इतिहासराजस्थान का इतिहास

जयपुर चित्रकला शैली का इतिहास

जयपुर चित्रकला शैली – राजस्थानी शासकों में सर्वप्रथम आमेर (जयपुर) के शासक ने मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये थे। अतः मुगल-संस्कृति का प्रभाव यहाँ के शासकों पर विशेष रूप से पङा। फलस्वरूप यहाँ की चित्रकला इस प्रभाव से अछूती न रह सकी। आमेर में अकबर शैली के चित्र बनने लगे। आमेर के महलों में अलंकरण और सजावट तथा बैराठ के उद्यान भवन के भित्ति-चित्रों की तकनीक मुगलों के अनुरूप है, किन्तु इन चित्रों के विषय हिन्दू धर्म पर आधारित हैं। यहाँ के शासक शाही सेवा में रहने के कारण वे शाही दरबार की फैशन के अनुसार रहते थे और चित्रकारों को भी प्रश्रय देते थे। अतः स्थानीय चित्रकार भी मुगल शैली के ढाँचे में ढलते गये। फलस्वरूप स्थानीय और मुगल शैली एक दूसरे में मिश्रित हो गयी। यह परिवर्तित शैली हमें 1600-1625 ई. में बने रसिक प्रिया के चित्र तथा 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बने चित्रों में दिखायी देती है। 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बने चित्रों में सम्पन्नता, सूक्ष्म रेखण, रंगों का संयोजन और भावयुक्त कोमल रेखाएँ दिखाई देती हैं और इन विशेषताओं के कारण संपूर्ण चित्र पूर्व की अपेक्षा उन्नत दिखाई देता है। 17 वीं शताब्दी के अंत में और 18 वीं शताब्दी के आरंभ में यद्यपि कृष्ण उपासना से प्रभावयुक्त अन्तर्मुखी चित्र अधिक बने, किन्तु उनमें मुगल दृश्य और सुन्दर फारसी शैली की रेखाएँ यथावत बनी रही। इस काल के चित्रों में कृष्ण-लीला, गोवर्द्धन-धारण, गोवर्द्धन-पूजा, रागमाला और बारहमासा आदि के चित्र उल्लेखनीय हैं। इन चित्रों में स्थानीय मौलिकता होते हुए भी रंगों का संयोजन मुगल शैली के आधार पर हुआ है। 1751-52 ई. में बने एक चित्र में सवाई माधोसिंह और उसकी रानी को साथ-साथ स्थानक रूप में दिखाया गया है। राजा और रानी के सामने एक सेवक और पीछे दो दासियाँ दिखायी गयी हैं। इसमें स्रियों की वेश-भूषा में मुगलपन है तथा सवाई माधोसिंह के हाथ में दर्शाया गया फूल मुगल शैली के अनुरूप है। सवाई जयसिंह (1700-1743 ई.) के काल के चित्रों में हिन्दू शैली की चमक पुनः दिखायी देने लगती है। यह शैली जयपुर के महलों के भित्ति-चित्रों में देखी जा सकती है। इनमें कृष्ण और गोपियों के चित्रों में आँखें बादाम की तरह तथा मोटे ओंठ वक्रानुकृति में अपनी विशेषता लिये हुए हैं।

19 वीं शताब्दी के चित्र यद्यपि अलंकारपूर्ण हैं, किन्तु इसमें मौलिक शैली अवनत होती दिखाई देती है। 19 वीं शताब्दी का एक चित्र सर्वथा अस्वाभाविक लगता है। जिसमें अन्तःपुर की दो स्रियों को इस प्रकार आलिंगनबद्ध दिखाया गया है मानों स्री और पुरुष आलिंगनबद्ध हों। इसमें चित्रित कामुकता मुगलों की विलासिता की याद दिलाती है। इस काल में जयपुर के महलों में बने भित्ति-चित्र यद्यपि मुगल ढंग के हैं, लेकिन पहाङों व समुद्र तट की रेखाओं में राजस्थानी शैली दिखायी देती है। सवाई रामसिंह के काल में 1850 ई. के आस-पास बने देवी सरस्वती के चित्र में हिन्दू देवी को मुगलों के सदृश्य दिखाया गया है। इसमें छोटे-छोटे पौधों का अंकन तथा आँगन पर बूटेदार कालीन मुगल शैली के अनुरूप हैं, किन्तु हिन्दू देवी को यूरोपियन शैली की कुर्सी पर बैठा दिखाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि 19 शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जयपुर की चित्रकला का यूरोपीयकरण होने लग गया था, जिसके फलस्वरूप जयपुर कलम की आत्मा ही समाप्त हो गयी थी।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Related Articles

error: Content is protected !!