किन्तु फ्रांस और इंग्लैण्ड ने कैवूर के इस कार्य का विरोध किया तथा उसने संपत्ति को वापस दिलाने का प्रयत्न किया। यद्यपि उसे अपने प्रयत्नों में सफलता तो नहीं मिली, किन्तु फ्रांस और इंग्लैण्ड ने कैवूर के इस कार्य का समर्थन किया। इंग्लैण्ड और फ्रांस की सहानुभूति प्राप्त करने का अवसर क्रीमिया युद्ध ने भी प्रदान किया। इंग्लैण्ड और फ्रांस 1854 से रूस के विरुद्ध टर्की के पक्ष में इस युद्ध में संलग्न थे।

कैवूर यूरोप के राजनैतिक मंच पर इंग्लैण्ड और फ्रांस के मित्र के रूप में आना चाहता था, अतः बिना किसी शर्त के क्रीमिया के युद्ध में रूस के विरुद्ध फ्रांस और इंग्लैण्ड को सहायता देना कैवूर की महान कूटनीतिज्ञता एवं दूरदर्शिता थी।

युद्ध की समाप्ति के पश्चात यूरोपीय महाशक्तियों का पेरिस में सम्मेलन हुआ। कैवूर को भी इंग्लैण्ड, फ्रांस, आस्ट्रिया तथा रूस के प्रतिनिधियों के साथ सम्मेलन में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। यद्यपि पीडमाण्ट को आमंत्रित करने का आस्ट्रिया ने विरोध किया, किन्तु इंग्लैण्ड और फ्रांस ने उसके विरोध के बावजूद सार्डीनिया को सम्मेलन में आमंत्रित किया। सार्डीनिया की ओर से कैवूर ने सम्मेलन में भाग लिया। उसने सम्मेलन में इटली की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का चित्र प्रस्तुत किया तथा इसके लिये आस्ट्रिया को उत्तरदायी ठहराया गया। ब्रिटिश विदेश मंत्री ने कैवूर के भाषण का समर्थन किया।

आस्ट्रिया की उपस्थिति में ही यूरोप के राजनीतिज्ञों ने इटली के प्रश्न पर विचार किया। कैवूर ने इटली के प्रति आस्ट्रिया की नीति की कटु आलोचना करते हुये यूरोप के राजनीतिज्ञों को वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया। अपनी कूटनीति से उसने न केवल इंग्लैण्ड और फ्रांस की सहानुभूति प्राप्त की वरन सम्मेलन में आए सभी अन्य राष्ट्रों का ध्यान भी इटली की समस्या की ओर आकर्षित किया।

कैवूर ने इटली के प्रश्न को एक यूरोपीय प्रश्न बना दिया। पेरिस सम्मेलन में कैवूर की यह महान विजय थी, जिसके फलस्वरूप संपूर्ण इटली में उसकी प्रतिष्ठा बढ गयी।

पेरिस सम्मेलन में कैवूर के भाषणों से आस्ट्रिया को गहरा आघात लगा, फलस्वरूप उसने इटली के प्रति समझौतावादी नीति अपनाई। लोम्बार्डी और वेनेशिया में अपने शासन की कठोरता में कमी कर दी तथा निर्वासित क्रांतिकारियों की संपत्ति को जब्त करने के आदेश वापस ले लिये।

सम्राट ने अपने भाई मेक्समिलियन को जो उदारवादी था, लोम्बार्डी, वेनेशिया का गवर्नर नियुक्त किया, किन्तु इससे इटली के देशभक्तों का विरोध कम नहीं हुआ, क्योंकि वे यह नहीं चाहते थे, कि आस्ट्रिया अपनी इटली संबंधी नीति में सुधार करे बल्कि वे तो चाहते थे, कि आस्ट्रिया इटली से निकल जाये।

