चोल शासक राजाधिराज प्रथम का इतिहास
राजेन्द्र चोल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी राजाधिराज प्रथम था। वह 1018 ई. से ही युवराज के रूप में अपने पिता के सैनिक एवं प्रशासनिक कार्यों में सहायता देता रहा था। राजा होने पर उसे चतुर्दिक विद्रोहों का सामना करना पङा, परंतु उसने बङी सफलतापूर्वक अपने राज्य में शांति एवं व्यवस्था स्थापित की।
राजाधिराज ने पाण्ड्य, केरल तथा सिंहल के विद्रोही शासकों को पराजित किया। उसने अपने पिता की विस्तारवादी नीति को जारी रखा। वेंगी में उसने पश्चिमी चालुक्यों की सेना को सोमेश्वर के पुत्र विक्रमादित्य के नेतृत्व में परास्त किया। उसके बाद चोल सेना ने पश्चिमी चालुक्य राज्य पर आक्रमण किया। सर्वप्रथम उसने कुल्पक के दुर्ग पर अधिकार कर उसमें आग लगा दी। चालुक्य सामंतों एवं सेनापतियों को जीतते हुए चोलसेना कृष्णा नदी के तट पर जा पहुँची। वहाँ पून्डूर के युद्ध में राजाधिराज ने चालुक्य सेना को बुरी तरह परास्त किया। उसने यादगीर पर अधिकार कर लिया तथा चालुक्यों की राजधानी कल्याणी को लूटा। वहाँ उसने अपना वीराभिषेक किया तथा विजयराजेन्द्र की उपाधि धारण की। कल्याणी से वह निशानी के रूप में द्वारपालक की एक सुन्दर प्रतिमा उठा ले गया।
परंतु 1050 ई. तक पश्चिमी चालुक्य नरेश सोमेश्वर ने चोल सेनाओं को अपने राज्य से बाहर भगा दिया। उसने वेंगी के चालुक्य शासक राजराज को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिये विवश किया। कलिंग को भी उसने अपने प्रभाव में ले लिया था। चोल नरेश राजाधिराज ने अपने छोटे भाई युवराज राजेन्द्र द्वितीय की सहायता से सोमेश्वर के विरुद्ध दूसरा सैनिक अभियान किया।
कोप्पम के युद्ध में (1052-53ई.) राजाधिराज लङता हुआ मारा गया। परंतु उसके भाई राजेन्द्र द्वितीय ने सोमेश्वर की सेना को बुरी तरह परास्त किया। राजेन्द्र ने युद्ध क्षेत्र में ही अपना अभिषेक किया। वह कोल्हापुर तक बढा और वहां अपना विजयस्तंभ स्थापित करने के बाद अपनी राजधानी वापस लौट आया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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