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चोल राजवंश का इतिहास

कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों से लेकर कुमारीअंतरीप तक का विस्तृत भूभाग प्राचीन काल में तमिल प्रदेश का निर्माण करता था।

इस प्रदेश में तीन प्रमुख राज्य थे – चोल, चेर तथा पाण्ड्य अति-प्राचीन काल में इन तीनों राज्यों का अस्तित्व रहा है। अशोक के तेरहवें शिलालेख में इन तीनों राज्यों का स्वतंत्र रूप से उल्लेख किया गया है, जो उसके साम्राज्य के सुदूर दक्षिण में स्थित हैं। कालांतर में चोलों ने अपने लिये एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया। उनके उत्कर्ष का केन्द्र तंजौर था और यही चोल साम्राज्य की राजधानी थी।

चोल इतिहास के साधन

साहित्य

अभिलेख

सिक्के

विदेशी विवरण…अधिक जानकारी

चोल वंश का राजनैतिक इतिहास

चोल राजवंश का प्रारंभिक इतिहास अंधकारपूर्ण है। संगम युग (100-250ई.) में चोल वंशी नरेश दक्षिण में शक्तिशाली थे। इस काल के राजाओं में करिकाल (190 ई.) का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है। संगम साहित्य में उसकी उपलब्धियों का विवरण मिलता है। वह एक वीर योद्धा था, जिसने समकालीन चेर एवं पाण्ड्य राजाओं को दबाकर रखा। उसके बाद चोलों की राजनीतिक शक्ति कमजोर पङ गयी थी। नवीं शता. ईस्वी के मध्य तक उनका इतिहास अंधकारपूर्ण हो गया था।यह तमिल देश पर पहले कलभ्रों तथा फिर पल्लवों के आक्रमणों के कारण हुआ। नवीं शती. के मध्य में (850ई.) चोलसत्ता का पुनरुत्थान हुआ। इस समय हम विजयालय नामक एक शक्तिशाली चोल राजा को पल्लवों के सामंत के रूप में उरैयूर (त्रिचनापल्ली) के समीपवर्ती क्षेत्र में शासन करता हुआ पाते हैं। उरैयूर ही चोलों का प्राचीन निवास स्थान था। इस समय पल्लवों तथा पाण्ड्यों में संघर्ष चल रहे थे। पाण्ड्यों की निर्बल स्थिति का लाभ उठाकर विजयालय ने तंजोर पर अधिकार जमा लिया तथा वहाँ उसने दुर्गा देवी का एक मंदिर बनवाया। विजयालय ने 871 ई. तक राज्य किया था।

आदित्य प्रथम (871-907 ई.)

आदित्य प्रथम विजयालिय का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। प्रारंभ में आदित्य प्रथम पल्लव नरेश अपराजित का सामंत था तथा उसने श्रीपुरबियम के युद्ध में अपने स्वामी को पाण्ड्यों के विरुद्ध सहायता प्रदान की थी…अधिक जानकारी

परांतक प्रथम (907-955ई.)

परांतक नामक शासक चोल शासक आदित्य प्रथम का पुत्र था। आदित्य प्रथम की मृत्यु के बाद परांतक शासक बना था। उसने अपने पिता की साम्राज्यवादी नीति को जारी रखा…अधिक जानकारी

राजराज प्रथम

चोल साम्राज्य की महत्ता का वास्तविक संस्थापक परांतक द्वितीय (सुन्दर चोल) का पुत्र अरिमोलवर्मन था, जो 985 ई. के मध्य राजराज के नाम से गद्दी पर बैठा। उसने तीस वर्षों तक (985-1015ई.)शासन किया। उसका शासनकाल चोल साम्राज्य का सर्वाधिक गौरवशाली युग है…अधिक जानकारी

राजेन्द्र प्रथम

राजेन्द्र प्रथम राजराज प्रथम का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था और उसकी मृत्यु के बाद 1014-15 ई. में चोल राज्य की गद्दी पर बैठा। वह अपने पिता के समान एक महत्वाकांक्षी एवं साम्राज्यवादी शासक था। उसकी सैनिक उपलब्धियों की सूचना हमें उसके विभिन्न लेखों से मिल जाती हैं…अधिक जानकारी

