इतिहासचंदेल वंशप्राचीन भारत

चंदेल शासक मदनवर्मा का इतिहास

चंदेल शासक पृथ्वीवर्मन का पुत्र मदनवर्मा चंदेल वंश का शक्तिशाली शासक था। कालंजर, अगासी, खजुराहो, अजयगढ, महोबा, मऊ आदि से उसके 15 लेख तथा कई स्थानों से स्वर्ण एवं रजत सिक्के मिले हैं। लेखों की प्राप्ति स्थानों से पता चलता है, कि बुंदेलखंड के चारों प्रमुख स्थान – कालिंजर, खजुराहो, अजयगढ तथा महोबा में चंदेल सत्ता पुनः स्थापित हो गयी थी।

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मऊलेख से पता चलता है, कि मदनवर्मा ने ही चेदि तथा परमार राजाओं को परास्त किया तथा काशी के राजा को भयभीत किया। उसके द्वारा पराजित चेदि राजा यशःकर्ण का पुत्र गयाकर्ण (1051 ई.) था। काशी के बारे में कहा गया है, कि वहाँ का राजा सदा अपना समय मैत्रीपूर्ण व्यवहार में व्यतीत करता है। इसकी पहचान गाहङवाल नरेश गोविन्दचंद्र से की गयी है।

मदनवर्मा ने झांस तथा बांदा स्थित परमार साम्राज्य के कई स्थानों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। इसके परिणामस्वरूप गुजरात के चालुक्यों के साथ उसका संघर्ष होना अनिवार्य हो गया। इस समय गुजरात का शासक जयसिंह सिद्धराज था। कीर्तिकौमुदी से पता चलता है, कि वह परमारों की राजधानी धारा को जीतता हुआ कालंजर तक चढ गया, जहां उसे मदनवर्मा से संधि करके वापस लौटना पङा।कालंजर लेख में कहा गया है, कि मदनवर्मा ने गुर्जर नरेश को क्षण भर में उसी प्रकार पराजित कर दिया, जिस प्रकार कृष्ण ने कंस को किया था।

इस प्रकार मदनवर्मा ने अपनी विजयों द्वारा प्राचीन चंदेल साम्राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर पुनः अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। पवांर (रीवां क्षेत्र) से प्राप्त उसके सिक्कों के ढेर से सूचित होता है, कि बघेलखंड का एक बङा भाग भी उसके अधिकार में आ गया था।

एच.सी.राय के शब्दों में उसका साम्राज्य एक ऐसे त्रिभुजाकार रूप में बढ गया,जिसके आधार का निर्माण विन्ध्य, भाण्डीर तथा कैमूर की पर्वत श्रेणियाँ करती थी तथा यमुना और बेतवा नदियां उसकी दो भुजायें थी। 1163 ईस्वी में मदनवर्मा का निधन हो गया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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