प्राचीन भारतइतिहासकनिष्ककुषाण वंश

कनिष्क के समय में साहित्यिक प्रगति

कनिष्क का काल साहित्यिक उन्नति के लिये काफी प्रसिद्ध था। वह विद्या का उदार संरक्षक था तथा उसके दरबार में उच्चकोटि के विद्वान तथा दार्शनिक निवास करते थे। ऐसे विद्वानों में अश्वघोष का नाम सर्वप्रमुख है। वे कनिष्क के राजकवि थे।

कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कनिष्क।

अश्वघोष की रचनाओं में तीन प्रमुख रचनायें निम्नलिखित थी-

  1. बुद्धचरित
  2. सौन्दरानंद
  3. शारिपुत्रपरिकरण

इनमें प्रथम दो महाकाव्य तथा अंतिम नाटक ग्रंथ है।

बुद्धचरित में गौतम बुद्ध के जीवन का सरल तथा सरस वर्णन मिलता है।

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सौन्दरानंद में बुद्ध के सौतेले भाई सुंदर नंद के संयास ग्रहण का वर्णन है। यह ग्रंथ अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध होता है। इसमें 18 सर्ग हैं।

शारिपुत्रप्रकरण नौ अंकों का एक नाटक ग्रथ है। जिसमें बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का नाटकीय विवरण प्रस्तुत किया गया है। कवि तथा नाटककार होने के साथ-2 अश्वघोष एक महान् संगीतज्ञ, कथाकार, नीतिज्ञ तथा दार्शनिक भी थे।

अश्वघोष के अलावा माध्यमिक दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य नागार्जुन भी कनिष्क की राजसभा में निवास करते थे। उन्होंने प्रज्ञापारमितासूत्र की रचना की थी, जिसमें शून्यवाद (सापेक्ष्यवाद) का प्रतिपादन है।

अन्य विद्वानों में पार्श्व, वसुमित्र, मातृचेट, संघरक्ष आदि के नाम उल्लेखनीय है।

संघरक्ष कनिष्क के पुरोहित थे। वसुमित्र ने चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता की तथा त्रिपिटकों का भाष्य तैयार करने में प्रमुख रूप से योगदान दिया था।

विभाषाशास्त्र की रचना का श्रेय वसुमित्र को ही दिया जाता है। कनिष्क के ही दरबार में आयुर्वेद के विख्यात विद्वान चरक निवास करते थे। वे कनिष्क के राजवैद्य थे, जिन्होंने चरक संहिता की रचना की थी। यह औषधिशास्र के ऊपर प्राचीनतम रचना है। इसका अनुवाद अरबी तथा फारसी भाषाओं में किया जा चुका है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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