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देवगिरि के यादव वंश का इतिहास

दक्षिण भारत के उत्तरी भाग में देवगिरि के यादवों का राज्य था। वे पहले चालुक्यों के सामंत थे। बारहवीं शताब्दी के अंत में जब राजनीतिक अस्थिरता का दौर प्रारंभ हुआ तो स्वतंत्र यादव साम्राज्य के संस्थापक भिल्लम ने चालुक्यों के विरुद्ध आक्रामक गतिविधियाँ प्रारंभ करके अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की और इस नए राज्य की राजधानी देवगिरि की नींव डाली।

चालुक्य नरेश सोमेश्वर चतुर्थ के निर्बल शासन-काल में उसका यादव सामंत भिल्लम (1187-1191ई.) अपनी स्वतंत्रता स्थापित करने वाला प्रथम महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने चालुक्य राज्य पर आक्रमण कर उसके उत्तरी जिलों पर अधिकार कर लिया। उसके दबाव के फलस्वरूप सोमेश्वर चतुर्थ को अपनी राजधानी कल्याणी छोङकर बनवासी में शरण लेनी पङी। कल्याणी पर यादवों का अधिकार हो गया। परंतु होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय ने 1191 ई. के लगभग सोरतूर तथा लक्कुन्डी के युद्धों में भिल्लम को पराजित कर दिया। भिल्लम लङता हुआ मारा गया तथा बल्लाल उसके राज्य की उत्तरी सीमा (कृष्णा नदी) तक बढ गया। भिल्लम ने देवगिरि नामक नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया था।

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भिल्लम के बाद उसका पुत्र जैतुगी राजा बना। उसने वारंगल के काकतीय शासक रुद्र के ऊपर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी तथा उसके भतीजे गणपति को बंदी बना लिया। रुद्र के भाई महादेव के काल में संभवतः पुनः यादवों तथा काकतीयों में युद्ध हुआ। 1199ई. में महादेव की मृत्यु के बाद जैतुगी ने उसके पुत्र गणपति को मुक्त कर दिया तथा उसे वारंगल की गद्दी पर बैठाया।

जैतुगी का पुत्र तथा उत्तराधिकारी सिंघन(1210-1247ई.) हुआ। वह यादव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसने होयसल नरेश बल्लाल के विरुद्ध पुनः संघर्ष प्रारंभ किया। बल्लाल कई युद्धों में परास्त हुआ तथा सिंघन ने पुनः उससे उन सभी प्रदेशों को जीत लिया, जिन्हें भिल्लम को हराकर बल्लाल ने जीता था। उसने गुजरात पर भी आक्रमण कर वहां अपना अधिकार स्थापित कर लिया। दक्षिणी कोंकण के शिलाहार शासक भोज द्वितीय ने अपनी स्वाधीनता घोषित की, जिसे परास्त कर सिंघन ने दक्षिणी कोंकण को अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार उसके राज्य में समस्त पश्चिमी तथा मध्य दक्षिण के प्रदेश सम्मिलित हो गये।

यादववंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचंद्र हुआ। 1309 ई. में उसके राज्य पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण हुये। यादव पराजित किये गये तथा रामचंद्र ने उलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर के सम्मुख आत्म-समर्पण कर दिया।

देवगिरि पर क्रमशः खिलजियों के तीन आक्रमण हुए और अंतिम यादव शासक शंकरदेव के शासनकाल में देवगिरि को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया गया।

References:
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक-के.सी.श्रीवास्तव

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