इतिहासकल्याणी का चालुक्य वंशदक्षिण भारतप्राचीन भारत

कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों के इतिहास को जानने के साधन

कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की जानकारी के स्त्रोत – कल्याणी के चालुक्य वंश का उदय राष्ट्रकूटों के पतन के बाद हुआ। इस वंश का इतिहास हम साहित्य तथा लेखों के आधार पर प्राप्त कर सकते हैं। साहित्यिक ग्रंथों में विल्हण कृत विक्रमांकदेवचरित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, जिससे इस वंश के सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य षष्ठ के जीवन तथा उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश पङता है। रन्न के गदायुद्ध से इस काल के सामाजिक जीवन की जानकारी प्राप्त होती है।

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इन सबके अलावा इस वंश के राजाओं तथा उनके सामंतों के कन्नङ भाषा के लेखों से तत्कालीन इतिहास पर प्रकाश पङता है। इन साक्ष्यों में उन्हें वातापी के चालुक्यों का वंशज तथा अयोध्या का मूलवासी बताया गया है। विक्रमादित्य षष्ठ के कैथोल लेख में कहा गया है, कि 59 चालुक्य राजाओं ने अयोध्या में राज किया, फिर वे दक्षिण चले गये। जयसिंह बल्लभ ने राष्ट्रकूटों को पराजित कर अपने वंश का पुनरुद्धार किया था। गदायुद्ध में सत्याश्रय तथा जयसिंह को अयोध्या का शासक बताते हुये राष्ट्रकूटों को परास्त कर दक्षिण में चालुक्य वंश की स्थापना का श्रेय जयसिंह को दिया गया है। विक्रमांकदेवचरित में कहा गया है, कि पृथ्वी से नास्तिकता को समाप्त करने के लिये ब्रह्मा ने अपने चलुक (चुल्लू) से एक वीरपुरुष को उत्पन्न किया। इसी ने चालुक्य वंश की स्थापना की। कल्याण लेख (1025-26 ई.) में भी ब्रह्मा को ही चालुक्यों का आदि पूर्वज कहा गया है। परवर्ती लेखों में इसका संबंध बादामी के चालुक्य वंश के साथ स्थापित करते हुये इसे विक्रमादित्य द्वितीय के छोटे भाई, जिसका नाम अज्ञात है, किन्तु जिसकी उपाधि भीम पराक्रम की थी, का वंशज बताया गया है। चालुक्य कन्नङ देश के मूल निवासी थे, तथा अयोध्या के साथ उनका संबंध जोङना काल्पनिक लगता है। वे वातापी के चालुक्य कुल से ही संबंधित थे।

बादामी के चालुक्य वंश का राजनैतिक इतिहास

References:
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक-के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-वी.डी.महाजन

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