राजाधिराज प्रथम

राजेन्द्र चोल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी राजाधिराज प्रथम था। वह 1018 ई. से ही युवराज के रूप में अपने पिता के सैनिक एवं प्रशासनिक कार्यों में सहायता देता रहा था। राजा होने पर उसे चतुर्दिक विद्रोहों का सामना करना पङा, परंतु उसने बङी सफलतापूर्वक अपने राज्य में शांति एवं व्यवस्था स्थापित की…अधिक जानकारी

राजेन्द्र द्वितीय

राजेन्द्र द्वितीय राजाधिराज का छोटा भाई था और उसकी मृत्यु के बाद राजा बना। उसके शासन काल में भी चोलचालुक्य संघर्ष चलता रहा।

सोमेश्वर ने वेंगी की गद्दी पर विजयादित्य सप्तम के पुत्र शक्तिवर्मन द्वितीय को आसीन किया तथा उसकी मदद के लिये चामुण्जराज के नेतृत्व में एक बङी सेना भेजी। उसने अपने दो पुत्रों – विक्रमादित्य तथा जयसिंह को गंङ्गवाडि में चोल राज्य पर आक्रमण करने को भेजा। चोल नरेश राजेन्द्र ने अपने पुत्र राजमहेन्द्र तथा भाई वीर राजेन्द्र के साथ दोनों मोर्चों पर सोमेश्वर का प्रतिरोध किया। वेंगी में उसकी सेना ने चामुण्डराज तथा शक्तिवर्मन को पराजित किया तथा वे दोनों मार डाले गये। गङ्गवाडि के चालुक्य आक्रमणकारी कुड्डल संगमम् (तुंग तथा भद्रा के संगम पर स्थित कूड्डलि) के युद्ध में परास्त किये गये तथा उन्हें चोल राज्य से भागना पङा। इस प्रकार सोमेश्वर दोनों ही मोर्चों पर बुरी तरह से असफल रहा था…अधिक जानकारी

वीर राजेन्द्र

राजेन्द्र राजेन्द्र द्वितीय के बाद राजा बना था। इसके समय में भी चोल चालुक्य संघर्ष चलता रहा। चालुक्य नरेश सोमेश्वर ने उसके राज्य पर पूर्व तथा पश्चिम दोनों ओर से आक्रमण किया। वीर राजेन्द्र की सेना ने वेंगी में चालुक्यों को हराया। पश्चिम में तुंगभद्रा के तट पर पर उसने सोमेश्वर की सेना को 1066ई. में बुरी तरह से हराया था। सोमेश्वर ने पुनः अपनी सेना को संगठित की तथा चोल शासक को कुड्डल-संगमम् में युद्ध के लिये चुनौती दी। वीर राजेन्द्र वहां गया परंतु सोमेश्वर स्वयं युद्ध क्षेत्र में उपस्थित नहीं हुआ। वीर राजेन्द्र ने पुनः चालुक्य सेना को परास्त किया। तथा तुंगभद्रा नदी के तट पर विजय-स्तंभ स्थापित किया। उसके बाद वेंगी में उसने विजयादित्य को परास्त किया। उसने कृष्णा नदी पार कर कलिंग पर आक्रमण किया। वहाँ भी पश्चिमी चालुक्यों एवं उनके सहायकों से उसका भीषण युद्ध हुआ। इसी बीच 1068 ई. में सोमेश्वर ने तुंगभद्रा में डूबकर आत्महत्या कर ली। उसके उत्तराधिकारी सोमेश्वर द्वितीय के काल में वीर राजेन्द्र ने उसके राज्य पर आक्रमण किया। सोमेश्वर द्वितीय का छोटा भाई विक्रमादित्य चोल नरेश वीर राजेन्द्र से जा मिला। उसने अपनी पुत्री का विवाह विक्रमादित्य के साथ कर दिया और उसे वेंगी के चालुक्य राजा दक्षिणी भाग का राजा बना दिया। विक्रमादित्य ने उसकी अधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया…अधिक जानकारी

