इतिहासत्रिपुरी का कलचुरि राजवंशप्राचीन भारत

कलचुरि शासक कर्ण अथवा लक्ष्मीकर्ण (1041-1070)का इतिहास

कलचुरि शासक गांगेयदेव के बाद उसका पुत्र कर्णदेव अथवा लक्ष्मीकर्ण शासक बना। वह अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। उसके कुल 8 अभिलेख मिलते हैं, जिनसे हम उसकी उपलब्धियों के बारे में जान पाते हैं। उसने अनेक सैनिक अभियान किये थे। गुजरात के चालुक्य नरेश भीम के साथ मिलकर उसने मालवा के परमार वंशी शासक भोज को पराजित किया।

मालवा का परमार वंश के इतिहास के साधन

रासमाला से पता चलता है, कि कर्ण ने धारा को ध्वस्त करने के बाद राजकोष पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में भोज मारा गया।

परमार शासक भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ

प्रबंधचिंतामणि से भी भोज की पराजय के बारे में पता चलता है। इसके साथ ही भेङाघाट अभिलेख में कहा गया है, कि कर्ण की वीरता के सामने वंग तथा कलिंग के शासक कांपने लगे। बंगाल में इस समय जातवर्मन नामक कोई राजा शासन कर रहा था। कर्ण ने अपनी कन्या वीरश्री का विवाह उसके साथ कर दिया। कर्ण ने कलिंग की विजय की तथा त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की। पूर्व की ओर गौङ तथा मगध के पाल शासकों को उसने पराजित किया। तिब्बती परंपरा से पता चलता है, कि मगध में उसने बहुसंख्यक बौद्ध मंदिरों तथा मठों को नष्ट कर दिया था। पाल नरेश विग्रहपाल तृतीय को उसने युद्ध में पराजत किया। कर्ण के पैकोर लेख से पता चलता है, कि उसने वहाँ की देवी को स्तंभ समर्पित किया था।

हेमचंद्र भी कर्ण द्वारा विग्रहपाल की पराजय का उल्लेख करता है। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है, कि कर्ण ने उसके साथ संधि कर ली तथा अपनी कन्या का विवाह कर उसे अपना मित्र बना लिया था।

कर्ण का सबसे प्रसिद्ध संघर्ष बुंदेलखंड के चंदेल वंश के साथ हुआ। विद्याधर की मृत्यु के बाद वहाँ का शासन निर्बल शासकों के हाथ में आ गया, जो अपनी रक्षा करने में सक्षम नहीं थे। इसका लाभ उठाते हुये कर्ण ने चंदेल नरेश देववर्मन् पर आक्रमण कर उसे परास्त कर उसके राज्य के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया। चंदेल लेखों से भी पता चलता है, कि कुछ समय के लिये उनका राज्य कर्ण के आक्रमणों से पूर्णतया विनष्ट कर दिया गया था। विल्हण कर्ण को कालंजर गिरि के अधिपतियों का काल कहता है।

बुंदेलखंड के चंदेल वंश का इतिहास

इस प्रकार स्पष्ट है, कि परमार तथा चंदेल राजाओं का उन्मूलन कर कलचुरि नरेश कर्ण ने अपनी स्थिति सार्वभौम बना ली थी। उसके लेखों की प्राप्ति स्थानों- पैकोर, बनारस, गोहरवा आदि से भी पता चलता है, कि वह एक विस्तृत भू-भाग का स्वामी था।

कुछ यूरोपीय इतिहासकार कर्ण की उपलब्धियों की तुलना फ्रांसीसी सेनानायक नेपोलियन से करते हैं।

कर्ण के शासनकाल के अंतिम दिन

कर्ण को अपने शासन काल के अंतिम दिनों में पराजय का सामना करना पङा था। पूर्व में विग्रहपाल तृतीय के पुत्र नयपाल, पश्चिम में परमार नरेश उदयादित्य, अन्हिलवाङ के चालुक्य नरेश भीम प्रथम तथा दक्षिण में कल्याणी के चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम ने कर्ण को पराजित कर दिया था। इन सबके अलावा चंंदेल नरेश कीर्तिवर्मन् द्वारा कलचुरि नरेश कर्ण पराजित हुआ था। 1073 ईस्वी तक उसका शासन समाप्त हो गया था।

शैव धर्मावलंबी

कर्ण शैवमतानुयायी था। बनारस में उसने कर्णमेरु नामक शैवमंदिर का निर्माण करवाया था। उसने त्रिपुरी के निकट कर्णावती नामक नगर की स्थापना करवायी थी। उसका विवाह हूणवंशीया कन्या आवल्लदेवी के साथ हुआ था। सारनाथ बौद्ध भिक्षुओं को भी उसने सुविधायें प्रदान की थी। प्रयाग तथा काशी में वह दान वितरित करता था। प्रथम हूण आक्रमण किसके दरबार में हुआ था ?

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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