वारंगल का काकतीय वंश
दक्षिण भारत के पूर्वी भाग में काकतीयों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता की स्थापना की। ये चालुक्यों के सामंत शासक थे। चालुक्य साम्राज्य के पतन का लाभ उठाकर चोल द्वितीय और रुद्र प्रथम ने काकतीय साम्राज्य की स्थापना की थी। रुद्र प्रथम ने वारंगल का विस्तार करके उसे काकतीय साम्राज्य की राजधानी बनाया।
काकतीय लोग अपने को चोल करिकाल का वंशज मानते थे। इस वंश का पहला ज्ञात शासक बेत प्रथम था, जिसने राजेन्द्र चोल के आक्रमण से उत्पन्न अव्यवस्था का लाभ उठाकर नलगोन्ड (हैदराबाद) में अपने लिये एक स्वतंत्र राज्य स्थापित कर दिया। उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी प्रोल प्रथम वातापी के पश्चिमी चालुक्यों का सामंत था। उसने चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम की ओर से युद्धों में भाग लिया तथा पर्याप्त ख्याति अर्जित कर ली। उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर सोमेश्वर ने अंमकोण्ड विषम (वारंगल में हनुमकुण्ड) का उसे स्थायी सामंत बना दिया। उसके उत्तराधिकारी बेत द्वितीय (1079-1090ई.) ने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य से कुछ और प्रदेश प्राप्त किये तथा अपनी राजधानी अंमकोण्ड में स्थापित की।
चालुक्य साम्राज्य के विघटन काल में काकतीय वंशी प्रोल द्वितीय ने अपने को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त कर लिया तथा गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच के प्रदेश पर अपना एकछत्र शासन स्थापित कर लिया। उसने चालुक्य नरेश तैल तृतीय को पराजित कर बंदी बना लिया, परंतु बाद में उसे स्वतंत्र कर दिया। उसका पुत्र रुद्रदेव एक कुशल योद्धा था। उसने भी तैल को परास्त किया। परंतु यादव नरेश जैतुगी ने युद्ध में रुद्रदेव की हत्या कर दी तथा उसके भतीजे गणपति को 1196 ई. के लगभग बंदी बना लिया। रुद्रदेव का छोटा भाई महादेव उसके बाद राजा बना तथा उसने केवल तीन वर्षों तक ही शासन किया। 1199 ई. में जैतुगी ने गणपति को स्वतंत्र कर दिया और वह काकतीय वंश का राजा बना।
गणपति अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा हुआ। उसने आंध्र, नेल्लोर,कांची, कर्नूल आदि को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया तथा 60 वर्षों तक शासन करता रहा। 1263 ई. में सुन्दरपाण्ड्य ने उसे हराकर कांची तथा नेल्लोर को छीन लिया। गणपति ने अपनी राजधानी वारंगल में स्थानान्तरित कर दी।
गणपति के बाद उसकी पुत्री रुद्राम्बा काकतीय राज्य की शासिका बनी। यादव वंशी महादेव ने उसे पराजित किया। इसके बाद प्रतापरुद्र शासक हुआ। उसने काकतीय वंश की शक्ति तथा प्रतिष्ठा का पुनरुद्धार किया। उसने अंबदेव को पराजित कर कर्नूल तथा कुड्डपह को पुनः जीता तथा नेल्लोर पर आक्रमण किया। परंतु 1309-10 ई. के लगभग मलिक काफूर ने वारंगल पर चढाई की तथा राजधानी पर घेरा डाला। प्रतापरुद्र वीरतापूर्वक लङता रहा, परंतु अन्ततः उसने मलिक काफूर को हाथी, घोङे तथा अमूल्य रत्न दिये। संभवतः उन्हीं रत्नों में कोहिनूर नामक हीरा भी था। मुसलमानों के वापस चले जाने के बाद प्रतापरुद्र ने अपना दक्षिणी अभियान प्रारंभ किया तथा नेल्लोर और कांची की विजय करता हुआ त्रिचनापल्ली तक जा पहुँचा। परंतु उसकी सफलतायें कुछ समय के लिये ही थी। 1323 ई. में मुहम्मद तुगलक ने उसके राज्य पर आक्रमण किया। प्रतापरुद्र पराजित हुआ तथा बंदी बना लिया गया। इसके साथ ही वारंगल का काकतीय राज्य दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित कर लिया गया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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