अफीम युद्धइतिहासविश्व का इतिहास

पेकिंग की संधि

पेकिंग की संधि

पेकिंग की संधि क्यों हुई – उन्नीसवीं सदी के मध्य में चीन और मुख्यतः ब्रिटेन के बीच लड़े गये दो युद्धों को अफीम युद्ध कहते हैं। प्रथम अफीम युद्ध 1839 से 1842 तक चला और दूसरा अफीम युद्ध 1856 से 1860 तक चला। दूसरी बार फ़्रांस भी ब्रिटेन के साथ-साथ लड़ा।

दोनों ही युद्धों में चीन की पराजय हुई और चीनी शासन को अफीम का अवैध व्यापार सहना पड़ा। चीन को प्रथम अफगान युद्ध रोकने के लिये नानकिंग की सन्धि करनी पङी तथा द्वितीय अफगान युद्ध को रोकने के लिये तीन्तसिन की संधि और पेकिंग की संधि करनी पड़ी।

पेकिंग की संधि

तीन्तसिन की संधि

ब्रिटेन और फ्रांस की संयुक्त शक्ति के सामने चीन अधिक समय तक नहीं टिक पाया। इसके अलावा, इस समय चीन में गृह युद्ध छिङा हुआ था तथा अनेक पुराने राजवंश चीन पर अधिकार करने के लिये परस्पर लङ रहे थे अतः इस छोटे से युद्ध के बाद ही चीन ने घुटने टेक दिये। किन्तु संधि की शर्तें तय होने से पूर्व ही युद्ध पुनः छिङ गया।

परंतु जब ब्रिटेन व फ्रांस की संयुक्त सेना पेकिंग में प्रवेश करने लगी तब चीन की सरकार संधि के लिये तैयार हो गयी। 1858 ई.में दोनों पक्षों ने तीन्तसिन की संधि पर हस्ताक्षर कर दिये। इस संधि की मुख्य शर्तें निम्नलिखित थी… अधिक जानकारी

पेकिंग की संधि (अप्रैल 1860 ई.) 
पेकिंग की संधि

इन परिस्थितियों में सम्राट के भाई तथा अन्य चीनी अधिकारियों ने विवश होकर तीन्तसिन की संधि स्वीकार कर लेने का निश्चय किया। पेकिंग में जो समझौता हुआ, उसके साथ तीन्तसिन की संधि की शर्तें भी जोङ दी गयी। पेकिंग में जिन शर्तों पर समझौता हुआ, वे निम्नलिखित थी

  • तीन्तसिन को भी विदेशी व्यापार के लिये खोल दिया गया। (चूँकि यह नगर पेकिंग के बहुत नजदीक था, अतः चीन की राजधानी पर भी विदेशी प्रभाव स्थापित हो गया)
  • हांगकांग के ठीक सामने वाला कोसूल प्रायद्वीप ब्रिटेन को सौंप दिया गया।
  • पेकिंग में एक स्थायी ब्रिटिश प्रतिनिधि के निवास की व्यवस्था की गयी।
  • 1724 ई. में जब्त की गयी ईसाई संपत्ति को रोमन कैथोलिक चर्च को लौटाने का बचन दिया गया। फ्रांसीसी पादरियों और धर्म-प्रचारकों को चीन में कहीं भी जमीन खरीदने या किराए पर लेने का अधिकार दिया गया।
  • चीनी कुलियों को बाहर विदेशों में भेजना अवैध ठहराया गया।

ये सभी संधियाँ विदेशियों के लिये अत्यन्त लाभप्रद रही, क्योंकि इसके द्वारा उनके लिये चीन का दरवाजा पूरी तरह से खुल गया और चीन में उनके पैर मजबूती से जम गये।

रूस का प्रवेश

चीन और रूस के बीच एक लंबी भूमि-सीमा थी। 17 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध से ही रुसी चीनी सीमा में घुसने लग गये थे। 1840 ई. और 1860 ई. के बीच में यूरोपीय देशों का चीन के साथ जो संघर्ष हुआ, उसने रूस को भी प्रेरित किया। 1847 ई. में रूस के जार ने आमूर नदी में एक गश्ती दल भेजा तथा आखोत्स्क सागर में आमूर के मुहाने तक के तट का सर्वेक्षण करवाया।

अगस्त, 1850 ई. में मुराविएफ ने आमूर नदी के मुहाने पर निकोलाइवेस्क नामक नगर की स्थापना की और 1853 ई. में मुराविएफ द्वीपों पर अधिकार कर लिया। इस समय चीन सरकार ताइपिंग विद्रोह में उलझी हुई थी, अतः वह रूसी गतिविधियों की तरफ ध्यान नहीं दे पाई।

अप्रैल, 1854 ई. में मुराविएफ ने कमचटका की रक्षा के लिये आमूर के संपूर्ण मार्ग पर अपना पहला अभियान दल भेजा तथा 1855 ई. में कुछ और जंगी सामान रवाना कर दिया। चीन की सीमान्त चौकियों पर तैनात चीनी सैनिकों ने रूसियों को रोकने का कोई प्रयत्न नहीं किया।

मुराविएफ का मत था, कि आमूर के बाएँ किनारे के भू-भाग रूस के ही हैं। अतः 1856 ई. में उसने तीसरा अभियान दल भेजा और दो और नई बस्तियाँ कायम कर ली। जब चीनी अधिकारियों ने इसका विरोध किया तो रूसियों ने नदी के बाएँ किनारे पर अपनै सैनिक दस्ते तैनात कर दिये। 1858 ई. में रूसियों ने चीन पर एक संधि थोपनी चाही, जिसका आशय यह था, कि आमूर नदी का संपूर्ण उत्तरी तट रूप का है तथा उसूरी नदी व जापान सागर के बीच के क्षेत्र पर दोनों का संयुक्त नियंत्रण हो।

चीन की सरकार ने इस संधि को मानने से इनकार कर दिया। इसी बीच चीन द्वितीय अफीम युद्ध में फँस गया। रूस के लिये यह स्वर्ण अवसर था। उसने चीनी अधिकारियों को संदेश भिजवाया कि रूस चीन की मदद करने को तैयार है, बदले में उसे उसूरी पार का प्रदेश सौंप दिया जाय। चीन ने रूस की सभी शर्तें स्वीकार कर ली।

इससे चीन की 3,50,000 वर्ग मील भूमि पर रूस का अधिकार हो गया। 1860 ई. तक रूस ने वे सभी व्यापारिक एवं राजनयिक सुविधाएँ प्राप्त कर ली जो अब तक ब्रिटेन और फ्रांस ने प्राप्त की थी। रूस ने चीन के विरुद्ध युद्ध घोषित किए बिना केवल कूटनीति से मंचू साम्राज्य का साढे तीन लाख वर्ग मील का प्रदेश हथिया लिया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
gkexams : पेकिंग की संधि

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