प्लोम्बियर्स का समझौता

कैवूर इस तथ्य से भी परिचित था, कि इंग्लैण्ड की सहानुभूति इटली के प्रति अवश्य है, किन्तु वह इटली को आस्ट्रिया के विरुद्ध कोई सक्रिय सहायता देने के लिये तैयार नहीं था, क्योंकि इंग्लैण्ड वियना कांग्रेस की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता था। अतः कैवूर ने फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय को अपनी ओर मिलाने के प्रयत्न कर दिये। उसने नेपोलियन से सहायता प्राप्त होने की आशा भी थी, क्योंकि नेपोलियन की नसों में इटालियन परिवार का रक्त बह रहा था।

वह इटली के विद्रोहों में सक्रिय भाग ले चुका था और वह वियना व्यवस्था के भी विरुद्ध था। जून, 1858 में नेपोलियन तृतीय सार्डीनिया की सीमा के निकट स्थित प्लोम्बियर्स पहुँच गया। 21 जुलाई, 1858 को कैवूर ने उसके साथ गुप्त मंत्रणा की, जिसके फलस्वरूप फ्रांस और सार्डीनिया के बीच एक गुप्त समझौता हुआ।

इस समझौते के अनुसार निम्नलिखित बातें तय हुई

नेपोलियन ने वचन दिया कि साहर्डीनिया और आस्ट्रिया के बीच युद्ध होने पर फ्रांस सार्डीनिया के राज्य में मिला लिये जाएँगे। अम्ब्रिया और टस्कनी को मिलाकर एक नया राज्य बनाया जाएगा तथा नेपोलियन के चचेरे भाई जेरोम बोनापार्ट को वहां का शासक बनाया जाएगा। नेपिल्स तथा सिसली के राज्य तथा पोप के राज्य को पूर्ववत रखा जायेगा। इस प्रकार इटली को चार राज्यों में विभाजित कर उसका एक संघ बनाने की योजना बनाई गयी।

विक्टर इमेनुअल की पुत्री का विवाह जेरोम बोनापार्ट के साथ होना निश्चित हुआ।

यद्यपि कैवूर यह नहीं चाहता था, कि इटली के चार टुकङे हो जाएँ, किन्तु आस्ट्रिया के विरुद्ध फ्रांस की सहायता को आवश्यक समझते हुये उसने इन शर्तों को स्वीकार कर लिया था। नेपोलियन भी इटली की स्वाधीनता तो चाहता था, किन्तु वह इटली का एकीकरण नहीं चाहता था। विक्टर इमेनुअल अपनी पुत्री का विवाह जेरोम बोनापर्ट से करना नहीं चाहता था, किन्तु कैवूर के समझाने पर वह तैयार हो गया।

आस्ट्रिया से युद्ध

प्लोम्बियर्स में यह भी तय किया गया था, कि आस्ट्रिया को भङकाकर इस प्रकार युद्ध आरंभ किया जाय कि आस्ट्रिया आक्रामक लगे तथा सार्डीनिया आत्म रक्षा के लिये लङने वाला प्रतीत हो। कैवूर ने प्लोम्बियर्स से लौटते ही युद्ध की तैयारी आरंभ कर दी। पीडमाण्ट के समाचार-पत्रों में आस्ट्रिया की कटु आलोचना की जाने लगी। इधर कैवूर ने इटली स्थित आस्ट्रिया के मस्स और फर्रारा में विद्रोह करवा दिया, जिससे स्थित तनावपूर्ण हो गयी और ऐसा प्रतीत होने लगा कि सार्डीनिया और आस्ट्रिया के बीच युद्ध अवश्यम्भावी है।

