इतिहासराजस्थान का इतिहास

भरतपुर में जन आंदोलन

भरतपुर में जन आंदोलन – भरतपुर में जन जागृति पैदा करने वालों में जगन्नाथदास अधिकारी और गंगाप्रसाद शास्त्री प्रमुख थे। इन्होंने 1912 ई. में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना की, जिसने शीघ्र ही लोकप्रियता प्राप्त कर ली और एक विशाल पुस्तकालय के रूप में खङी हो गयी। श्री अधिकारी ने 1920 ई. में दिल्ली से वैभव नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया। भरतपुर के तत्कालीन महाराजा किशनसिंह (1900-1927 ई.) अन्य शासकों की तुलना में अधिक प्रगतिशील थे। उन्होंने हिन्दी को राजभाषा बना दिया, गाँवों और नगरों में स्वायत्तशासी संस्थाओं को विकसित किया और राज्य में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन किया। वे राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने के पक्ष में थे और 15 सितंबर, 1927 ई. को ऐसी घोषणा भी कर दी। किन्तु ब्रिटिश सरकार ने उसके प्रगतिशील विचारों के दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखकर उसे गद्दी छोङने पर विवश किया तथा अल्पव्यस्क ब्रिजेन्द्रसिंह को गद्दी पर बैठा दिया। उसकी सहायता के लिये ब्रिटिश प्रशासक नियुक्त कर दिया, जिसने श्री अधिकारी को राज्य से निर्वासित कर दिया। सार्वजनिक सभाओं और प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं राष्ट्रीय नेताओं के चित्र रखना भी अपराध मान लिया गया। 1930-31 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिये भरतपुर से एक जत्था अजमेर भेजा गया तथा कुछ विद्यार्थियों ने भरतपुर में, स्वतंत्रता दिवस मनाया। राज्य सरकार ने अपना दमन चक्र तेज कर दिया।

हरिपुरा काँग्रेस के बाद भरतपुर के प्रमुख नेताओं ने राज्य से बाहर रेवाङी में दिसंबर, 1938 ई. में भरतपुर राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की। गोपीलाल यादव इसके अध्यक्ष बने तथा मास्टर आदित्येन्द्र को कोषाध्यक्ष बनाया गया। राज्य सरकार ने संगठन का पंजीकरण नहीं किया तथा उसे गैर कानूनी संगठन घोषित कर दिया। फलस्वरूप प्रजा मंडल ने 21 अप्रैल, 1938 ई. को सत्याग्रह आरंभ कर दिया तथा जनता का ध्यान राज्य सरकार के अत्याचारों पर केन्द्रित करने का प्रयास किया गया। अंत में 23 दिसंबर, 1940 ई. को प्रजा मंडल व राज्य सरकार के बीच समझौता हो गया। प्रजा मंडल का प्रजा परिषद के नाम से पंजीकरण हो गया तथा सभी नेताओं को रिहा कर दिया गया। प्रजा परिषद के उद्देश्य सार्वजनिक समस्याओं को प्रस्तुत करना, प्रशासनिक सुधारों पर बल देना तथा जनमत को शिक्षित करना रखे गये।

