इतिहासचंदेल वंशप्राचीन भारत

चंदेल शासक धंग का इतिहास

चंदेल शासक यशोवर्मन् की मृत्यु के बाद उसका पुत्र धंग (950-1102 ईस्वी) चंदेल वंश का राजा बना। धंग का जन्म पुष्पादेवी नामक महारानी से हुआ था।

चंदेलों की वास्तविक स्वतंत्रता का जन्मदाता धंग ही था। धंग के शासन-काल की घटनाओं के बारे में हमें खजुराहो के लेख से पता चलता है। खजुराहो में स्थित लक्ष्णणनाथ मंदिर से कई लेख प्राप्त हुये हैं, जो धंग की उपलब्धियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। इस लक्ष्मणनाथ मंदिर के लेख से पता चलता है, कि धंग ने अपनी शक्ति एवं बाहुबल से खेल-खेल में कालंजर तक तथा वहां से गोपगिरि तक का क्षेत्र जीत लिया था।

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धंग ने कालंजर को पूरी तरह से जीत लिया तथा कालंजर को अपने राज्य की राजधानी बनाया। उसके बाद धंग ने ग्वालियर, बनारस तथा प्रयाग तक के क्षेत्र को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया। ग्वालियर की विजय धंग की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता थी। इस ग्वालियर विजय के बाद चंदेलों ने प्रतिहारों की अधीनता से अपने आप को मुक्त कर लिया था।

कालंजर का दुर्ग तत्कालीन भारतीय दुर्गों में सबसे अभेद्य तथा शक्तिशाली था तथा उस पर प्रतिहार, कलचुरि, राष्ट्रकूट सभी ने प्रयास किया था, लेकिन धंग ने उसे जीत लिया था।

खजुराहो लेख के अंत में लिखा गया है, कि यशस्वी विनायक पालदेव के पृथ्वी का पालन करते समय कोई भी शत्रु उस पर अधिकार नहीं कर पाया तथा सभी का उन्मूलन कर दिया। इससे स्पष्ट है, कि 954-55 ई. तक चंदेल, कन्नौज की सम्प्रभुता को नाममात्र के लिये ही स्वीकार कर रहे थे।

इस समय तक धंग कन्नौज का वास्तविक एवं वैधानिक सम्राट बन गया था। कई अभिलेखों से पता चलता है,कि धंग ने अपने शासन के अंतिम समय में खजुराहो को चंदेलों की राजधानी बनाया था, जो बाद तक चंदेलों की राजधानी खजुराहो ही रही थी।

धंग का धर्म

धंग वैदिक अथवा ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था।शिव उसके विशिष्ट आराध्यदेव थे। इन सबके साथ-साथ वह सभी हिन्दू देवी-देवताओं का भी उपासक था। खजुराहो में उसने जैन मतानुयायियों को भी अपने धर्म के प्रचार तथा मंदिर बनवाने की सुविधा प्रदान की थी।

धंग के जीवन काल के अंतिम दिन

प्रयाग के संगम में धंग ने जलसमाधि द्वारा प्राणत्याग किया तथा नन्यौरा लेख (998ई.) से पता चलता है, कि काशी में उसने भट्टयशोधर नामक ब्राह्मण को एक गाँव दान में दिया था।

चंदेल शासक धंग की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ

धंग केवल महान विजेता ही नहीं था, अपितु कुशल प्रशासक तथा कला एवं संस्कृति का उन्नायक भी था। उसके शासन में चंदेल साम्राज्य के गौरव में अत्यधिक उन्नति हुई थी।

धंग ने ब्राह्मणों को भूमि दान में दी थी। इसके साथ ही उसने ब्राह्मणों को उच्च पद भी प्रदान किये थे। धंग का मुख्य न्यायाधीश भट्टयशोधर तथा प्रधानमंत्री प्रभास जैसे विद्वान ब्राह्मण थे।

धंग ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का भी निर्माण करवाया था।

धंग द्वारा खजुराहो में बनवाये गये मंदिर जिनके बारे में कई परीक्षाओं में पूछा जाता है-

  • जिननाथ,
  • विश्वनाथ,
  • वैद्यनाथ

जिननाथ मंदिर से धंग के शासन काल का एक लेख मिलता है, जिसमें जैन उपासकों को उसके द्वारा दिये गये दान का विवरण सुरक्षित है।

वैद्यनाथ मंदिर में उत्कीर्ण लेख से पता चलता है, कि इसका निर्माण गहपति कोक्कल द्वारा करवाया गया था। खजुराहों से प्राप्त एक अन्य लेख से पता चलता है, कि उसके समय में भगवान शंभु का एक भव्य मंदिर बनवाया गया तथा उसमें मरकतमणि तथा प्रस्तर से बने हुये दो लिंग स्थापित किये गये थे।

धंग ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा जीवेम् शरदः शतम् की उक्ति चरितार्थ करते हुये अन्ततः प्रयाग स्थित गंगा-यमुना केसंगम के पवित्र जल में निमीलित नेत्रों से रुद्र का ध्यान करते हुये तथा पवित्र मंत्रों का जाप करते हुये शरीर त्यागकर मोक्ष को प्राप्त हुआ।

धंग के बाद उसका पुत्र गंड चंदेलवंश का शासक बना। वह भी एक शक्तिशाली शासक था। गंड ने 1002 से 1019 ईस्वी तक शासन किया था। त्रिपुरी के कलचुरि-चेदि तथा ग्वालियर के कच्छपघात शासक गंड की अधीनता स्वीकार करते थे।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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