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चोल शासक वीर राजेन्द्र का इतिहास

वीर राजेन्द्र राजेन्द्र द्वितीय के बाद राजा बना था। इसके समय में भी चोल चालुक्य संघर्ष चलता रहा। चालुक्य नरेश सोमेश्वर ने उसके राज्य पर पूर्व तथा पश्चिम दोनों ओर से आक्रमण किया। वीर राजेन्द्र की सेना ने वेंगी में चालुक्यों को हराया। पश्चिम में तुंगभद्रा के तट पर पर उसने सोमेश्वर की सेना को 1066ई. में बुरी तरह से हराया था। सोमेश्वर ने पुनः अपनी सेना को संगठित की तथा चोल शासक को कुड्डल-संगमम् में युद्ध के लिये चुनौती दी। वीर राजेन्द्र वहां गया परंतु सोमेश्वर स्वयं युद्ध क्षेत्र में उपस्थित नहीं हुआ। वीर राजेन्द्र ने पुनः चालुक्य सेना को परास्त किया। तथा तुंगभद्रा नदी के तट पर विजय-स्तंभ स्थापित किया। उसके बाद वेंगी में उसने विजयादित्य को परास्त किया। उसने कृष्णा नदी पार कर कलिंग पर आक्रमण किया। वहाँ भी पश्चिमी चालुक्यों एवं उनके सहायकों से उसका भीषण युद्ध हुआ। इसी बीच 1068 ई. में सोमेश्वर ने तुंगभद्रा में डूबकर आत्महत्या कर ली। उसके उत्तराधिकारी सोमेश्वर द्वितीय के काल में वीर राजेन्द्र ने उसके राज्य पर आक्रमण किया। सोमेश्वर द्वितीय का छोटा भाई विक्रमादित्य चोल नरेश वीर राजेन्द्र से जा मिला। उसने अपनी पुत्री का विवाह विक्रमादित्य के साथ कर दिया और उसे वेंगी के चालुक्य राजा दक्षिणी भाग का राजा बना दिया। विक्रमादित्य ने उसकी अधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया।

वीर राजेन्द्र ने सिंहल नरेश विजयबाहु प्रथम के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। विजयबाहु पराजित हुआ तथा उसने भागकर वातगिरि में शरण ली। उसने श्रीविजय में कडारम् को जीतने के लिये भी एक नौसेना भेजी। 1070 ई. के लगभग उसकी मृत्यु हो गयी।

वीर राजेन्द्र का पुत्र अधिराजेन्द्र उसके बाद चोलवंश का शासक हुआ, परंतु एक वर्ष के भीतर ही वह वेंगी के पूर्वी चालुक्य वंशी राजेन्द्र द्वारा अपदस्थ कर दिया गया। 1070 ई. में राजेन्द्र, कुलोत्तुंग प्रथम के नाम से चोलवंश की गद्दी पर बैठा।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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