इतिहासमध्यकालीन भारत

मंगोल कौन थे ?

मंगोल आक्रमण – मंगोल मध्य एशिया और पूर्वी एशिया में रहने वाली एक जाति है, जिसका विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव रहा है। 13 वीं और 14 वीं शताब्दियों का मंगोल साम्राज्य दुनिया का एकमात्र ऐसा खानाबदोश साम्राज्य माना जाता है, जो चंगेज खान के नेतृत्व में केवल एक पीढी के अर्से में स्थापित हुआ। यह साम्राज्य हिंदुस्तान और एशियाई महाद्वीप के दक्षिण-पूर्वी हिस्से को छोङ कर, मध्य पूर्व और मध्य एशिया से लेकर पूर्वी यूरोप तथा चीन तक फैला हुआ था। विश्व इतिहास में यह अकेला ऐसा खानाबदोश साम्राज्य था जिसने एशिया के हरे-भरे आंतरिक मैदानों (स्तेपियों) और उनके साथ लगे हुए निस्पंद रेगिस्तानी इलाकों को एक साथ सफलतापूर्वक अपने कब्जे में रखा हुआ था। मंगोल साम्राज्य ख्वारिज्म साम्राज्य के भौतिक और प्राकृतिक साधनों के विनाश और अरब खिलाफत की समाप्ति की दिशा में शुरूआत का सूचक था। इसके साथ ही यह साम्राज्य दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों के लिये एक ऐसे नए शत्रु के आने का संकेत भी था, जो उनके किसी भी अन्य बाहरी या आंतरिक शत्रु की तुलना में कहीं ज्यादा शक्तिशाली, विनाशकारी और आक्रामक था।

मंगोल कौन थे?

मंगोल भ्रमणशील बर्बर नस्ल के थे और उनके कबीलाई संगठन थे। उनका कार्यक्षेत्र प्रारंभ में बाहरी मंगोलिया और उसके आस-पास की स्तेपियों (घास के मैदानों) का इलाका था।

स्तेपी क्षेत्रों की मिट्टी और मौसम चरवाही अर्थव्यवस्था के विकास के लिये आदर्श माने जाते हैं। कठोर मौसमी वातावरण एक इन्सान की किसी भी मौसम में किसी भी तरह के बदलाव को ग्रहण करने की सहनशक्ति और सतर्क दिमाग के साथ दार्शनिक अटकलबाजी से रहित चिंतन की क्षमता प्रदान कर देता है। चरवाही खानाबदोशों के लिये पालतू पशु समूह जीविका के महत्त्वपूर्ण साधन हैं, क्योंकि वे दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ, जैसे कपङे, जूते, बिस्तर, तंबू, ईंधन, भोजन और लङाई के मुख्य साधन के रूप में प्रयुक्त घोङे प्रदान करते थे।

खानाबदोशी मंगोल उप-पूरक अर्थव्यवस्था पर भी निर्भर थे, क्योंकि उनके उत्पादक की मूल इकाई चराई भूमि थी। इससे एक ऐसी नाजुक आर्थिक स्थिति पैदा हुई कि चराई भूमि को लेकर आंतरिक कबीलाई झगङे शुरू हो गये। आगे चलकर पङोसी राज्यों (चीन और ख्वारिज्म के साम्राज्यों), जहाँ का आर्थिक ढाँचा बङा पेचीदा था, से व्यापार के मसले पर लङाइयाँ हुई।

इस तरह मंगोल खानाबदोश प्रकृति के परिवेश में वास करते थे और उनकी प्रगति जलवायु की परिस्थितियों, तात्कालिक पर्यावर्ण और भौतिक अवस्थाओं पर निर्भर करती थी। 13 वीं शताब्दी के प्रारंभ में घास के इन विशाल मैदानों (स्तेपियों) में बहुत सी छितराई हुई जातियाँ आबाद थी जिनमें महत्त्वपूर्ण थी – तातारी और मंगोल जातियाँ।

तेमूचिन, जो बाद में चंगेज खान के नाम से मशहूर हुआ, खासुल खान का पङपोता था, जिसने लगभग 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मंगोल खानाबदोश जाति की राजव्यवस्था स्थापित की थी। हालाँकि इन मंगोलों में भी उनकी सभी उपशाखाएँ शामिल नहीं थी। तेमूचिन के पिता एशूगई बहादुर अपनी उपशाखा का मुखिया था। लेकिन उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवार को बेहद गरीबी और दुःख का सामना करना पङा। ऐसी ही कठिन परिस्थितियों में तेमूचिन ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति और सत्ता का निर्माण किया जो उन सबके लिए खतरे का स्त्रोत साबित हुई जिन्होंने उसके परिवार को अकेला और बहिष्कृत छोङ दिया था। यह सत्ता उन जातियों के लिये भी खतरे का स्त्रोत थी जिन्होंने तेमूचिन की उन्नति को एक अन्य मंगोल राज्य कायम करने की दिशा में एक बढा हुआ कदम माना था।

