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चीन की सभ्यता कैसी थी

चीन की सभ्यता

आज से कई हजार साल पहले एशिया महाद्वीप में एक सभ्यता का जन्म हुआ था, जो चीन सभ्यता थी। चीन की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता ह्वांगहो नदी घाटी से लेकर यांग्त्सीक्यांग नदी घाटी तक फैली है। ह्वांगहो नदी में प्रत्येक वर्ष बाढ आने के कारण इसे चीन का शोक भी कहा जाता है।

चीन की सभ्यता विश्व की पुरातनतम सभ्यताओं में से एक है। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर चीन में मानव बसाव लगभग साढे बाईस लाख (22.5 लाख) साल पुराना है। ह्वांग-हो नदी की घाटी में प्राचीन चीन की सभ्यता का विकास हुआ। चीन वासियों ने भूकंप का पता लगाने वाले यंत्र सीस्मोग्राफ का आविष्कार किया था। राजा को वांग कहा जाता था।

चीन की सभ्यता की विशेषताएं निम्नलिखित हैं

चीन की राजनीतिक विशेषता

चीन की राजनैतिक एवं शासन व्यवस्था की बात करें तो वहाँ का सर्वोच्च व्यक्ति राजा होता था। चीन का राजा ही वहाँ के शासन एवं धर्म का प्रधान होता था। वह अपने राज्य का प्रधान सेनापति एवं सर्वोच्च व्यक्ति होता था। राजा की सहायता के लिये की प्रकार के मंत्रियों का गठन किया जाता था, और राजा अपने शासनकाल में इन मंत्रियों की सहायता लेता था। राजा की सहायता के लिये एक मंत्रिपरिषद का भी गठन किया जाता था। इस मंत्रिपरिषद में चार सदस्य होते थे।

चीन का सामाजिक जीवन

चीन का तत्कालीन समाज कई वर्गों में बंटा हुआ था, जिसमें शासक वर्ग, बुद्धिजीवी, साहित्यकार, व्यापारी, कारीगर, किसान एवं दास। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार होती थी, और उस समय संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी। पिता अपने बेटों और पत्नियों को बेच सकता था। परिवार का मुखिया पिता होता था और परिवार के लोग आपस में विवाह नहीं करते थे। प्रारंभ में चीन में स्त्रियों की दशा अच्छी थी, परंतु बाद में स्त्रियों की दशा दयनीय हो गयी।

चीन की सभ्यता में शिक्षा का महत्त्व

कोई भी व्यक्ति शिक्षा को प्राप्त करके उच्च स्थान प्राप्त कर सकता था। परंतु उस समय शिक्षा बहुत ही महंगी थी, अतः कुछ वर्ग के लोग ही शिक्षा ग्रहण कर सकते थे।

चीन की सभ्यता में रीति-रिवाज

चीन की सभ्यता में कई प्रकार के रीति रिवाज एवं परंपराएं थी – पर्दा प्रथा एवं दास प्रथा प्रचलित थी।

चीन के लोगों में आभूषण एवं परिधानों के प्रति लगाव था। जूट से बने हुए परिधानों को पहनते थे और बाद में इन्होंने सूती वस्त्र भी पहनना प्रारंभ कर दिया था। स्त्रियां परिधानों के अलावा फूलों का प्रयोग करती थी।

चीन का आर्थिक जीवन

चीन के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहां के लोग चावल, गेहूँ, बाजरा, सोयाबीन, चाय की खेती करते थे। कृषि कार्य के अलावा चीन के लोग पशुपालन का कार्य भी करते थे। पशुओं में भेङ पालन व सूअर पालन का कार्य किया जाता था।

चीन का व्यापार एवं उद्योग

चीन में सबसे ज्यादा विकसित रेशम का उद्योग था। व्यापार जल व थल दोनों मार्गों से होता था। चीन का व्यापार मिस्र, मेसोपोटामिया, ईरान, भारत और रोमन से होता था। चीन से सबसे ज्यादा व्यापार रेशम का होता था। रेशम के अलावा चीनी मिट्टी के बर्तन, कागज, लकङी, सोने-चांदी की हाथ से बनी वस्तुओं का निर्यात किया जाता था। चीन के लोग सोने तथा चाँदी को बाहर से आयात करते थे। चीन के लोग कागज का निर्माण भी करते थे।

