इतिहासराजस्थान का इतिहास

जैसलमेर में जन आंदोलन

जैसलमेर में जन आंदोलन – जैसलमेर राजस्थान का सर्वाधिक पिछङा हुआ क्षेत्र माना जाता था। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग रेगिस्तान होने के कारण तथा वर्षा की कमी के कारण पैदावार बहुत कम होती थी। यातायात एवं संचार साधनों की कमी होने के कारण तथा वर्षा की कमी के कारण पैदावार बहुत कम होती थी। यातायात एवं संचार साधनों की कमी होने के कारण यह शेष राजस्थानी राज्यों से भी अलग-थलग पङा हुआ था। आधुनिक शिक्षा का प्रसार न होने से यहाँ की अशिक्षित जनता महारावाल (यहाँ के शासक) के निरंकुश शासन के नीचे दबी हुई थी। जैसलमेर में सर्वप्रथम महारावल शालिवाहन द्वितीय के समय में लानी टेक्स को लेकर 1896 ई. में व्यापारी वर्ग ने एक आंदोलन छेङा था। राजधानी में कई दिनों तक हङताल रही। किन्तु महारावल ने आंदोलन को निर्ममतापूर्वक कुचल दिया। फलस्वरूप व्यापारी वर्ग के कई परिवार जैसलमेर को छोङकर अन्यत्र चले गये। 1915 ई. में यहाँ के कुछ युवकों ने सर्वहितकारी वाचनालय स्थापित करना चाहा, लेकिन महारावल, लोगों को ऐसा कोई अवसर नहीं देना चाहता था जिससे लोगों में संगठन की भावना उत्पन्न हो । सन् 1920 ई. में कुछ राजनीतिक चेतना दिखाई देने लगी। 2 फरवरी, 1920 को कुछ प्रवासी जैसलमेरियों व कुछ अन्य जातियों के लोगों ने महारावल को एक माँग पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें शिक्षण संस्थाओं को राजकीय संरक्षण देने, राज्य में समाचार पत्र प्रकाशन की अनुमति देने, नगरपालिका का गठन कर स्वास्थ्य एवं सफाई की अच्छी व्यवस्था करने और रेल एवं तार की व्यवस्था द्वारा राज्य का शेष भारत से संपर्क स्थापित करने की प्रार्थना की गयी थी। महारावल ने इन माँगों को पूरा करने का आश्वासन दिया। राज्य के एक उत्साही युवक सागरमल गोपा ने इस माँग पत्र को एक पुस्तिका के रूप में छपवाकर लोगों में वितरित किया और इसका खूब प्रचार किया।

बीकानेर में जन आंदोलन

इस घटना के बाद कुछ समाचार पत्रों जैसलमेर के संबंध में समाचार एवं लेख प्रकाशित होने लगे जिनमें जैसलमेर के लोगों की दयनीय स्थिति तथा महारावल के दमनात्मक शासन की विवेचना होती थी। जैसलमेर के कुछ लोग समाचार पत्र मँगवाकर बङे चाव से पढते थे। किन्तु सरकार द्वारा ऐसे लोगों पर कङी दृष्टि रखी जाने लगी और प्रवासी जैसलमेरियों के राज्य में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया। नवम्बर, 1930 ई. में पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस पर सर्वश्री रघुनाथसिंह मेहता, आईदानसिंह और सागरमल गोपा ने एक विज्ञप्ति निकाल कर नेहरूजी के स्वास्थ्य की कामना की। महारावल ने इन तीनों नवयुवकों को गिरफ्तार करवा दिया। इसी समय जैसलमेर में रघुनाथसिंह मेहता की अध्यक्षता में माहेश्वरी युवक मंडल की स्थापना की गयी। सरकार को इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया। महारावल युवक मंडल की स्थापना की गयी। सरकार ने इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया। महारावल की इस प्रकार की कार्यवाहियों का जबरदस्त विरोध हुआ। जन आक्रोश को देखते हुये महारावल ने उन तीनों नवयुवकों को रिहा कर दिया। 1937-38 ई. में शिवशंकर गोपा, मदनलाल पुरोहित, लालचंद जोशी आदि कुछ नवयुवकों ने लोक परिषद की स्थापना का प्रयास किया। किन्तु महारावल ने बङी कठोरता से इन नवयुवकों की गतिविधियों का दमन कर दिया। अधिकांश युवकों को जैसलमेर छोङना पङा। लेकिन राज्य से बाहर रहकर भी वे समाचार पत्रों के माध्यम से राज्य के दमनकारी शासन के विरुद्ध प्रचार करते रहे।

