इतिहासतुगलक वंशदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

दोआब में भू राजस्व की वृद्धि

दोआब में भू राजस्व – मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाओं से साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगा। आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये उसने उपज बढाने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए तथा साथ ही अधिक उपजाऊ प्रदेश दोआब में कर वृद्धि की घोषणा की। यह वृद्धि लगभग 1/10 से 1/20 के बीच में थी जो अनुचित नहीं कही जा सकती क्योंकि इतनी वृद्धि किसानों पर कोई दबाव नहीं डालती थी। किंतु दुर्भाग्य से जिस वर्ष वृद्धि क गयी उसी वर्ष अकाल पङ गया, उपज नहीं हो सकी। भू राजस्व अधिकारियों ने निश्चित राशि को निर्दयता से वसूल करने का प्रयत्न किया। असहाय रियाया घबरा गई जब कि शक्तिशाली जमींदारों ने लगान देने से इन्कार कर दिया। किसानों ने अपना काम बंद कर दिया। इतिहास में ऐसी स्थिति शायद ही पहले कभी रही हो। जब लगान वसूली के समय अत्याचार किए गए तो कइयों ने उपज को आग लगा दी। धीरे-धीरे स्थिति खराब होती गयी। दोआब के विद्रोहों को सख्ती से दबाया गया क्योंकि जो सुल्तान उलेमा वर्ग को उनकी गलतियों के लिए क्षमा नहीं कर सकता था,वह जमींदारों के विद्रोह को कैसे सहन कर सकता था। इन विद्रोहों का प्रभाव दूसरे प्रदेशों में भी हुआ तथा गङबङी फैलनी शुरू हो गयी। बरनी ने 1334 ई. में हुई जिस गङबङी का विवरण दिया है वह वस्तुतः दोआब में कर वृद्धि के परिणामस्वरूप हुई थी। यह मुहम्मद बिन तुगलक की अंतिम असफल योजना थी।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

अलाउद्दीन खिलजी के बाद मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का दूसरा शासक था जिसने भू राजस्व पर ध्यान दिया ।

अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक दोनों ने ही भूमि संबंधी (कृषि )नीति के विकास में सहायता की जो मुगलों के शासन काल में पूर्ण विकसित हुई

सर्वप्रथम मुहम्मद तुगलक ने सुबें की आय व्यय का हिसाब रखने के लिए एक रजिस्टर तैयार कराया और सभी सूबेदारों को इस संबंध में अपने अपने सुबों को हिसाब भेजने के आदेश दिए

लगान वसूलने वाले कर्मचारियों के कार्यों के निरीक्षण के लिए “शताधीकारी” नामक नए पदाधिकारी की नियुक्ति की गई जो सौ गांवों के लगान वसूलने वाले अधिकारियों के कार्यों पर नियंत्रण रखता था

मुहम्मद बिन तुगलक ने प्रसिद्ध सूफी शेख शिहाबुद्दीन को दीवान ए मुस्तखराज (लगान की बकाया राशि वसूल करने वाला) नियुक्त किया

मुहम्मद बिन तुगलक के राजस्व संबंधी सबसे महत्वपूर्ण कार्य था, दोआब में कर की वृद्धि करना

दोआब उपजाऊ प्रदेश था इसीलिए सुल्तान ने आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस क्षेत्र में कर वृद्धि की योजना बनाई

प्रचलित लगान में 1/10 से 1/20 तक की वृद्धि की गई इसके अतिरिक्त नए कर (आबताब) भी लगाए गए,चराई कर और गढी़ कर को सख्ती से वसूला गया

खेत की उपज का आकलन वास्तविक उपज के आधार पर नहीं बल्की मानक उपज के आधार पर किया जाता था

इसके अतिरिक्त राज्य के हिस्से को नगद में रूपांतरित करते समय वास्तविक मूल्य को नहीं बल्कि सरकार द्वारा निश्चित दरों को ध्यान में रखा जाता था

दुर्भाग्य से दोआब में कर वृद्धि के समय ही वहां अकाल पड़ गया था, यह अकाल लगभग 1334-35ई.के आसपास प्रारंभ हुआ जो लगभग 7 वर्ष तक चला, ऐसी स्थिति में कर वृद्धि और सुल्तान के कृषि संबंधी सुधार कृषको पर अत्याधिक बोझ बन गए, किसानों की स्थिति दयनीय हो गई

भू राजस्व अधिकारियों ने निश्चित राशि को निर्दयता से वसूल करने का प्रयत्न किया, इस अत्याचार से घबराकर किसानों ने अपनी खरीफ फसलों में आग लगा दी और खेती करना छोड़ दिया

शक्तिशाली जमींदारो ने लगान देने से इंकार कर दिया, किसानों ने राजस्व अधिकारियों और सैनिकों की हत्या कर दी, इस प्रकार पूरे दोआब क्षेत्र में विद्रोह फैल गया,सुल्तान ने बड़ी कठोरता से इस विद्रोह को दबाया

बरनी के अनुसार- हजारों व्यक्ति मारे गए और जब उन्होंने बचने का प्रयास किया तब सुल्तान ने विभिन्न स्थानों पर आक्रमण किया और जंगली जानवरों की भांति उनका शिकार किया।

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