कुलोत्तुंग प्रथम

कुलोत्तुंग प्रथम पूर्वी चालुक्य नरेश राजराज का पुत्र था, किन्तु उसमें चोल रक्त का भी मिश्रण था। उसकी माता राजेन्द्र चोल की कन्या थी। उसका स्वयं का विवाह कोप्पम युद्ध के विजेता राजेन्द्र द्वितीय की पुत्री से हुआ था। कुलोत्तुंग प्रथम ने अपने विद्रोहियों को दबाकर अपनी स्थिति सुदृढ कर ली थी। वह अपने समय का एक शक्तिशाली शासक सिद्ध हुआ। उसने पश्चिमी चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ को नंगिलि में पराजित कर गङ्गवाडि पर अधिकार जमा लिया । इसी बीच (1072-73ई.)त्रिपुरी के हैहय शासक यश कर्ण ने उसके वेंगी राज्य पर आक्रमण किया, किन्तु इसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया। परंतु सिंहल के राजा विजयबाहु ने कुलोत्तुंग के विरुद्ध अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। दोनों के बीच संधि हो गयी तथा कुलोत्तुंग ने अपनी एक पुत्री का विवाह सिंहल राजकुमार के साथ कर दिया…अधिक जानकारी

विक्रम चोल

विक्रम चोल चोल शासक कुलोत्तुंग प्रथम का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। इसने 1120ई. से 1133ई. तक शासन किया। 1126 ई. में विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के बाद उसने वेंगी पर पुनः अपना अधिकार कर लिया…अधिक जानकारी

कुलोत्तुंग द्वितीय

चोल शासक विक्रम चोल के बाद उसका पुत्र कुलोत्तुंग द्वितीय 1133ई. में राजा बना तथा 1150 ई. तक शांतिपूर्वक शासन करता रहा। उसकी किसी भी राजनैतिक उपलब्धि के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं होती है…अधिक जानकारी

राजराज द्वितीय

राजराज द्वितीय कुलोत्तुंग द्वितीय का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। उसने 1150-1173ई. तक शासन किया था। उसके समय में चारों ओर शक्तिशाली सामंतों का उदय हुआ। उसका राज्य संपूर्ण तेलगू प्रदेश, कोंगूनाद के अधिकांश भागों तथा गङ्गवाडि के पूर्वी भाग तक फैला हुआ था…अधिक जानकारी

राजाधिराज द्वितीय

चोल शासक राजराज द्वितीय का उत्तराधिकारी राजाधिराज द्वितीय था। इसने 1173 ई. से 1178 ई. तक शासन किया था। इस समय पाण्ड्य वंश में कुलशेखर तथा वीर पाण्ड्य के बीच उत्तराधिकार के लिये संघर्ष छिङा हुआ था…अधिक जानकारी

कुलोत्तुंग तृतीय

कुलोत्तुंग तृतीय चोल शासक राजाधिराज द्वितीय का उत्तराधिकारी था। कुलोत्तुंग द्वितीय चोल वंश का अंतिम महान शासक था…अधिक जानकारी

राजराज तृतीय

चोल शासक कुलोत्तुंग तृतीय का उत्तराधिकारी राजराज तृतीय था, जो एक निर्बल राजा था। उसके राज्य में चतुर्दिक विद्रोह एवं अराजकता फैल गयी। पाण्ड्य नरेश सुन्दर ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे बंदी बना लिया परंतु होयसल नरसिंह द्वितीय की सहायता से उसे मुक्ति मिली…अधिक जानकारी

राजेन्द्र तृतीय

राजेन्द्र तृतीय चोल वंश का अंतिम शासक था। उसने चोल शक्ति का पुनरुद्धार किया। उसने पाण्ड्यों पर आक्रमण कर सुन्दरपाण्ड्य द्वितीय को पराजित किया। परंतु चालुक्य नरेश सोमेश्वर तृतीय ने पाण्ड्यों का साथ दिया,जिससे राजेन्द्र के प्रयास सफल न हो सके। उसने एक युद्ध में राजेन्द्र को परास्त किया…अधिक जानकारी

चोल राजवंश के बारे में अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी

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