सागरमल गोपा पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने जैसलमेर की जनता को महारावल के निरंकुश एवं दमनकारी शासन के विरुद्ध जाग्रत किया। इसलिए महारावल गोपाजी से अत्यधिक रुष्ट थे। सागरमल गोपा ने 1940 ई. के आस-पास जैसलमेर में गुण्डा राज नामक पुस्तक छपवा कर वितरित करवा दी।अतः महारावल ने शीघ्र ही गोपाजी को राज्य से निर्वासित कर दिया। गोपाजी नागपुर चले गये और वहाँ से जैसलमेर के दमनकारी शासन के विरुद्ध प्रचार करते रहे। मार्च, 1941 ई. में उनके पिता का देहान्त हो गया, तब उसने ब्रिटिश रेजीडेण्ट से प्रार्थना की कि उसे जैसलमेर जाने की स्वीकृति दिलवाई जाय। रेजीडेण्ट ने आश्वासन दिया कि उसके विरुद्ध राज्य सरकार का कोई आरोप नहीं है, अतः वे जैसलमेर जा सकते हैं तथा उसे किसी प्रकार के दुर्व्यवहार का भय नहीं होना चाहिए। इस प्रकार गोपा जैसलमेर पहुँचा। दो महीने वहाँ रहने के बाद जब वह वापिस जैसलमेर से रवाना होने वाला था, तब अचानक 22 मई, 1941 ई. को उसे बंदी बना लिया गया। उसे बुरी तरह से पीटा गया और जेल में ठूँस दिया गया। जेल में रहते उसके विरुद्ध न्याय का नाटक किया गया। सरकार ने न्याय-प्रक्रिया तक का पालन नहीं किया। अन्ततः 10 जून, 1942 को राजद्रोह के अपराध में उसे 6 वर्ष की कठोर सजा दे दी गयी। जेल में थानेदार गुमानसिंह नारकीय यातनाएँ देता रहा। गोपा द्वारा जयनारायण व्यास और शेख अब्दुल्ला को, इन यातनाओं के संबंध में पत्र भिजवाये गये। जयनारायण व्यास ने पोलीटिकल एजेण्ट को पत्र लिखकर वास्तविक स्थिति का पता लगाने का आग्रह किया। पोलीटिकल एजेण्ट ने 6 अप्रैल, 1946 को जैसलमेर जाने का कार्यक्रम बनाया। उधर गोपा जेल अधीक्षक के माध्यम से जिलाधीश को, उसे दी जा रही घोर यातनाओं के संबंध में जानकारी देते हुये पत्र लिखा। जब थानेदार गुमानसिंह को इसकी जानकारी मिली तो उसने गोपा को भयंकर परिणाम भुगतने की धमकी दी।

