प्राचीन भारतइतिहास

क्षत्रप वंश का इतिहास

मथुरा के शक-क्षत्रप – मथुरा में शकों का शासन कब और कैसे स्थापित हुआ, यह निश्चित रूप से बता सकना कठिन है। टार्न तथा स्टेनकोनो जैसे कुछ विद्वान जैन ग्रंथ कालकाचार्य कथानक के आधार पर यह प्रतिपादित करते हैं, कि मालवा में विक्रमादित्य (57 ईसा पूर्व) द्वारा पराजित होने और खदेङे जाने पर शक मथुरा में आकर बस गये।इसी शासक को मालव अथवा विक्रम संवत् का संस्थापक माना जाता है।

जैन ग्रंथों के अनुसार इसके 135 वर्ष बाद शक-संवत् का प्रारंभ (78ईस्वी में ) हुआ। मथुरा के क्षत्रपों का तक्षशिला के शकों के साथ क्या संबंध थे, यह भी पता नहीं है। मथुरा के सिंह – शीर्ष अभिलेख में इस क्षेत्र के अनेक शक सरदारों के नाम मिलते हैं। संभवतः यह अभिलेख महाक्षत्रप राजूल के काल में उसकी प्रधान महिषी द्वारा उत्कीर्ण करवाया गया था। राजूल का समीकरण महाक्षत्रप राजवुल से किया जाता है, जिसका उल्लेख मोरा (मथुरा) से प्राप्त ब्राह्मी में उत्कीर्ण लेख में हुआ है।

मथुरा सिंहशीर्ष अभिलेख से पता चलता है, कि राजूल या राजवुल मथुरा का प्रथम शासक था। उसके सिक्कों पर महाक्षत्रप की उपाधि खुदी हुई मिलती है। सिक्के सिंधु नदी घाटी से गंगा के दोआब तक पाये गये हैं। सिक्कों की प्राप्ति – स्थानों से ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि राजवुल का अधिकार पूर्वी पंजाब से मथुरा तक था।

राजवुल के बाद उसका पुत्र शोडास राजा हुआ। मथुरा से उसके अभिलेख तथा सिक्के मिलते हैं। उसके सिक्कों पर केवल क्षत्रप की उपाधि मिलती है। परंतु आमोहिनी दान-पत्र में उसे महाक्षत्रप कहा गया है। ऐसा लगता है कि अपने पिता की मृत्यु के बाद वह महाक्षत्रप बना था। पूर्वी पंजाब से उसका कोई सिक्का नहीं मिलता। इससे ऐसा अनुमान लगाया जाता है, कि उसका राज्य केवल मथुरा तक ही सीमित था।

शोडास के उत्तराधिकारियों के विषय में हमें पता नहीं है। एक सिक्के पर तोरणदास नामक किसी शक-सरदार का उल्लेख हुआ है, जो अपने को महाक्षत्रप का पुत्र बताता है। संभव है कि वह शोडास का ही पुत्र रहा हो। उसके बाद मथुरा से शकों की स्वतंत्र सत्ता का अंत हो गया तथा वहाँ कुषाणों का आधिपत्य हो गया। अब शक क्षत्रप कुषाण नरेशों की अधीनता में शासन करने लगे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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