इतिहासमध्यकालीन भारत

मदुरा के पांड्य का इतिहास | Madura ke paandy ka itihaas | History of the Pandyas of Madura

मदुरा के पांड्य – चोल साम्राज्य के विनाश के बाद पांड्य साम्राज्य की स्थापना हुई। इस पांड्य साम्राज्य को द्वितीय या परवर्ती पांड्य साम्राज्य कहा जाता है। चोलों ने मूलतः पांड्यों को ही नष्ट करके चोल साम्राज्य की स्थापना की थी और अंततः पांड्य-चोल संघर्ष के फलस्वरूप ही चोल साम्राज्य नष्ट हो गया। चोलों के विरुद्ध स्वतंत्र पांड्य साम्राज्य की स्थापना करने वाला नरेश मारवर्मन सुंदर पांड्य (1216-1238 ई.) था। इसने चोलों को अनेक स्थानों पर पराजित किया और चोलों को पराजित करके उसने अपना अभिलेख किाय। चोल नरेश राजराज तृतीय और कुलोत्तुंग तृतीय दोनों सुंदर पांड्य के दमन का विफल प्रयास करते रहे। कुलोत्तुंग तृतीय ने पांड्यों के दमन के लिये होयसलों से भी सहायता ली, परंतु सुंदर पांड्य ने इन सारे प्रयासों को विफल कर दिया। सुंदर पांड्य ने चोलों के अलावा काकतीयों को भी युद्ध में पराजित किया।

सुंदर पांड्य का उत्तराधिकारी उसका पुत्र जटावर्मन सुंदर पांड्य प्रथम था। उसने चोलों को अंतिम रूप से पराजित किया और अब चोल साम्राज्य की स्थिति पांड्यों के अधीनस्थ हो गयी। सन 1254-1256 के मध्य उसने श्रीलंका पर आक्रमण किया और श्रीलंका के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया। जटावर्मन सुंदर पांड्य के शासनकाल में भूतपूर्व चोल साम्राज्य अब पांड्य साम्राज्य का अंग हो गया। जटावर्मन सुंदर पांड्य की मृत्यु के बाद पांड्यों का परवर्ती इतिहास बङा विवाद-ग्रस्त है। मार्कोपोलो का कहना है कि इस काल में पंच-पांड्य बंधु शासन कर रहे थे जब कि बस्साफ का कहना है कि तीन पांड्य बंधु शासन कर रहे थे। संभवतः इस काल में पांड्य बंधुओं ने संयुक्त रूप से शासन करना प्रारंभ किया। पांड्य वंश का अंतिम महान शासक मारवर्मन कुलशेखर (1268-1310ई.) था। इसके शासनकाल में ही प्रसिद्ध यात्री मार्कोपोलो ने पांड्य राज्य की यात्रा की और उसने पांड्य साम्राज्य की समृद्धि, विदेश-व्यापार एवं सम्राट की न्याय-व्यवस्था की प्रशंसा की है। इसी प्रकार मुस्लिम यात्री बस्साफ ने भी पांड्य साम्राज्य के विदेशी व्यापार को बहुत प्रगतिशील एवं समृद्ध बनाया।

मारवर्मन के अभिलेखों में केरल, श्रीलंका, चोल और होयसल विजयों का उल्लेख है। मारवर्मन की मृत्यु के बाद पांड्य साम्राज्य में सुंदर पांड्य और वीर पांड्य नामक दो सौतेले भाइयों के मध्य गृहयुद्ध हो गया। इस गृहयुद्ध का लाभ मलिक काफूर ने उठाया और पांड्य साम्राज्य को खूब लूटा। अंत में उलुग खां ने अपनी दक्षिण विजयों के दौरान पांड्य साम्राज्य को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया और जलालुद्दीन अहसान को मदुरा का प्रांतपति नियुक्त किया।

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