प्लोम्बियर्स में यह भी तय किया गया था, कि आस्ट्रिया को भङकाकर इस प्रकार युद्ध आरंभ किया जाय कि आस्ट्रिया आक्रामक लगे तथा सार्डीनिया आत्म रक्षा के लिये लङने वाला प्रतीत हो। कैवूर ने प्लोम्बियर्स से लौटते ही युद्ध की तैयारी आरंभ कर दी। पीडमाण्ट के समाचार-पत्रों में आस्ट्रिया की कटु आलोचना की जाने लगी। इधर कैवूर ने इटली स्थित आस्ट्रिया के मस्स और फर्रारा में विद्रोह करवा दिया, जिससे स्थित तनावपूर्ण हो गयी और ऐसा प्रतीत होने लगा कि सार्डीनिया और आस्ट्रिया के बीच युद्ध अवश्यम्भावी है।

अतः ब्रिटेन ने सार्डीनिया और आस्ट्रिया के बीच समझौता कराने हेतु यूरोपीय कांग्रेस आमंत्रित करने का सुझाव रखा। आस्ट्रिया ने इस प्रस्ताव को इस शर्त पर स्वीकार किया कि कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व सार्डीनिया का निःशस्रीकरण हो जाना चाहिये। सार्डीनिया का कहना था, कि पहले आस्ट्रिया की सेना अपनी सीमा में चली जाय, अतः ब्रिटेन का प्रस्ताव असफल रहा।23 अप्रैल, 1859 को आस्ट्रिया ने सार्डीनिया को अल्टीमेटम भेजा कि तीन दिन के भीतर निःशस्रीकरण कर दे, अन्यथा उसके विरुद्ध युद्ध छेङ दिया जायेगा।

इससे कैवूर खुशी से उछल पङा, क्योंकि जो वह चाहता था, वही हुआ। आस्ट्रिया ने आक्रामक नीति अपनाई जबकि सार्डीनिया अपनी आत्म रक्षा के लिये तैयार हो गया। कैवूर ने आस्ट्रिया के अल्टीमेटम को छुकरा दिया। 29 अप्रैल, 1859 को आस्ट्रिया ने सार्डीनिया पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में विक्टर इमेनुअल ने स्वयं अपनी सेना की कमान संभाली। 3 मई, को नेपोलियन तृतीय ने भी आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

फ्रांस और सार्डीनिया की संयुक्त सेना ने 4 जून, को मेजेण्टा में तथा 24 जून को सालफरीनो में आस्ट्रिया की सेनाओं को पराजित किया। लोम्बार्डी पर सार्डीनिया का अधिकार हो गया। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अब वेनेशिया पर भी इटली का अधिकार हो जाएगा तथा इटली पर आस्ट्रिया का प्रभुत्व समाप्त हो जाएगा, किन्तु नेपोलियन तृतीय ने सार्डीनिया से बिना पूछे युद्ध बंद करने का निश्चय कर लिया।

विलाफ्रेंका की संधि

आस्ट्रिया की पराजय से इटली के सभी राज्यों की जनता सार्डीनिया से संबद्ध होने के लिये उत्तेजित हो उठी तथा एक शक्तिशाली राज्य के रूप में इटली के उदय होने के लक्षण दिखाई देने लगे। इससे नेपोलियन चौकन्ना हो गया। वह नहीं चाहता था, कि फ्रांस की दक्षिणी-पूर्वी सीमा पर एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना हो, जिससे फ्रांस को खतरा उत्पन्न हो जाय।

इधर नेपोलियन को युद्ध में काफी हानि उठानी पङी थी और यदि यह युद्ध कुछ समय और चलता तो उसे अधिक हानि की संभावना थी। दूसरी ओर उसे प्रशा के आक्रमण का भी भय था, क्योंकि प्रशा की सेना युद्ध के लिये तैयार खङी थी। इसके अलावा फ्रांस के रोमन कैथोलिक युद्ध जारी रखने के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि उन्हें इस बात का भय था कि आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध जारी रखने से पोप की स्थिति खतरे में पङ जाएगी।

