प्राचीन भारतइतिहासगुप्त काल

गुप्त राजवंश का प्रारंभिक इतिहास

गुप्त राजवंश की स्थापना 275 ईस्वी में महाराज गुप्त द्वारा की गयी थी।महाराज गुप्त का नाम श्रीगुप्त था। श्रीगुप्त का कोई अभिलेख या सिक्का नहीं मिलता। दो मुहरें जिनमें से एक के ऊपर संस्कृत और प्राकृत मिश्रित मुद्रालेख गुप्तस्य तथा दूसरे के ऊपर संस्कृत में श्रीगुप्तस्य अंकित है।

गुप्तवंश का दूसरा शासक महाराज घटोत्कच हुआ जो श्रीगुप्त का पुत्र था। प्रभावती गुप्ता के पूना तथा रिद्धपुर ताम्रपत्रों में उसे ही गुप्त वंश का प्रथम शासक बताया गया है।

स्कंदगुप्त के सुपिया (रीवा) के लेख में भी गुप्तों की वंशावली घटोत्कच के समय से ही प्रारंभ होती है। इस आधार पर कुछ विद्वानों का सुझाव है कि वस्तुतः घटोत्कच ही इस वंश का संस्थापक था तथा गुप्त या श्रीगुप्त कोई आदि पूर्वज रहा होगा, जिसके नाम का आविष्कार गुप्तवंश की उत्पत्ति बताने कि लिये कर लिया गया होगा। किन्तु इस प्रकार का निष्कर्ष तर्कसंगत नहीं है।

YouTube Video

गुप्त लेखों में इस वंश का प्रथम शासक श्रीगुप्त को ही कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है, कि यद्यपि गुप्तवंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी, किन्तु उसके समय में यह वंश महत्त्वपूर्ण स्थिति में नहीं था।

घटोत्कच के काल में ही सर्वप्रथम गुप्तों ने गंगाघाटी में राजनैतिक महत्ता प्राप्त की होगी। अल्तेकर तथा आर.जी.बसाक का विचार है,कि उसी के काल में गुप्तों का लिच्छवियों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया गया होगा।

संभवतः इसी कारण कुछ लेखों में घटोत्कच को ही गुप्तवंश का आदि राजा कहा गया है। उसके भी कोई लेख अथवा सिक्के नहीं मिलते हैं। इन दोनों शासकों की किसी भी उपलब्धि के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिलती। इन दोनों के नाम के पूर्व महाराज की उपाधि को देखकर अधिकांश विद्वानों ने उनकी स्वतंत्र स्थिति में संदेह व्यक्त किया है।

सर्वप्रथम चंद्रगुप्त प्रथम ने ही गुप्तों को शकों की अधीनता से मुक्त किया था। चंद्रगुप्त प्रथम ने ही सर्वप्रथम महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!