इतिहासत्रिपुरी का कलचुरि राजवंशप्राचीन भारत

कलचुरि सत्ता का विनाश कैसे हुआ

त्रिपुरी के कलचुरि शासक कर्ण की मृत्यु के बाद कलचुरियों की शक्ति क्रमशः क्षीण होने लगी थी। उसके बाद उसकी पत्नी आवल्लदेवी से उत्पन्न पुत्र यशः कर्ण राजा बना। उसके जबलपुर तथा खरा लेखों से पता चलता है, कि स्वयं लक्ष्मीकर्ण ने ही उसका राज्याभिषेक किया था। वह अपने पिता के समान शक्तिशाली नहीं था। उसकी एकमात्र सफलता, जिसका उल्लेख उसके लेखों में किया गया है, यह थी कि वह आंध्र के राजा को जीतकर गोदावरी नदी तट तक पहुंच गया तथा वहाँ भीमेश्वर मंदिर में पूजा की। यह पराजित राजा वेंगी का पूर्वी चालुक्य वंशी विजयादित्य सप्तम था।

किन्तु वह अधिक समय तक अपना राज्य सुरक्षित नहीं रख सका। उसे गंभीर चुनौती काशी-कन्नौज क्षेत्र के गहङवालों द्वारा मिली जिनका उत्कर्ष चंद्रदेव के नेतृत्व में तेजी से हुआ। उसने काशी, कन्नौज तथा दिल्ली के समीपवर्ती सभी क्षेत्रों को जीतकर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर दिया। इन स्थानों को उसने यशःकर्ण से ही जीता था। इसके अलावा परमार लक्ष्मदेव, कल्याणी के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ, चंदेल नरेश सल्लक्षणवर्मा आदि ने भी कई युद्धों में यशःकर्ण को पराजित कर दिया।

परमार शासकों का इतिहास

यशःकर्ण के बाद उसका पुत्र गयाकर्ण (1123-1151 ई.) राजा बना। वह भी एक निर्बल राजा था, जो अपने वंश की प्रतिष्ठा एवं साम्राज्य को सुरक्षित नहीं रख सका। चंदेल नरेश मदनवर्मा ने उसे बुरी तरह पराजित किया था। गयाकर्ण इतना भयाक्रांत था, कि उसका नाम सुनकर ही भाग खङा होता था।

दक्षिणी कोशल के कलचुरि सामंतों ने भी अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी तथा उनके शासक रत्नदेव द्वितीय ने भी गयाकर्ण को पराजित किया।

गयाकर्ण के बाद नरसिंह, जयसिंह तथा विजयसिंह के नाम मिलते हैं, जिन्होंने बारी-2 से शासन किया। वे भी अपने साम्राज्य को विघटन से बचा नहीं सके।

13 वीं शती के प्रारंभ में कलचुरि वंश के अंतिम शासक विजयसिंह को चंदेल शासक त्रैलोक्यवर्मन् ने परास्त कर त्रिपुरी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार कलचुरि-चेदिवंश का अंत हो गया।

चंदेल शासकों का इतिहास

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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