पोलीटिकल एजेण्ट 5 अप्रैल को जैसलमेर पहुँचने वाला था, किन्तु 3 अप्रैल को ही जेल में गोपा पर मिट्टी का तेल डालकर उसे जला डाला और दोपहर 3 बजे नगर में यह खबर फैला दी गयी कि गोपा ने जेल में अपने शरीर पर मिट्टी का तेल छिङककर आग लगा दी। सारा शहर गोपाजी को देखने उमङ पङा। किन्तु सरकार ने गोपाजी के रिश्तेदारों तक को नहीं मिलने दिया। दिनभर गोपाजी तङफते रहे, लेकिन उनके इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की गयी। रात में उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन रातभर किसी डॉक्टर ने गोपाजी को देखा तक नहीं । अंत में 4 अप्रैल को उनका देहांत हो गया। सारा नगर सागरमल गोपा जिन्दाबाद के नारों से गूँज उठा। दीवारों पर खून के बदले खून के नारे लिख दिये गये। पंडित नेहरू सहित अनेक चोटी के नेताओं ने इस कांड की तीव्र भर्त्सना की। मृत्यु के कारणों की जाँच की माँग प्रस्तुत होती गयी। अतः सरकार ने प्रसिद्ध विधिवेत्ता गोपालस्वरूप पाठक को जाँच की माँग प्रस्तुत होती गयी। अतः सरकार ने प्रसिद्ध विधिवेत्ता गोपालस्वरूप पाठक को जाँच अधिकारी नियुक्त किया। जाँच में इसे आत्महत्या की संज्ञा दे दी गयी और कारण पुलिस अधिकारी गुमानसिंह का भय बताया गया। वस्तुतः यह तो न्याय की ही हत्या हुई। क्योंकि पाठक को कुछ प्रश्न बिल्कुल अनुत्तरित छोङ दिये, जैसे – गोपा को गुमानसिंह का इतना भय क्यों था? जेल में मिट्टी का तेल और माचिस कैसे पहुँची? निश्चित रूप से यह एक जघन्य हत्या थी। गोपाजी ने अपना नाम उन पर अमर शहीदों में लिखवा दिया जिनकी कुर्बानियों से भारतीय राज्य में राजशाही का अंत हुआ था।

जिस समय गोपाजी को राजद्रोह के अपराध में 6 वर्ष के कठोर कारावास की संज्ञा दी गयी, उसके बाद मीठालाल व्यास ने 1945 ई. में जैसलमेर प्रजा मंडल की स्थापना जोधपुर में की। उधर गोपाजी की शहादत ने जन आंदोलन को और अधिक प्रबल बना दिया। गोपा हत्याकांड के तुरंत बाद मई, 1946 ई. में जोधपुर से जयनारायण व्यास और उनके साथी अचलेश्वर प्रसाद शर्मा जैसलमेर आये और एक सार्वजनिक सभा की। जनमानस में असीम उत्साह दिखाई देने लगा। जैसलमेर प्रजा मंडल तेजी से कार्य करने लगा। महारावल ने ज्यों-ज्यों प्रजा मंडल आंदोलन को दबाने का प्रयास किया त्यों-त्यों आंदोलन में तेजी आती गयी। 15 अगस्त, 1947 ई. को देश आजाद होने के बाद महारावल ने जोधपुर के साथ-साथ जैसलमेर को भी पाकिस्तान में मिलाने हेतु जिन्ना से बातचीत की। परंतु चौकन्नी भारत सरकार ने उनकी योजना पर पानी फेर दिया। महारावल ने बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों को भी अनदेखा किया। 2 अक्टूबर, 1947 को जैसलमेर की जनता ने महात्मा गाँधी का जन्म दिवस मनाया और शहर में जुलूस निकाला। इस अवसर पर राज्य की पुलिस ने शांत जुलूस पर लाठी चार्ज किया। यह स्थिति अब अधिक समय तक नहीं रह सकती थी। 30 मार्च, 1949 ई. को जब वृहत राजस्थान का निर्माण हुआ, जैसलमेर में राजशाही समाप्त हुई और वहाँ एक नये युग की शूरूआत हुई। जैसलमेर की सीमा पर पाकिस्तानी कबाइलियों के हमले को देखते हुए भारत सरकार ने वहाँ अपना प्रशासन नियुक्त कर दिया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Related Articles

error: Content is protected !!