इतिहासगुप्तोत्तर कालप्राचीन भारतवर्द्धन वंशविदेशी यात्रीहर्षवर्धन

इत्सिंग कौन था, यह किसके शासनकाल में भारत आया था

ह्वेनसांग के समान इत्सिंग भी चीनी बौद्ध यात्री था, जो उसके वापस लौट जाने के बाद भारत की यात्रा पर आया। 671 या 672 ईस्वी में, जब वह युवक था, अपने 37 बौद्ध सहयोगियों के साथ बौद्ध धर्म के अवशेषों को देखने की इच्छा से उसने पाश्चात्य विश्व का भ्रमण करने का निश्चय किया। बाद में उसके साथियों ने उसका साथ छोङ दिया तथा वह अकेले कैन्टन नगर से जहाज में बैठकर भारत की यात्रा पर चल पङा। वह दक्षिण के समुद्री मार्ग से होकर भारत आया। सुमात्रा तथा लंका होते हुए वह ताम्रलिप्ति पहुँचा जहाँ तीन वर्षों तक रहकर उसने संस्कृत का अध्ययन किया। यहाँ से उसने विभिन्न स्थानों की यात्रा की।

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अपनी यात्रा समाप्त कर 693-94 ईस्वी के लगभग सुमात्रा होता हुआ वह चीन वापस लौट गया। वह अपने साथ सूत्त, विनय एवं अभिधम्म ग्रंथों की लगभग 400 प्रतियाँ ले गया। 700-712 ईस्वी के मध्य उसने लगभग 56 ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया। इत्सिंग का मूलग्रंथ चीनी भाषा में लिखा गया। उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में प्रसिद्ध जापानी विद्वान तक्कुसु ने ए रेकार्ड आफ द बुद्धिस्ट रेलिजन नाम से प्रस्तुत किया। इसके अध्ययन से हम सातवीं शती के उत्तरी भारत के समाज एवं संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

अपने यात्रा विवरण के प्रारंभ में इत्सिंग चीन से भारत तथा उसके पङोसी देशों की यात्रा पर आने वाले 56 बौद्ध यात्रियों का विवरण देता है। सुमात्रा का वर्णन करते हुये वह हमें बताता है, कि इसके किनारे पर एक समृद्ध व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा धार्मिक विहार था। यहाँ से व्यापारी माल लेकर कैन्टन को जाते थे। वह मार्ग की कठिनाइयों का भी वर्णन करता है। वह भारतीयों की धार्मिक परंपराओं का भी वर्णन करता है।

उसके अनुसार बौद्ध धर्म के अनुयायी चार संप्रदायों जो निम्नलिखित हैं-

  1. आर्यमहासंघिति,
  2. आर्यस्थविर,
  3. आर्यमूलसर्वास्तवादिन्,
  4. आर्यसम्मतिय।

चार भागों में विभाजित थे। मगध में प्रत्येक संप्रदाय उन्नत दशा में था। नालंदा का वर्णन करते हुए इत्सिंग लिखता है, कि इसके पूर्व की ओर 40 स्टेज पर गंगा नदी के किनारे श्रीगुप्त नामक राजा द्वारा चीनी यात्रियों के लिये बनवाया गया मंदिर स्थित था। वह नालंदा तथा विक्रमशिला के विश्वविद्यालयों का भी वर्णन करता है, तथा हर्ष की दानशीलता एवं विद्या-प्रेम की प्रशंसा करता है।

इत्सिंग के विवरण से हम हर्षकालीन भारतीय धर्म एवं समाज के विषय में कुछ ज्ञान प्राप्त करते हैं, किन्तु वह ह्वेनसांग के विवरण की भाँति उपयोगी नहीं कहा जा सकता।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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