बाण के बाद दंडी संस्कृत गद्य साहित्य के प्रसिद्ध लेखक माने जाते हैं। वे कांची के पल्लव नरेश नरसिंह वर्मा (690-715ई.) की राजसभा में निवास करते थे।
तीन ग्रंथों की रचना का श्रेय दंडी को दिया जाता है – काव्यादर्श, दशकुमारचरित तथा अवन्तिसुन्दरीकथा। इन सभी ग्रंथों का परिचय निम्नलिखित है-
काव्यादर्श
यह दंडी का सर्वश्रेष्ठ प्रबंध है। यह शास्त्रीय रचना है, जिसमें काव्यशास्त्र के नियमों का प्रतिपादन हुआ है।
दशकुमारचरित
यह एक घटना प्रधान कथानक हैं, जिसमें पाटलिपुत्र के राजा राजहंस तथा उसके मंत्रियों के दस पुत्रों के जीवन की साहसिक घटनाओं का विवरण प्राप्त होता है। भौतिक जीवन की विविध घटनाओं जैसे छल-कपट, सत्य-झूठ, मार-काट आदि का यथार्थ वर्णन इस ग्रंथ में मिलता है।
अवन्तिसुन्दरी कथा
यह दंडी का सौन्दर्य प्रबंध है, जिसमें मालवराज मानसार की कन्या अवन्तिसुन्दरी की कथा का वर्णन है। इसकी शैली बाण की कादंबरी की शैली से प्रभावित है। यह दंडी का सबसे प्रसिद्ध गद्यकाव्य है।
दंडी संस्कृत साहित्य के अपने पदलालित्य के लिये विख्यात हैं – दंडिन पद लालित्यम। यह पदलालित्य हमें अवन्तिसुन्दरीकथा में ही देखने को मिलता है। अवन्तिसुन्दरी के सौन्दर्य का बङा ही मनोहारी वर्णन कवि ने उपस्थित किया है। दंडी की शैली समासरहित एवं प्रसाद गुण से युक्त है। उनके पात्र सांसारिक प्राणी हैं, जो सीधी और सरल भाषा का प्रयोग करते हैं।
भाषा में कहीं भी दुर्बोधता नहीं आने पाई है। वह दिन – प्रतिदिन के प्रयोग की भाषा है। यह अलंकारों के आडंबर से रहित है। दंडी की शैली की विशेषतायें हैं – अर्थ की स्पष्टता, पद का लालित्य, शब्दों के दिन-प्रतिदिन प्रयोग की क्षमता तथा रस की सुन्दर अभिव्यक्ति। इन विशेषताओं के कारण कुछ विद्वान दंडी को बाल्मीकि तथा व्यास की कोटि का तीसरा कवि मानते हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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