इतिहासजापानविश्व का इतिहास

जापान का मेजी संविधान

जापान का मेजी संविधान

जापान का मेजी संविधान – जब जापान का आधुनिकीरण का समय चल रहा था, तभी 3 मार्च, 1882 ई. को ईतो हीरोबूमी को पश्चिमी देशों की शासन पद्धतियों का अध्ययन करने के लिये यूरोप भेजा गया। ईतो बर्लिन, वियना, लंदन और रूस होते हुये वापस जापान लौटा।

उसके बाद ईतो ने तीन सुयोग्य व्यक्तियों को अपनी सहायता के लिये नियुक्त किया। संविधान का प्रारूप तैयार होने पर प्रिविकौंसिल ने उसे पुष्ट कर दिया। 11 फरवरी, 1889 ई. को नए संविधान की घोषणा कर दी गयी। इसे मेजी संविधान कहा जाता है।

जापान का मेजी संविधान
जापान का मेजी संविधान : नया संविधान

नए संविधान में संसद या डाइट के संगठन का प्रावधान था। इसके दो सदन कायम किये गये – उच्च सदन एवं निम्न सदन। उच्च सदन में अमीर उमरावों एवं कुलीन वर्ग के लोग, सम्राट द्वारा मनोनीत व्यक्ति तथा सर्वाधिक कर देने वाले लोग सदस्य होते थे। निम्न सदन में 15 येन या इससे अधिक कर देने वाले व्यक्तियों के निर्वाचित प्रतिनिधि थे।

जापान की राजनीतिक चेतना का विकास

जापान में शिक्षा

कानूनों की वैधता के लिये संसद की स्वीकृति अनिवार्य थी। डाइट का अधिवेशन हर वर्ष तीन महीने का होता था। इसके सदस्यों को बहस करने का अधिकार था तथा उन्हें गिफ्तार नहीं किया जा सकता था, किन्तु उनके वित्तीय अधिकार बहुत सीमित थे।

शाही घराने के खर्च और उसके कर्मचारियों के वेतन उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर थे। सम्राट को प्रत्येक कानून के विषय में निषेधाधिकार प्राप्त था। वह किसी समय संसद के अधिवेशन को समाप्त कर सकता था तथा प्रतिनिधि सभा को भंग कर सकता था। संसद का अधिवेशन नहीं होने की अवधि में उसे अध्यादेश जारी करने का अधिकार था।

जापान का मेजी संविधान में दो वैधानिक परामर्शदात्री समितियों का गठन करने का प्रावधान था – एक का नाम मंत्रिपरिषद तथा दूसरी का नाम प्रिवी-कौंसिल था।

जापान का मेजी संविधान

जापान का मेजी संविधान में मंत्रिपरिषद शासन के कार्यकारिणी कार्यों को सम्पादित करती थी, किन्तु वह संसद के प्रति उत्तरदायी न होकर सम्राट के प्रति उत्तरदायी थी। प्रिवी-कौंसिल का निर्माण स्वयं सम्राट करता था और इसका काम विभिन्न समस्याओं पर सम्राट को परामर्श देना था।

जापान का मेजी संविधान में जनता को कुछ मूल अधिकार भी प्रदान किये गये। प्रत्येक व्यक्ति को भाषण देने, लिखने, संस्था बनाने और अपनी पसंद का धर्म मानने की स्वतंत्रता थी। सभी व्यक्तियों को योग्यतानुसार सरकारी पदों पर नियुक्ति का समान अधिकार था। किसी व्यक्ति के घर में घुसकर मनमानी ढंग से तलाशी नहीं ली जा सकती थी। उन्हें कानून के अनुसार ही गिरफ्तार किया जा सकता था और न्यायालय में मुकदमा चलाए बिना दंडित नहीं किया जा सकता था। वे संपत्ति रख सकते थे और बेच भी सकते थे।

जापान का मेजी संविधान चूँकि जन-प्रतिनिधियों द्वारा निर्मित नहीं था, वरन् सम्राट की ओर से उपहार था, इसलिये उसमें संशोधन करने का अधिकार केवल सम्राट को ही था। इसके लिये जापानी संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति आवश्यक थी।

संविधान की व्याख्या का अधिकार न्यायालयों को दिया गया था, किन्तु मतभेद होने की स्थिति में उसके निबटारे का अधिकार प्रिवी-कौंसिल को था। कोई कानून बनाकर उसमें संशोधन करना संसद के नियंत्रण से बाहर था। इसमें प्रिवी-कौंसिल तथा शाही परिवार की परिषद की सलाह से ही संशोधन किया जा सकता था। सम्राट को अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे।

1873 ई. में फौजदारी कानूनों की रचना आरंभ करके 1882 ई. में एक दंड संहिता स्वीकार कर ली गयी। इन कानूनों पर फ्रांसीसी कानूनों का गहरा प्रभाव था। 1870 ई. में दीवानी कानूनों की संहिता बनाने का काम भी प्रारंभ किया गया और 1890 ई. में पूरा होने पर उसे स्वीकार कर लिया गया।

यद्यपि दीवानी संहिता में जर्मन और कुछ अन्य देशों के कानून की बातें आ गयी थी, फिर भी इसका मूल आधार फ्रांसीसी कानून था। दीवानी संहिता 1891 ई. में लागू कर दी गयी। वे समाप्त कर दिये गये।

जापान का मेजी संविधान में न्याय विभाग के पुनर्गठन में भी फ्रांस की न्याय पद्धति को आदर्श माना गया। 1889 ई. तक न्यायालय से संबंधित नई व्यवस्था की रूपरेखा तैयार कर ली गयी और 1894 ई. में संपूर्ण देश में इस पद्धति के अनुसार न्याय-प्रशासन चलने लग गया था।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : जापान का संविधान

Related Articles

error: Content is protected !!