प्राचीन भारतइतिहासशक शाखा

शकों की प्रमुख शाखाओं का वर्णन

शक कौन थे?

शकों की प्रमुख शाखायें निम्नलिखित थी-

तक्षशिला के शक-

तक्षशिला के प्रारंभिक शक शासकों में मेउस का नाम सर्वप्रमुख है। सामान्यतः उसका समय 20 ईसा पूर्व से 22वी.ईस्वी तक माना जाता है।पश्चिमोत्तर प्रदेशों से उसके अनेक सिक्के मिलते हैं। उनकी पहचान तक्षशिला ताम्रपत्र के महाराज मोग से की जाती है। अल्टेकर महोदय के अनुसार वह पहले पार्थियनों का सामंत था।

पार्थियन शासक के निर्बल पङ जाने पर उसने अपने को स्वतंत्र कर लिया। उसके साम्राज्य में पूर्वी गांधार शामिल था। तथा तक्षशिला उसकी राजधानी थी। सिक्कों के आधार पर कहा जाता है, कि उसका साम्राज्य पुष्कलावती, कपिशा और पूर्व में मथुरा तक विस्तृत था। वह भारत का प्रथम शक-विजेता था।

मेउस के बाद एजेज तक्षशिला का शक शासक हुआ। वह भी एक प्रतापी राजा था। उसने पंजाब में यूथीडेमस कुल के यवनों को परास्त कर वहाँ अपना आधिपत्य कायम किया। उसने यवन नरेश अपोलोडोटस द्वितीय तथा हिप्पास्ट्रेटस की मुद्राओं को पुनरंकित करवाया।

एजेज के बाद एजिलिसेज राजा हुआ। वह संभवतः एजेज का पुत्र था।तथा कुछ समय तक उसने अपने पिता के साथ मिलकर राज्य किया था। एजिलिसेज की मुद्रायें दो प्रकार की हैं। प्रथम प्रकार की मुद्राओं के मुख भाग पर यूनानी लिपि में एजेज का नाम तथा पृष्ठ भाग पर खरोष्ठी में एजिलिसेज का नाम मिलता है।

इन दोनों को महाराज कहा गया है। द्वितीय प्रकार की मुद्राओं के मुख भाग पर यूनानी में एजिलिसेज तथा पृष्ठ भाग पर खरोष्ठी लिपि में एजेज नाम उत्कीर्ण है। इस आधार पर विद्वानों का अनुमान है, कि एजेज नाम के दो शक शासक हुए। एजिलिसेज के पहले एजेज प्रथम हुआ तथा एजेज द्वितीय एजिलिसेज के बाद राजा हुआ।

एजेज द्वितीय के ही समय से पश्चिमोत्तर भारत से शकों की शक्ति का ह्वास आरंभ हो गया। इसके लिए दो कारण उत्तरदायी थे।

  1. फ्रायोटीज नामक एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने तक्षशिला पर अधिकार कर लिया।
  2. पश्चिम की ओर से गोण्डोफर्नीज ने शक राज्य पर आक्रमण किया तथा बाद में तक्षशिला पर अधिकार कर लिया। फिलोस्ट्रेटस के विवरण से ज्ञात होता है कि फ्रायोटीज एक शक्तिशाली राजा था, तथा सिंध प्रदेश के क्षत्रप पर भी उसका अधिकार था। ऐसा प्रतीत होता है कि फ्रायोटीज को पराजित करने के बाद ही पार्थियन गोण्डोफर्नीज ने तक्षशिला पर अपना अधिकार किया था।

इस प्रकार तक्षशिला में शकों का शासन समाप्त हुआ। मेउस से ऐजेज द्वितीय तक के राजाओं ने लगभग 20 ईसा पूर्व से 43-44 ईस्वी तक शासन किया। भारतीय शासनतंत्र के विकास में उनका मुख्य योगदान यह था, कि उन्होंने क्षत्रप शासन-प्रणाली का प्रचलन किया। चुक्ष (तक्षशिला के उत्तर में वर्तमान चच), कपिशा, अभिसार, प्रस्थ, पुरुषपुर (पेशावर), शाकल, मथुरा आदि प्रदेशों में क्षत्रपों की नियुक्ति की गयी थी। इनमें से अधिकांश क्षत्रप कुलों ने शकों के पतन के बाद पहल्लवों तथा कुषाणों की अधीनता में शासन किया।

शकों की क्षत्रप शासन-प्रणाली ।

पश्चिमी भारत के क्षहरात -1.) महाराष्ट्र का क्षहरात वंश, 2.)कार्दमक (चष्टन) वंश अथवा सुराष्ट्र और मालवा के शक-क्षत्रप।

महाक्षत्रप रुद्रदामन।

जूनागढ(गिरनार) अभिलेख।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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