ऐसा माना जाता है, कि 5 वीं शताब्दी में चीन में सोने व चांदी के सिक्कों का प्रयोग किया जाता था। परंतु कागज के आविष्कार के बाद कागजी मुद्रा का भी प्रयोग किया जाने लगा था। चीन में बैंकिंग प्रणाली का प्रचलन भी था। बैंगिक प्रणाली की शुरुआत भी चीन से ही हुई थी।

चीन के धार्मिक जीवन का इतिहास

प्रारंभ में चीन के लोग अंधविश्वास और जादू टोने से ग्रसित थे। तथा प्राकृतिक दैवीय शक्तियों के उपासक थे। परंतु चीन में धर्म का कोई विशेष महत्त्व नहीं था। चीन में कोई पुरोहित भी नहीं हुआ करते थे। उस समय के लोग जिसकी पूजा करते थे, उसे शंगति कहा जाता था, जिसका अर्थ होता था, स्वर्ग का देवता। राजा को शंगति का पुत्र माना जाता था।

कला का विकास

तत्कालीन चीनी समाज के लोग मकान को बनाने में लकङी, चूना एवं पत्थर का प्रयोग करते थे।

चीन के इतिहास में सर्वप्रथम जिस स्मारक का नाम आता है, वह चीन की दीवार । चीन की दीवार विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। इस दीवार का निर्माण हूणों के आक्रमण से बचने के लिये किया जाता था। इस दीवार का निर्माण चीन के सम्राट शी ह्वांग टी ने करवाया था।

चीन की सभ्यता के लोगों ने चीन की दीवार के अलावा भव्य राजमहलों, बौद्ध धर्म के मंदिरों तथा विहारों का निर्माण करवाया। चीन में बने हुये पैगोडा मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं।चीन की चित्रकला काफी उन्नत तथा अद्वितीय थी। खुदाई में प्राप्त हुये बर्तनों एवं मंदिरों की दीवारों पर चित्रकला के काफी सुन्दर नमूने प्राप्त हुये हैं। चित्रकला के साथ – साथ मूर्तिकला में भी चीनीवासी अग्रणी थे। मूर्तिकला को उन्होंने काफी विकसित किया।

चीन की लिपि

चीन की लिपि अत्यंत प्राचीन मानी जाती है, इस लिपि में चित्रों एवं सांकेतिक चिन्हों का प्रयोग किया जाता था। इस लिपि में लगभग 4 हजार संकेत हैं। इसीलिये यह लिपि बहुत ही कठिन है। इसी लिपि को चीनी भाषा की जननी माना जाता है। चीन का साहित्य गद्य व पद्य दोनों रूपों में लिखा गया। इतिहास लेखन भी प्रारंभ हो गया था।

चीन की सभ्यता के आविष्कार एवं खोजें

चीन की सभ्यता में छापेखाने का प्रयोग किया गया था। चीनी मिट्टी के बर्तनों का आविष्कार किया गया। रेशम का कपङा बनना प्रारंभ हो गया था। चीन में कागज का आविष्कार हुआ। ताश के पत्ते चीन की सभ्यता की ही देन है। इनके अलावा बारूद भूकंपमापी यंत्र, दशमलव पद्धति, तथा पाई का मान निकालने की पद्धति भी चीन में विकसित हुई थी। इस सभ्यता में कुतुबनुमा का आविष्कार भी किया गया था।

चीन में कृषि का ज्ञान ही सभ्यता का आधार बना तथा यह सभ्यता हर दृष्टि से एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।

चीन विश्व की चार बड़ी पुरानी सभ्यताओं में से एक है। चीनी सभ्यता की एक बड़ी विशेषता ये है कि वह विश्व में एकमात्र ही शुरू से अब तक लगातार चली आने वाली सभ्यता है।

पाँच हजार वर्ष पुरानी चीनी सभ्यता साबित करने वाले ठोस सबूतों में त्यांगत्सी नदी के मध्य और निचले भाग में खोजी गई विश्व की सबसे पुरानी जल संरक्षण परियोजना, चीन का सब से पुराना महल भवन ,पीली नदी के मध्य भाग में पाया गया सबसे पुराना चीनी अक्षर, सबसे पुरानी वेधशाला और इत्यादि।

सर्वप्रथम चीनी शासक स्वयं को देश की जनता का कल्याणकारण मानते थे। जनता के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानते थे।

द्वितीय चीनी सभ्यता में शिक्षित व्यक्ति को जितना महत्त्व, मान सम्मान दिया जाता था, उतना अन्य किसी सभ्यता में नहीं दिया गया। माता-पिता, अपने बच्चों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देते थे।

