इतिहासराजस्थान का इतिहास

कुम्भा के सिरोही और आबू के देवङा चौहानों के साथ संबंध

कुम्भा – महाराव लुम्बा के नेतृत्व में देवङा चौहानों ने अर्बुदाचल के पहाङी क्षेत्र पर 1311 ई. के आसपास अपना अधिकार कायम किया था। उसके बाद 1405 ई. में महाराव शिवभान ने शिवपुरी का निर्माण करवाया और इसी नगर को अपने पहाङी राज्य की राजधानी बनाया।

उसके पुत्र महाराव सैंसमल ने 1425 ई. में सिरोही नगर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। 1451 ई. में सैंसमल की मृत्यु के बाद महाराव लाखा सिंहासन पर बैठा और उसने 1483 ई. तक शासन किया। इस प्रकार महाराणा कुम्भा को सिरोही के दो शासकों – सैंसमल और लाखा से निपटना पङा।

कुम्भा

सिरोही का महाराव सैंसमल प्रतिभावान होने के साथ-साथ एक अवसरवादी शासक भी था। मेवाङ के महाराणा मोकल की हत्या से उत्पन्न अव्यवस्था का लाभ उठाकर उसने मेवाङ राज्य के पिण्डवाङा तथा उसके आस-पास के कुछ गाँवों पर अपना अधिकार जमा लिया। कुम्भा के लिये मेवाङ के इन गाँवों को जीतना आवश्यक था।

परंतु यह तो आबू और सिरोही पर आक्रमण करने का बहाना मात्र था। वास्तविक कारण की चर्चा करते हुये डॉ.गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि महाराणा (कुम्भा) जानता था कि गुजरात की ओर से उसके राज्य पर यदि हमले हो सकते हैं तो राजस्थान के पश्चिमी भाग से ही हो सकते हैं।

आबू के प्रान्त को राज्य का अंग बना लेने से उस ओर के मार्ग पर अवरोध हो सकता था। स्पष्ट है कि सिरोही पर आक्रमण करने का असली कारण आबू तथा उसके आस-पास क्षेत्रों को जीतकर वहाँ एक सुदृढ सीमा चौकी स्थापित करना था ताकि गुजरात की तरफ से होने वाले आक्रमण को वहीं पर रोका जा सके। इस तथ्य को ध्यान में रख कर कुम्भा ने अपने डोडिया सरदार नरसिंह को सिरोही पर आक्रमण करने के लिए भेजा।

सैंसमल मेवाङी सेना के हाथों पराजित हुआ और उसे बसंतगढ, भूला, आबू के आस-पास कुछ क्षेत्र और पूर्वी सिरोही का कुछ भू-भाग महाराणा कुम्भा को देना पङा। इसके अलावा उसे कुम्भा की अधीनता भी स्वीकार करनी पङी। डॉ.ओझा और हरविलास शारदा के अनुसार आबू पर भी कुम्भा का अधिकार हो गया था। परंतु अन्य साक्ष्यों के आधार पर इसे सही नहीं माना जा सकता।

आबू पर देवङा चौहानों की छोटी शाखा का अधिकार बना रहा और कुम्भा ने इस पर 1440 ई. के बाद ही अधिकार किया होगा क्योंकि इस समय के देवङा चौहान चूण्डा और डूँगर के शिलालेख प्राप्त हुए हैं।

सैंसमल ने विपरीत परिस्थितियों से विवश होकर कुम्भा की अधीनता स्वीकार की थी। ह्रदय से वह अब भी अपनी स्वतंत्र सत्ता को पुनः प्राप्त करना चाहता था। अतः उसने अपने सामंतों को कुम्भा के अधिकारियों को खदेङने के लिये प्रोत्साहित किया। उसका इशारा पाकर आबू के देवङा चौहानों ने कुम्भा के अधिकारियों को काफी परेशान किया।

ऐसी स्थिति में कुम्भा को आबू पर आक्रमण करना पङा। देवङा चौहान पराजित हुए और इस बार कुम्भा ने आबू पर भी अपना अधिकार कर लिया। सोमानी ने बिना परिणाम दिये लिखा है कि कुम्भा ने 1443 ई. में आबू अधिकृत किया था। आबू से निष्कासित किये जाने के बाद चूण्डा और डूँगर ने सिरोही में शरण ली।

परंतु सैंसमल ने इस समय महाराणा कुम्भा से शत्रुता मोल लेना उचित न समझ कर उन्हें आबू पर प्रत्याक्रमण करने में किसी प्रकार की सैनिक सहायता नहीं दी। सैंसमल की मृत्यु के बाद लाखा सिरोही का शासक बना। वह महाराणा कुम्भा का दामाद था। अतः उससे सहायता की कोई उम्मीद न थी।

इसलिए आबू के देवङाओं ने अब गुजरात के सुल्तान से सहयोग लेने का निश्चय किया। गुजरात के दरबार में उनका स्वागत ही हुआ। गुजरात के सुल्तान ने तीन बार सिरोही पर आक्रमण कर उसे रौंद डाला परंतु कुम्भा के जीवनकाल में आबू पर अपना अधिकार जमाने में असफल रहा।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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