प्रजा परिषद ने 27 अगस्त से 2 सितंबर, 1940 ई. तक एक राष्ट्रीय सप्ताह मनाया। इसने अनेक प्रस्ताव पास किये जिनमें उत्तरदायी शासन की स्थापना का प्रस्ताव भी सम्मिलित था। इन सभी प्रस्तावों को, माँगों के रूप में, राज्य के दीवान के समक्ष रखा गया, किन्तु सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। 30 दिसंबर, 1940 को परिषद का पहला राजनीतिक सम्मेलन जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें पुनः उत्तरदायी शासन की स्थापना पर जोर दिया गया। सरकार इन गतिविधियों को कब सहन करने वाली थी। सरकार ने परिषद के मंत्री को बंदी बना लिया। भारत छोङो आंदोलन आरंभ होने तक प्रजा परिषद काफी सक्रिय हो गयी थी तथा सार्वजनिक समस्याओं पर चर्चा तीव्र हो गयी। अगस्त, 1942 में इसने सत्याग्रह आरंभ कर दिया जो दिनों-दिन उग्रतर होता गया। सरकार ने अनेक नेताओं को बंदी बनाया। फिर भी आंदोलन की उग्रता में कमी नहीं आयी। जनता को संतुष्ट करने के लिये अक्टूबर, 1942 ई. में सरकार ने केन्द्रीय सलाहकार परिषद के स्थान पर बृज-जय प्रतिनिधि सभा का गठन किया। जिसमें कुल 50 सदस्यों में से 37 निर्वाचित सदस्य रखे गये। अगस्त, 1943 ई. में चुनाव हुए जिसमें 27 सदस्य प्रजा परिषद के चुने गये। युगलकिशोर चतुर्वेदी को नेता तथा मास्टर आदित्येन्द्र को उपनेता चुना गया। लेकिन शीघ्र ही प्रतिनिधि सभा का खोकलापन स्पष्ट हो गया तथा राजनीतिक जागृति भी बढती गयी, अतः अप्रैल, 1945 ई. में परिषद ने प्रतिनिधि सभा का बहिष्कार कर राज्य में पूर्ण उत्तरदायी शासन की माँग की।

23 मई, 1945 ई. को प्रजा परिषद का दूसरा अधिवेशन बयाना में हुआ, जिसमें उत्तरदायी शासन की माँग पुनः दोहरायी गयी। अखिल भारतीय स्तर पर भी राज्य सरकार की अनुत्तरदायी नीति की आलोचना की गयी। 25 नवम्बर, 1945 को प्रजा परिषद ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि यदि राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित नहीं हुआ तो 12 दिसंबर से सत्याग्रह आरंभ कर दिया जायेगा। सरकार ने प्रजा परिषद के नेताओं को 12 दिसंबर से पहले ही गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिनों बाद उदयपुर में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का सातवाँ अधिवेशन हुआ, जिसमें पूरे क्षेत्र में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग की गयी। राज्य सरकार ने संवैधानिक सुधारों के लिये एक समिति नियुक्त की, जिसमें प्रजा परिषद के सदस्यों का बहुमत रखा गया। किन्तु महाराजा ने धीरे-धीरे परिषद के सदस्यों की संख्या कम कर दी। 17-18 दिसंबर, 1946 को प्रजा परिषद ने कामा में एक सम्मेलन किया जिसमें बेगार समाप्त करने तथा उत्तरदायी शासन की मांग दोहरायी गयी। 4 जनवरी, 1947 ई. को भारत के वायसराय लार्ड वैवल और बीकानेर के महाराजा शार्दुलसिंह शिकार के लिये भरतपुर पहुँची तो राज्य सरकार के विरुद्ध व्यापक प्रदर्शन हुए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बर्बर अत्याचार किए। पुलिस की बर्बरता के विरुद्ध भरतपुर में 17 दिन तक हङताल रही। आंदोलन दिन प्रतिदिन तेज होता गया। प्रजा परिषद के नेता जेल में ठूँस दिये गये। किन्तु युगलकिशोर चतुर्वेदी व मास्टर आदित्येन्द्र भूमिगत होकर आंदोलन संचालित करते रहे। जाट और मेवों के पारस्परिक संघर्षों को राज्य सरकार नियंत्रित न कर सकी। अतः विवश होकर जनवरी, 1948 में चार लोकप्रिय मंत्रियों को नियुक्त किया गया। फिर भी महाराजा का व्यवहार राष्ट्र विरोधी रहा। लोकप्रिय मंत्री भी केवल तीन महीने कार्य कर सके। 18 मार्च, 1948 ई. को मत्स्य संघ के बन जाने से भरतपुर राज्य का पृथक अस्तित्व समाप्त हो गया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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