इन सभी कारणों से नेपोलियन तृतीय ने 11 जुलाई, 1859 को विलाफ्रेंका नामक स्थान पर आस्ट्रिया के सम्राट फ्रांसिस जोसेफ से भेंट कर युद्ध विराम की शर्तें तय कर ली। इस संधि के अनुसार लोम्बार्डी का प्रांत (माण्टुआ तथा पेश्चीरा को छोङकर) फ्रांस को हस्तान्तरित कर दिया गया तथा फ्रांस ने उसे सार्डीनिया को दे दिया। वेनेशिया पर आस्ट्रिया का अधिकार पूर्ववत बना रहा। परमा, मोडेना और टस्कनी में वहाँ के शासकों को पुनः उनकी गद्दियाँ वापस कर दी गयी।

विलाफ्रेंका की संधि के समाचार से इटलीवासियों को गहरा आघात लगा।इटली के देशभक्तों ने नेपोलियन की घोर निन्दा की। उनका कहना था, कि विजय के अंतिम क्षणों में अपने मित्र सार्डीनिया को बिना पूछे ही युद्ध को बीच में रोक देना विश्वासघात था। कैवूर तो इससे आग बबूला हो उठा था।

उसने विक्टर इमेनुअल को सलाह दी कि वह इस संधि को अस्वीकार करते हुये अकेले ही आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध जारी रखे, किन्तु विक्टर इमेनुअल आवेश में शीघ्र ही कोई निर्णय करना नहीं चाहता था, अतः उसने कैवूर की सलाह को मानने से इनकार कर दिया। क्रोधित होकर कैवूर ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। यद्यपि विक्टर इमेनुअल को भी नेपोलियन की नीति सेहु उतनी ही निराशा हुई थी, जितनी कैवूर को, किन्तु अकेले सार्डीनिया के लिये शक्तिशाली आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध जारी रखना व्यावहारिक दृष्टि से उचित नहीं था।

इनके अलावा उसने यह भी देखा कि लोम्बार्डी से आस्ट्रिया का प्रभाव समाप्त हो जाने से वियना व्यवस्था भंग होनी आरंभ हो गयी थी और जब यूरोपीय शक्तियों ने लोम्बार्डी पर इटली के अधिकार को मान्यता दे दी है, तो एक प्रकार से वेनेशिया पर भी इटली का नैतिक अधिकार स्वीकार कर लिया गया है। अतः परिस्थितियों को देखते हुये विक्टर इमेनुअल ने आस्ट्रिया और फ्रांस के साथ मिलकर 10 नवम्बर, 1859 को ज्यूरिक की संधि पर हस्ताक्षर कर दिये, जिसके द्वारा विलाफ्रेंका की संधि की पुष्टि की गयी।

नेपोलियन तृतीय ने प्लोम्बियर्स के समझौते की शर्तों के पालन पर जोर नहीं दिया और केवल युद्ध का खर्चा लेकर ही संतोष कर लिया। अब लोम्बार्डी पर सार्डीनिया का विधिवत अधिकार हो गया और इस प्रकार इटली के एकीकरण का प्रथम चरण भी पूरा हो गया।

मध्य इटली में एकीकरण की लहर

सार्डीनिया – आस्ट्रिया युद्ध में सार्डीनिया की विजय से मध्य इटली के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो गयी। मध्य इटली की जनता ने परमा, मेडेना और टस्कनी के शासकों को निकाल दिया। बोलाग्ना तथा रोमाग्ना से पोप के प्रतिनिधियों को हटा दिया गया। इन सभी स्थानों पर देशभक्तों ने अपनी अस्थायी सरकारें स्थापित कर ली तथा उन्होंने सार्डीनिया के साथ सम्मिलित होने का निर्णय लिया।

ब्रिटेन ने मध्य इटली के राज्यों का समर्थन किया और कहा कि मध्य इटली की जनता को अपने शासक चुनने का उतना ही अधिकार है, जितना कि इंग्लैण्ड, फ्रांस और बेल्जियम की जनता को है। आस्ट्रिया और प्रशा चाहते थे कि ज्यूरिक की संधि के अनुसार मध्य इटली में पुराने शासकों को गद्दी पर बैठाया जाये।नेपोलियन नहीं चाहता था कि मध्य इटली के राज्य पीडमाण्ट-सार्डीनिया के साथ मिले।

