प्राचीन भारतइतिहासकनिष्ककुषाण वंश

कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार

कुषाण साम्राज्य मध्य एशिया से पूर्वी भारत तक फैला था। इस विस्तृत प्रदेश में बौद्ध धर्म का खूब प्रचार-प्रसार हुआ। ईसा पूर्व दूसरी शता. से ईस्वी सन् दूसरी शता. तक की अवधि में भारत के समस्त धार्मिक अवशेषों में बौद्ध धर्म से संबंधित अवशेषों की संख्या सबसे अधिक है।

इस समय बहुसंख्यक चैत्यों एवं विहारों का निर्माण करवाया गया। प्रथम कुषाण शासक कुजुल कडफिसेस के समय से ही कुषाणों का झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हो गया था।

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भारतीय इतिहास में कनिष्क की ख्याति उनकी विजयों के कारण नहीं, अपितु शाक्य मुनि के धर्म को संरक्षण प्रदान करने के कारण है। उत्तरी बौद्ध अनुश्रुतियों में कनिष्क के बौद्ध मत में दीक्षित होने की कथा अशोक के ही समान है। हमें पता चलता है, कि वह प्रारंभ में अत्यंत निर्दयी तथा अत्याचारी था, जो बाद में बौद्ध धर्म के प्रभाव से उदार तथा सदाचारी बन गया। किन्तु बौद्ध लेखकों के इस प्रकार के विवरण काल्पनिक हैं। तथा अपने धर्म की अतिरंजना करने के उद्देश्य से गढे गये हैं।

कनिष्क के सिक्कों तथा पेशावर के लेख के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है,कि वह अपने शासन के प्रारंभिक वर्षों में ही बौद्ध हो गया था। उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय सुदर्शन नामक बौद्ध आचार्य को दिया जाता है।

पेशावर में प्रसिद्ध चैत्य का निर्माण करवाकर उसने बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा प्रकट की।

कनिष्क ने बौद्ध धर्म का प्रवेश तो सम्राट अशोक के काल में ही हो चुका था। पश्चिमोत्तर सीमा में हिन्दूकुश पर्वत पारकर अफगानिस्तान तथा बैक्ट्रिया के मार्ग से बौद्ध प्रचारक काश्गर, समरकंद, टैरिमघाटी होते हुए संपूर्ण मध्य एशिया में फैल गये थे।

कुषाणों ने इस कार्य को आगे बढाया। मध्य एशिया के साथ भारत का घनिष्ठतम संबंध कुषाणकाल में ही स्थापित हुआ। इसी समय महायान बौद्ध धर्म के प्रचारक अपना संदेश तथा धर्मग्रंथों के साथ वहां पहुंचे। कनिष्क के मध्य एशिया में अनेक विहार, स्तूप एवं मूर्तियों का निर्माण करवाया।

तजाकिस्तान से मिली बुद्ध की विशालकाय मूर्तियां तथा अवशेष यह स्पष्ट करते हैं, कि कनिष्क के समय (प्रथम शता. ईस्वी) में बौद्ध धर्म उन प्रदेशों में फैल चुका था। काशगर, खोतान, कूची, यारकंद, कङासहर, तुर्फानर आदि में अनेक विहार थे, जिनमें हजारों भिक्षु निवास करते थे। यही से बौद्ध प्रचारक चीन गये।

चीन में बौद्ध धर्म का प्रवेश 65 ई. में हन सम्राट मिंग ती (57-75 ई.) में हुआ। हन शासक कुषाण राजाओं के समकालीन थे। चीनी इतिहासकारों के अनुसार मिंग ती ने बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित होकर अपना दूत भारत भेजा थआ। जो अपने साथ बौद्ध साहित्य, मूर्तियां तथा काश्यप, मातंग एवं धर्मारण्य जैसे बौद्ध विद्वानों को लेकर चीन पहुँचे थे।

उनके निवास के लिये चीनी शासकों ने प्रसिद्ध श्वेताश्व विहार का निर्माण करवाया था। भारत से बौद्ध धर्म से संबंधित पाण्डुलिपियां, चित्र आदि वहां ले जाये गये।

कनिष्क के शासन काल में कश्मीर के कुण्डलवन नामक स्थान में बौद्ध धर्म की चतुर्थ संगीति का आयोजन किया गया था। उसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र ने की थी, तथा अश्वघोष उसके उपाध्यक्ष बनाये गये। इस संगीति में बौद्ध त्रिपिटकों के प्रमाणिक पाठ तैयार हुये तथा विभाषाशास्त्र आदि बौद्ध ग्रंथों का संकलन किया गया। इसमें लगभग 500 विद्वान भिक्षुओं ने भाग लिया था।

कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म दो संप्रदायों में विभक्त हो गया – 1.) हीनयान, 2.) महायान। कनिष्क ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को ही राज्याश्रय प्रदान किया तथा स्वदेश एवं विदेश में उसका प्रचार-प्रसार किया।

बौद्ध धर्म के संप्रदाय-

कनिष्क ने बौद्ध धर्म को अपनाया, लेकिन वह अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था। उसके सिक्कों पर बुद्ध की आकृतियों के अलावा यूनानी, एलमी, मिथ्री, जरथ्रुस्त्री तथा हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियाँ भी उत्कीर्ण मिलती हैं। इनमें आइशो(शिव), मिइरो (ईरानी मिथ्र, सूर्य), माओ (चंद्र), नाना (सुमेरियन मातृदेवी), हेलियोस तथा सेलेनी (यूनानी सूर्य तथा चंद्र) उल्लेखनीय थे।

कनिष्क के उत्तराधिकारी हुविष्क के काल में भी अन्य धर्मों के साथ-2 बौद्ध धर्म की भी प्रगति होती रही। उसके शासन काल के 47 वें वर्ष में अंकित एक बौद्ध स्तंभ लेख से पता चलता है, कि जीवक नामक भिक्षु ने हुविष्क के बौद्ध विहार को दान दिया था। 51 वें वर्ष के वर्दक लेख में शाक्यमुनि की धातु मंजूषा स्थापित किये जाने का वर्णन है। वासुदेव के काल में भी इस धर्म की उन्नति हुई। मथुरा से प्राप्त 67 वें वर्ष के लेख में महासंघिक आचार्यों के लिये एक बुद्ध प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है।

इस प्रकार स्पष्ट है, कि यवन-शक-कुषाण राजाओं के काल में बौद्ध धर्म उत्तर-पश्चिम तथा देश के अन्य भागों में काफी लोकप्रिय हो गया।

कनिष्क के काल में साहित्यिक प्रगति

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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