एक नए राजनीतिक ढाँचे की स्थापना की प्रक्रिया में, तेमूचिन ने उन तमाम विचारों, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का परीक्षण किया जिनको हूणों, तुर्कों और उइगर जन जातियों सहित विभिन्न पूर्ववर्ती खानाबदोश राज्यों ने विकसित किया था। चेमूचिन के चूँकि अपने कबीलाई समर्थक नहीं थे, अतः उसने अपने इर्द-गिर्द एक गैर कबीलाई व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें लोग केवल उसी के प्रति वफादार रहते थे। उसने उन जन-जातियों, से भी मदद और सहयोग माँगा जिनकी किसी समय उसके पिता के साथ मैत्री थी। उसने बोर्त-ई से शादी की जो श्वेत तातार जाति की थी। इन लोगों ने चीन के साथ नजदीकी व्यापारिक संबंध बनाए हुए थे। खुद को एक नए उभरते हुए प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत करने के लिए तेमूचिन ने चीनी परंपरा से प्रेरित होकर अपने आपको दैवी शक्ति से युक्त प्रतिपादित किया। लगभग तीस साल के घोर संघर्ष के बाद तेमूचिन ने आखिरकार मंगोल, तुर्क और मंचूरियन जन जातियों को अपने अधीन कर लिया और वह उनके डेरों और पशुओं का सरदार बन बैठा। 1206 ई. में कुरु-अल्ताई के नाम से विख्यात एक विशेष सभा ने तेमूचिन को काकान या काखान घोषित किया जिसका अन्य अर्थ है मंगोलिया का सबसे शक्तिशाली खान। साथ ही उसे चंगेज खान की पदवी भी प्रदान की गयी। खान बनने के बाद उसने अधीनस्थ जन जातियों को अपनी प्रजा में परिवर्तित करके अपनी स्थिति और भी सुरक्षित कर ली, कबीलाई संघों को विजयी सेना के रूप में बदल दिया और हारी हुई जातियों को अपने निजी वफादार समर्थकों को सौंप दिया जो कि लङाई के विभिन्न क्षेत्रों के कुशल योद्धा थे, जिन्होंने चंगेज खान के उत्थान में मदद की, उसकी हर तरह की सहायता की और अपनी अमूल्य सेवाएँ पेश की उनको उसने राजकीय विशेषाधिकार, अनुदान और रियायतों के रूप में अनेक पुरुस्कार दिए।

1211 ई. से चंगेज खान ने एक के बाद एक पङोसी क्षेत्रों – चीन, ट्रांस-ओक्सियाना और खुरासान पर क्रमशः आक्रमण किए। इन आक्रमणों के दो प्रमुख परिणाम निकले – इससे विभिन्न कबीलों को एक साथ लाने में सहायता मिली और अधिक चराई भूमि की समस्या भी टल गई। घास और पानी की मौजूदगी ही मंगोल सेना की आकृति और विस्तार क्षेत्र को निर्धारित करती थी, इस प्रकार इन युद्धों ने लूट का माल, राजकर और चरवाही भूमि के रूप में अधिशेष प्रदान किया। इन उपलब्धियों ने चंगेज खान के राजनीतिक नेतृत्व को मजबूत किया और छितरी हुी जन जातियों के सहयोग को सुनिश्चित बनाया।

चंगेज खान मंगोल सेना को दशमलव पद्धति के आधार पर संगठित किया था। सबसे छोटी इकाई दस सैनिकों की थी, इसके बाद सौ, हजार और अंत में दस हजार। दस इकाइयों को एक साथ जोङ कर सौ की इकाई बनाई जाती थी और इन इकाइयों पर एक अफसर को सेनापति के पद पर नियुक्त किया जाता था। इस प्रकार सेना में पद-सोपान की प्रथा लागू की गयी। सबसे छोटी इकाई के सेनापति के बाद हेरोस, अमीर और कबीलाई प्रमुखों को मिलाकर एक सैनिक कुलीनतंत्र का ढाँचा बनाया गया था, जिसमें सबसे ऊँचे स्थान पर स्वयं मंगोल शासक आसीन था। यह सैनिक पद सोपान एक राज्य व्यवस्था की संरचना से काफी मिलता-जुलता था जहाँ समूहों को एक साथ जोङकर वंश का गोत्र बनाया गया था और इन गोत्रों को जोङकर एक कबीला बनाया गया था। इन विभिन्न कबीलों के संघ के ऊपर मंगोल राज्य की नींव रखी गयी थी।