इसी बीच जनवरी, 1860 में कैवूर पुनः पीडमाण्ट का प्रधानमंत्री बन गया। कैवूर जानता था, कि नेपोलियन की सहमति के बिना मध्य इटली के राज्यों का सार्डीनिया के साथ मिलना कठिन है, अतः उसने नेपोलियन से बातचीत की तथा यह तय किया गया कि यदि वह (नेपोलियन) मध्य इटली के राज्यों को पीडमाण्ट में सम्मिलित होने देगा तो उसके बदले में सेवाय और नीस फ्रांस को दे दिये जाएँगे।

मार्च, 1860 में मध्य इटली के राज्यों में जनमत संग्रह कराया गया। परमा, मोडेना, टस्कनी, बोलोग्ना और पिआकेंजा ने भारी बहुमत से पीडमाण्ट के साथ मिलने का निर्णय किया। मध्य इटली के राज्य पीडमाण्ट में सम्मिलित कर लिये गये तथा सेवाय और नीस फ्रांस को सौंप दिये गये। लोम्बार्डी पर पहले ही सार्डीनिया का अधिकार हो चुका था।

1इस प्रकार कैवूर की इस नीति के फलस्वरूप सार्डीनिया का एक छोटा राज्य, एक वर्ष में विशाल राज्य में परिवर्तित हो गया। फ्रांस को सेवाय और नीस प्राप्त हो जाने से फ्रांस की चिर प्रतीक्षित अभिलाषा पूर्ण हो गयी, किन्तु गैरीबाल्डी ने इसका यह कहकर विरोध किया कि, उसने (कैवूर ने ) मेरी मातृभूमि निजा (नीस) को बेच दिया और मुझे विदेशी बना दिया है। इधर नेपोलियन को इंग्लैण्ड की मित्रता से भी हाथ धोना पङा, क्योंकि सेवाय और नीस का फ्रांस में मिल जाना उसे अच्छा नहीं लगा।

नेपिल्स और सिसली में विद्रोह

कैवूर के प्रयत्नों से इटली का उत्तरी और मध्य भाग तो एक राजसत्ता के अधीन आ गये थे तथा संयुक्त इटली के लिये दृढ आधार तैयार हो गया था, किन्तु अभी तक आधा इटली बाकी था। वेनेशिया, रोम, नेपिल्स और सिसली के राज्य अभी बाहर थे। विलाफ्रेंका की संधि के बाद कैवूर ने कहा था, यूरोपीय शक्तियों ने मुझे कूटनीति के द्वारा उत्तर की ओर से इटली का एकीकरण नहीं करने दिया। अब मुझे क्रांति का सहारा लेकर दक्षिण की ओर से इटली का एकीकरण करना होगा। 1860 के अंत में कैवूर ने दक्षिणी इटली की ओर ध्यान दिया।

1821 से 1860 तक नेपिल्स का इतिहास अत्याचारपूर्ण निरंकुशलता का इतिहास है। वहाँ तीन बार विद्रोह हो चुका था तथा वहाँ के शासक फ्रांसिस द्वितीय ने कुछ सुधार करने का प्रयत्न किया, किन्तु इससे जनता का असंतोष कम नहीं हुआ। इसी प्रकार सिसली में भी क्रांतिकारियों का प्रचार कार्य तेजी से चल रहा था। मेजिनी ने भी विद्रोह को प्रोत्साहन दिया तथा उसके समर्थक क्रिस्पी ने विद्रोह की योजना तैयार की, किन्तु नेपिल्स और सिसली में क्रांति पैदा करने तथा उसे सफल बनाने का श्रेय गैरीबाल्डी को दिया जा सकता है।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : कैवूर

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