आधुनिक भारतइतिहासप्रथम विश्वयुद्धविश्व का इतिहास

प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व का यूरोप

प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व का यूरोप

प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व का यूरोप (Europe before the First World War)

प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व तक संपूर्ण विश्व में यूरोप के राज्यों का वर्चस्व था। यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका तथा एशिया में जापान का इस समय तक महाशक्ति के रूप में उदय हो चुका था।

प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व का यूरोप – इस समय तक एशिया, अफ्रीका में यूरोप के विभिन्न देशों के उपनिवेश स्थापित हो चुके थे। एशिया में भारत, लंका, बर्मा, मलाया पर इंग्लैण्ड का नियंत्रण था। फारस, अफगानिस्तान, तिब्बत,नेपाल, मध्य पूर्व इंग्लैण्ड के प्रभाव क्षेत्र में थे। हिन्द चीन तथा इंडोनेशिया, फ्रांस के अधीन थे।

चीन को विभिन्न यूरोपीय शक्तियों तथा प्रथम महायुद्ध पूर्व के जापान ने बांट लिया था। जापान ने 1905 ई. में रूस को पराजित किया तथा कोरिया एवं मंचूरिया पर अधिकार कर लिया। अफ्रीका में इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पुर्तगाल, स्पेन आदि देशों के उपनिवेश स्थापित हो चुके थे।

यूरोप में इस समय इंग्लैण्ड सर्वाधिक समृद्ध तथा शक्तिशाली राष्ट्र था। वह विश्व की सर्वश्रेष्ठ नौसैनिक शक्ति था। उसका औपनिवेशिक साम्राज्य विशाल था तथा विश्व के प्रत्येक भाग में स्थित था। इंग्लैण्ड की रुचि यूरोप की आंतरिक राजनीतिक में न होकर अपने आर्थिक तथा साम्राज्यवादी हितों की वृद्धि एवं रक्षा में थी।

एकीकृत जर्मनी, इंग्लैण्ड का प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी था। जर्मनी की थल सेना विश्व में सर्वश्रेष्ठ थी। जर्मनी औद्योगिक एवं आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली राष्ट्र बन चुका था। लेकिन उपनिवेश स्थापना की स्पर्धा में यह राष्ट्र पिछङ चुका था।

रूस क्षेत्रफल की दृष्टि से यूरोप का सबसे बङा राज्य था। यहाँ निरंकुश राजतंत्र था। रूसी साम्राज्य में गैर रूसी जातियां बङी संख्या में थी। रूस की रुचि बाल्कन प्रदेश में थी, जहाँ बङी संख्या में उसके स्वजातीय स्लाव थे। रूस आटोमन साम्राज्य को विभाजित कर वृहद स्लाव राज्य की स्थापना करना चाहता था। आस्ट्रिया बाल्कन में रूस का सबसे बङा विरोधी था।

फ्रांस 1871 ई. से ही गणतंत्रात्मक राज्य था। फ्रांस 1870 ई. में जर्मनी से हुई पराजय का बदला लेना चाहता था। यही नहीं फ्रांस इस युद्ध में जर्मनी द्वारा छीने गए आल्सेस तथा लॉरेन्स के प्रदेश या रूस की मैत्री की आवश्यकता थी। 1890 ई. तक फ्रांस यूरोप में जर्मनी कूटनीति के कारण मित्रहीन बना रहा।

आस्ट्रिया हंगरी यूरोप की महत्त्वपूर्ण शक्ति था। यहाँ भी निरंकुश राजतंत्र था। आस्ट्रिया हंगरी के साम्राज्य में चेक, पोल, स्लाव, बल्गर आदि अनेक जाति तथा भाषाभाषी लोग रहते थे।

लगभग संपूर्ण बाल्कन प्रायद्वीप ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था। इस क्षेत्र की ईसाई जनता स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थी। रूस अपने स्वजातीय स्लाव राज्यों का समर्थक था। इस समय तक बाल्कन में बल्गेरिया, सर्बिया, अल्बानिया, मोटीनीग्रो, रूमानिया स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हो चुके थे। सर्बिया बोसनिया तथा हर्जगोविना के प्रदेश आस्ट्रिया से लेना चाहता था। सर्ब बहुल यह प्रदेश बर्लिन कांग्रेस में शासन हेतु आस्ट्रिया को दिये गए थे।

संयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिकी महाद्वीप में उपनिवेश स्थापना में अग्रणी देश इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन तथा पुर्तगाल थे। इन उपनिवेशों में वहाँ के मूल निवासी रेड इंडियनों के अलावा विभिन्न कारणों से यूरोप से जाकर बसने वाले लोग थे। 1776 ई. में इंग्लैण्ड के शोषण के विरुद्ध अमेरिका स्थित 13 अमेरिकी उपनिवेशों में स्वतंत्रता संग्राम आरंभ हो गया।

फ्रांस की सहायता से इन उपनिवेशों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर संयुक्त राज्य अमेरिका नामक नये राज्य की स्थापना की। यह राज्य शीघ्र ही एक प्रमुख औद्योगिक तथा आर्थिक शक्ति बन गया। 1898 ई. में इसने स्पेन से क्यूबा छीन लिया। इसके बाद अमेरिका ने फिलीपाइंस पर भी अधिकार कर लिया।

1890 ई. में अमेरिका ने चीन में यूरोपीय राज्यों को बॉक्सर विद्रोह को दबाने में सहायता दी। चीन के द्वार अमेरिकी व्यापार हेतु खुल गए। 1904 ई. में रूस जापान संघर्ष में अमेरिका की सहानुभूति जापान की ओर थी। लेकिन शीघ्र ही प्रशांत क्षेत्र में जापान अमेरिका का मुख्य प्रतिद्वन्द्वी बन गया।

अमेरिका की महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपलब्धि पनामा नहर का निर्माण था। अमेरिका ने कोलंबिया पर आक्रमण करके नवीन पनामा राज्य की स्थापना की। अमेरिकी सरकार ने फ्रेंच कंपनी से अधिकार खरीद कर 1914 ई. से पूर्व तक इस महत्त्वपूर्ण नहर का निर्माण पूरा कर लिया।

जापान

जापान एक मात्र ऐशियाई देश था जो साम्राज्यवादी आधिपत्य से मुक्त था। 19 वीं सदी के मध्य तक जापान ने अपने द्वार बंद कर रखे थे। यहाँ सम्राट नाममात्र के लिए था। शासन शोगुनो (सैनिक सामंत) के हाथों में था। 1853 में अमेरीकी कमांडर पेरी नौ सैनिक बेङे के साथ जापान पहुँचा।

उसने सम्राट को अमरीकी राष्ट्रपति का पत्र दिया। आठ माह बाद वह पुनः विशाल अमरीकी बेङे के साथ पुनः जापान आ पहुँचा। विवश जापानी शासन ने अमेरिका से संधि कर ली। जापान ने अपने दो बंदरगाह व्यापार के लिए खोलने के साथ व्यापारिक सुविधायें प्रदान कर दी। इसके बाद अन्य यूरोपीय राज्यों ने भी जापान से संधियों द्वारा व्यापारिक अधिकार प्राप्त किए।

लेकिन इसके बाद जापान ने तेजी से अपना कायाकल्प किया। 1868 ई. शोगुन की सत्ता समाप्त कर सम्राट की शक्ति पुनर्स्थापित की गयी। 1889 ई. में नये संविधान द्वारा शासन की समस्त शक्तियाँ सम्राट में केन्द्रित कर दी गयी। जापान ने तीव्र गति से औद्योगिक तथा सैन्य शक्ति का विकास किया। जापानी माल यूरोपीय देशों के उत्पादों से कङी प्रतिर्स्पद्धा करने लगा।

औद्योगिक तथा सैन्य शक्ति के विकास ने जापान की साम्राज्य लिप्सा को बढा दिया। लेकिन इस समय तक चीन को छोङकर विश्व के विभिन्न भागों में यूरोपीय राज्यों का आधिपत्य हो चुका था। 1895 ई. में जापान ने चीन से फारमोसा द्वीप छीन लिया। उसने चीन को कोरिया को स्वतंत्रता देने के लिये बाध्य कर दिया।

कोरिया, जापान के संरक्षण में आ गया। जापान का अगला लक्ष्य मंचूरिया था। लेकिन रूस इसमें बाधक था। 1904-05 ई. में जापान ने रूस जैसी महाशक्ति को पराजित कर दिया। इससे जापान के प्रभाव में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 1902 ई. में जापान तथा इंग्लैण्ड में मैत्री संधि से जापान की शक्ति तथा प्रभाव में वृद्धि हुई।

Related Articles

error: Content is protected !!