तृतीय चीनी समाज में मनोरंजन को विशेष स्थान प्राप्त था।

चतुर्थ चीनी सभ्यता में सर्वप्रथम रेशम के वस्त्रों का निर्माण किया गया और विश्व में इसका प्रसार किया गया।

चीनी इतिहास की प्रमुख तिथियाँ

ई.पू. 1027-256ई. तक चीन वंश (कन्फ्यूशियस, लाओ-त्से),

ई.पू. 221-206 ई. चि-इन वंश (चीन की बङी दीवार का निर्माण)

618 ई.- 907 ई. चीनी साम्राज्य का विस्तार (बारूद, काष्ठ ब्लॉक मूद्रण)

917 ई.- 1217 ई. शुंग वंश (उन्नत व्यापार, चित्रकारी, हस्त कलाएँ)

1217 ई. – 1368 ई. मंगोलों का आधिपत्य

1368 ई. – 1644 ई. मिग वंश (सुन्दर चीनी-मिट्टी के बर्तन)

1644 ई. – 1912 ई. चिग वंश (मांचू वंश का आधिपत्य, चीन में प्रभाव-मंडल बॉक्सर (विद्रोह))

1912 ई.-1949 ई. चीनी गणराज्य (सनयातसेन, च्यांग काई शेक)

1949 ई. समकालीन चीन (मुख्य भूमि पर साम्यवादियों का नियंत्रण, माओ-त्से तुंग, फारमोसा की राष्ट्रवादी सरकार)

पंचम चीनी सभ्यता में कला के क्षेत्र में चीनी कलाकार सुन्दरता एवं स्वच्छता का तो ध्यान रखते ही थे, साथ ही कला को आनंद का स्त्रोत एवं मानव भावनाओं का दर्पण मानते थे।

प्राचीन चीनी सभ्यता के वासी मंगोल जाति के मानव थे तथा इनमें अन्य किसी विदेशी जाति का समावेश इस कारण नहीं हो पाया, क्योंकि तत्कालीन चीन में पहुँचना बहुत कठिन था। मंगोल जाति के लोग शारीरिक रूप से गोल सिर एवं मुख तथा छोटे हाथ-पैर वाले होते थे। वैज्ञानिकों का यह मानना है, कि लगभग पाँच लाख वर्ष पूर्व मनुष्य यहाँ रहता था, जिसे पेकिंग मैन कहा गया है।

चीन की विशाल दीवार वास्तुकला की उन्नति का प्रतीक है। इसका निर्माण महान राजा शी-हुआंग-टी द्वारा कराया गया था।

शी-हुआंग-टी 247 ई.पू. से 210 ई.पू. तक शासन में रहा। इसने कला के विकास पर काफी बल दिया। ह्वांग-हो एवं सिक्यांग नदियों की घाटी में हुआ था। ह्वांगहो नदी को चीन का शोक के नाम से जाना जाता है।

विश्व में सर्वप्रथम कागज तथा भूकंप का पता लगाने वाले यंत्र का आविष्कार चीनी सभ्यता के अंतर्गत ही हुआ।

विश्व में सर्वप्रथम सिक्कों का प्रचलन चीन में हुआ। सूर्य एवं चंद्र दोनों पर आधारित एक पंचांग का निर्माण चीनियों ने किया।

विश्व में सर्वप्रथम चाय एवं रेशम का प्रयोग चीन में हुआ।

चीन पहुँचने वाला प्रथम विदेशी यात्री मार्को पोलो था। बौद्ध धर्म का शासक चिंगती के शासनकाल में चीन में प्रवेश हुआ। चीन के सम्राट वू-ती ने सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति हेतु विश्व में पहली बार प्रतियोगिता परीक्षा की पद्धति चीन में लागू की। सर्वप्रथम छापाखाना का आविष्कार चीन में हुआ। ताश एवं पतंगबाजी का प्रचलन सर्वप्रथम चीन में हुआ।

सौर-चाँद पंचांग सर्वप्रथम चीन में प्रचलित हुआ।

365 1/4 दिन का 1 वर्ष की गणना सर्वप्रथम चीन में ही आरंभ हुई।

मंगोल आक्रमण से रक्षा के लिये चीनी शासक शी-हुआंग-टी ने लगभग 8000 किमी. लंबी एवं 6 मीटर चौङी चीन की महान दीवार का निर्माण करवाया।

महानतम दार्शनिक कन्यफ्यूशियस ने चीन में एक नया धर्म आरंभ किया।

पैगोडा (बौद्ध मंदिर) चीन से ही संबंधित है। चीन में तांग-युग कवियों के युग के नाम से जाना जाता है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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