इस प्रकार, चंगेज खान ने एक नई राजनीतिक शक्ति की नींव रखी जिसका मूलभूत आधार तत्कालीन सामाजिक और सैनिक संगठन था। चंगेज खान का राजनीतिक संगठन सैनिक कबीलों पर आधारित था और इस सहज प्रक्रिया के फलस्वरूप चंगेज खान को मानवी शक्ति के अलावा स्तेपी क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी जानवरों के इस्तेमाल में मदद हासिल हुई।

पारंपरिक खानाबदोशी पद्धति और उभरती हुई नई मंगोल राज्य व्यवस्था के बीच संतुलन बनाने के लिये, चंगेज खान ने यासा अर्थात नियमों का एक समूह जारी करके मंगोलों में अंदरूनी एकता पैदा करने की कोशिश की। साधारणतः यासा नियम मंगोलों के पैतृक और पारंपरिक रीति रिवाजों तथा विचारों का समन्वय थे जिसमें चंगेज खाँ ने कुछ नई बातों का समावेश भी किया था। वास्तव में यह एक सामान्य आचरण संहिता थी जिसका पालन सभी मंगोलों को दृढता से करना था।

व्यापक रूप से यासा नियमों में राजत्व के दैवी अधिकार के तत्व, पितृ-पूजा, वंशावली बंधनों की सूची, शासकवर्ग की संरचना, उनके पद-नामों, कर्तव्यों और विशेषाधिकारों, सैनिक संगठनों और उनके अनुशासन की संरचना, उनके पद नामों, कर्तव्यों और विशेषाधिकारों, सैनिक संगठनों और उनके अनुशासन, प्रकृति की विभिन्न शक्तियों की पूजा की पुरानी धार्मिक रीति, घोङों की बली, उईगर हस्तलिपि का ग्रहण, बङों का आदर, भाइयों के बीच संबंध, भूमि, भेङों और व्यक्तिगत संपत्ति का बँटवारा, शादी की शर्तें, न्याय, राजकीय शक्ति और उसका प्रयोग तथा सामाजिक व्यवहार इत्यादि विभिन्न बातें शामिल हैं।

इस प्रकार चंगेज खान पुरानी खानाबदोश मान्यताओं, अपनी नवनिर्मित शाही और दैवी पदवी तथा अपने सैनिक संगठन को अपने द्वारा जीते जाने वाले मैदानी राज्यों की अत्यंत विकसित सांस्कृतिक और राजनीतिक पद्धति के विरुद्ध सुरक्षित रखना चाहता था। यासा नियमों का मुख्य उद्देश्य मंगोल साम्राज्य के चरवाही समाज की पशुचारण संस्कृति को सुरक्षित रखना और मंगोलों के खानबदोश राज्य के सामाजिक सैन्य स्वरूप को बरकरार रखता था।

चंगेज खान (1206-1227ई.) के नेतृत्व में मंगोलों ने उत्तरी चीन को अपने अधीन किया, सुल्तान मुहम्मद ख्वारिज्म शाह को हराया और मध्य एशियाई राज्यों उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा साथ ही अफगानिस्तान और ईरान के बङे भाग और रूस में क्रीमिया को कब्जे में कर लिया था। उसके बेटे और उत्तराधिकारी ओगदी (1229-1241 ई.) के समय में मंगोल राज्य का विस्तार हुआ। उसने उत्तरी चीन का विजय अभियान पूरा किया, पश्चिमी ईरान में सुल्तान जलाबूद्दीन को मारा, दो काकेशियन राज्यों आर्मेनिया और जार्जिया को अपने अधीन किया, एशिया माइनर के सल्जूक राज्य को सामंती राज्य बनाया। उसने पोलैंड और हंगरी को घेरते हुए बहुत सारे रूसी प्रदेशों को भी अपने अधीन कर लिया। मंगोलिया से शासन करने वाला अंतिम खान मोन्गकी था जिसने छोटे भाई कुबिलाई को दक्षिणी चीन भेजा। दूसरे भाई हुलागू ने अबासिद खलीफा का तख्ता उलट दिया तथा बगदाद और उत्तर-पश्चिमी ईरान को जीत लिया। मोन्गकी की मृत्यु के बाद मंगोल साम्राज्य चार भागों में विभाजित हो गया –

क.) गोल्डन होर्ड जिसका नियंत्रण वोल्गा स्तेपी और दक्षिणी रूस पर था।

ख.) इलखान ने अफगानिस्तान और ईरान को अपने अधीन कर रखा था।

ग.) चगताई ने मध्य एशिया के ऊपर कब्जा कर लिया।

घ.) यूआन वंश जिसने चीन और उसके पङोसी क्षेत्रों पर शासन किया।

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