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बौद्ध धर्म की देन

बौद्ध धर्म की देन

भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों के निर्माण एवं विकास में बौद्धधर्म का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है।

बौद्ध धर्म की देन निम्नलिखित हैं-

  1. बौद्धधर्म ने ही सर्वप्रथम भारतीयों को एक सरल तथा आडंबररिहत धर्म प्रदान किया, जिसका अनुसरण राजा-रंक, हर्ष आदि राजाओं में जो धार्मिक सहिष्णुता देखने को मिलती है, वह बौद्धधर्म के प्रभाव का ही परिणाम थी। अशोक ने युद्ध विजय की नीति का परित्याग कर धम्मविजय की नीति को अपनाया तथा लोकल्याण का आदर्श समस्त विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया।
  2. बौद्धधर्म के उपदेश तथा सिद्धांत पाली भाषा में लिखे गये,जिससे पाली भाषा एवं साहित्य का विकास हुआ।
  3. बौद्ध संघों की व्यवस्था जनतंत्रतात्मक प्रणाली पर आधारित थी। इसके तत्वों को हिन्दू मठों तथा बाद में राजशासन में ग्रहण किया गया।
  4. भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र की प्रगति बौद्धधर्म के प्रभाव से ही हुई। बौद्ध दर्शन में शून्यवाद तथा विज्ञानवाद की जिन दार्शनिक पद्धतियों का उदय हुआ, उनका प्रभाव शंकराचार्य के दर्शन पर पङा। यही कारण है, कि शंकराचार्य को कभी-कभी प्रच्छन्न-बौद्ध भी कहा जाता है।
  5. बौद्धधर्म ने लोगों के जीवन का नैतिक स्तर ऊँचा उठाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। जन-जीवन में सदाचार एवं सच्चरित्रता की भावनाओं का विकास हुआ। बुद्ध स्वयं नैतिकता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे तथा ज्ञान से भी इसे बढकर मानते थे।
  6. बौद्धधर्म ने न केवल भारत अपितु विश्व के देशों को अहिंसा, शांति, बंधुत्व, सह-अस्तित्व आदि का आदर्श बताया। इसके कारण ही भारत का विश्व के देशों पर नैतिक आधिपत्य कायम हुआ। बुद्ध ने मानव जाति की समानता का आदर्श प्रस्तुत किया था।
  7. बौद्धधर्म के माध्यम से भारत का सांस्कृतिक संपर्क विश्व के विभिन्न देशों के साथ स्थापित हुआ। भारत के भिक्षुओं ने विश्व के विभिन्न भागों में जाकर अपने सिद्धांतों का प्रचार किया। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से आकर्षित होकर शक, पार्थियन, कुषाण आदि विदेशी जातियों ने बौद्धधर्म को ग्रहण कर लिया। यवन-शासक मेनाण्डर तथा कुषाण शासक कनिष्क ने इसे राजधर्म बनाया और अपने साम्राज्य के साधनों को इसके प्रचार में लगा दिया। अनेक विदेशी यात्री तथा विद्वान बौद्धधर्म का अध्ययन करने तथा पवित्र बौद्धस्थलों को देखने की लालसा से भारत की यात्रा में आये। फाहियान, ह्वेनसांग, इत्सिंग जैसे चीनी यात्रियों ने भारत में वर्षों तक निवास कर इस धर्म का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया।आज भी विश्व की एक तिहाई जनता बौद्धधर्म तथा उसके आदर्शों में अपनी श्रद्धा रखती है।
  8. बौद्धधर्म की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन भारतीय कला एवं स्थापत्य के विकास में रही। इस धर्म की प्रेरणा पाकर शासकों एवं श्रद्धालु जनता द्वारा अनेक स्तूप, विहार, चैत्यगृह, गुहायें, मूर्तियाँ आदि निर्मित की गयी, जिन्होंने भारतीय कला को समृद्धशाली बनाया। सांची, सारनाथ, भरहुत आदि के स्तूप, अजंता की गुफायें एवं उनकी चित्रकारियाँ, अनेक स्थानों से प्राप्त एवं संग्रहालयों में सुरक्षित बुद्ध तथा बौधिसत्वों की मूर्तियाँ आदि बौद्धधर्म की भारतीय संस्कृति को अनुपम देन हैं। गंधार, मथुरा, अमरावती, नासिक, कार्ले, भाजा आदि बौद्धकला के प्रमुख केन्द्र थे। गंधार शैली के अंतर्गत ही सर्वप्रथम बुद्ध मूर्तियों का निर्माण किया गया। आज भी भारत के कई स्थानों पर बौद्ध स्मारक विद्यमान हैं। तथा श्रद्धालुओं के आकर्षण के केन्द्र बने हुये हैं।
  9. विश्व के देशों को अहिंसा, करुणा, प्राणिमात्र पर दया आदि का संदेश भारत ने बौद्धधर्म के माध्यम से ही दिया।

इस प्रकार स्पष्ट है, कि शताब्दियों पूर्व महात्मा बुद्ध ने जिन सिद्धांतों एवं आदर्शों का प्रतिपादन किया वे आज के वैज्ञानिक युग में भी अपनी मान्यता बनाये हुये हैं, तथा संसार के देश उन्हें कार्यान्वित करने का प्रयास कर रहे हैं।भारत ने अपने राजचिह्न के रूप में बौद्ध प्रतीक को ही ग्रहण किया है, तथा वह शांति एवं सह-अस्तित्व के सिद्धांतों का पोषक बना हुआ है। पंचशील का सिद्धांत बौद्धधर्म की ही देन है। आधुनिक संघर्षशील युग में यदि हम बुद्ध के सिद्धांतों का अनुसरण करतें तो निःसंदेह शांति एवं सद्भाव स्थापित हो सकते हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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