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मौर्य शासक अशोक और उसका बौद्ध धर्म

अशोक अपने शासन काल के प्रारंभिक वर्षों में ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। राजतरंगिणी के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि वह भगवान शिव का उपासक था। अन्य हिन्दू शासकों की भाँति वह अपने रिक्त समय में विहार यात्राओं पर निकलता था, जहाँ मृगया में विशेष रुचि लेता था।

अपनी प्रजा के मनोरंजन हेतु वह विभिन्न प्रकार की गोष्ठियों एवं प्रीतिभोजों का भी आयोजन करता था। जिसमें मांस, आदि बङे चाव से खाये जाते थे। इसके लिये राजकीय पाकशाला में हजारों पशु-पक्षी प्रति दिन मारे जाते थे।

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सिंहली अनुश्रुतियों – दीपवंश-महावंश के अनुसार अशोक को उसके शासन के चौथे वर्ष निग्रोध नामक सात वर्षीय भिक्षु ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। तत्पश्चात् मौग्गलिपुत्ततिस्स के प्रभाव से वह पूर्णरूपेण बौद्ध बन गया।

दिव्यावदान अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को प्रदान करता है।

बौद्ध धर्म की शाखाएँ हीनयान एवं महायान।

अशोक के अभिलेख, बौद्ध परंपराओं के विपरीत, उसके बौद्ध होने का संबंध कलिंग युद्ध से जोङते हैं। अशोक अपने 13 वें शिलालेख में ( जिसमें कलिंग युद्ध की घटनाओं का वर्णन है) यह घोषणा करता है, कि इसके बाद देवताओं का प्रिय धम्म की सोत्साह परिरक्षा, सोत्साह अभिलाषा एवं सोत्साह शिक्षा करता है। कलिंग युद्ध उसके अभिषेक के 8वें. वर्ष की घटना है।

कलिंग कहाँ स्थित है? कलिंग का युद्ध का वर्णन।

अतः यह कहा जा सकता है, कि इसी वर्ष अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। संभव है उसका झुकाव कुछ पहले से ही इस धर्म की ओर रहा हो, तथा इस युद्ध के बाद उसने पूर्णरूप से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया हो। प्रथम शिलालेख से ज्ञात होता है, कि बौद्ध धर्म ग्रहण करने के ढाई वर्ष तक वह साधारण उपासक था।

इसके बाद एक वर्ष तक वह संघ के साथ रहा तथा उसने इस धर्म की उन्नति के लिये इतनी अधिक कर्मठता दिखाई कि उसे धम्म की वृद्धि पर स्वयं आश्चर्य हुआ। वह दावा करने लगा कि धम्म की इतनी उन्नति इसके पहले कभी नहीं हुई।

कुछ विद्वानों ने संघ में शरण लेने का अर्थ यह लगाया है कि अशोक भिक्षुवस्त्र धारण कर संघ में प्रवेश कर गया तथा वह संघ एवं राज्य दोनों का प्रधान बन गया।

बौद्ध संघ क्या होते हैं?

अशोक ने सार्वजनिक रूप से अपने को संघ का अनुयायी घोषित कर दिया तथा संघ की सीधी सेवा करने का व्रत लिया। अपने इस नवीन मत-परिवर्तन की सूचना देने के लिये उसने अपने अभिषेक के 10 वें, वर्ष संबोधि (बोधगया) की यात्रा की।

बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेने के बाद अशोक के जीवन में अनेक परिवर्तन आये जो निम्नलिखित हैं-

  • अशोक ने अहिंसा तथा सदाचार पर चलना प्रारंभ कर दिया।
  • अशोक ने मांस-भक्षण त्याग दिया तथा राजकीय भोजनालयों में मारे जाने वाले पशुओं की संख्या कम कर दी गयी। आखेट तथा विहार यात्रायें रोक दी गयी और उनके स्थान पर धर्म यात्राओं का प्रारंभ हुआ।
  • इन धार्मिक यात्राओं के दौरान वह देश के विभिन्न भागों के लोगों से मिला तथा उन्हें धम्म के विषय में बताया।
  • अशोक महात्मा बुद्ध के चरण-चिन्हों से पवित्र हुए स्थानों में गया तथा उनकी पूजा की। महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय।
  • अशोक ने सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की। इसके बाद अपने अभिषेक के 20 वें वर्ष वह लुंबिनी ग्राम में गया। उसने वहां पत्थर की सुदृढ दीवार बनवाई तथा शिला-स्तंभ खङा किया। चूँकि वहाँ भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, अतः लुंबिनी ग्राम कर-मुक्त घोषित किया गया तथा केवल 1/8 भाग लेने की घोषणा की गयी।
  • अशोक ने नेपाल की तराई में स्थित निग्लीवा में कनकमुनि ( एक पौराणिक बुद्ध ) के स्तूप को सम्बर्द्धित एवं द्विगुणित करवाया।

अशोक को 84 हजार स्तूपों के निर्माता के रूप में स्मरण किया जाता है।

अशोक के अभिलेख इस बात के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि वह बौद्ध मतानुयायी था, अतः अब किसी को उसके बौद्ध होने में संदेह करने की जरुरत नहीं है।

अशोक को बौद्ध धर्मावलंबी बताने वाला सबसे ठोस प्रमाण उसका भाब्रू (वैरट-राजस्थान) से प्राप्त लघु-शिलालेख है, जिसमें अशोक स्पष्टतः बुद्ध, धम्म, संघ का अभिवादन करता है। इस लेख के साम्प्रदायिक स्वरूप के विषय में संदेह नहीं किया जा सकता। उसे बौद्ध सिद्ध करने वाला दूसरा अभिलेख उसका शासनादेश है, जो सारनाथ, सांची, कौशांबी के लघु-स्तंभों पर उत्कीर्ण मिलता है। इसमें अशोक बौद्ध धर्म के रक्षक के रूप में हमारे सामने आता है।

साँची के लघु स्तंभलेख में वह बौद्ध संघ में फूट डालने वाले भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को चेतावनी देता है- जो कोई भिक्षु या भिक्षुणी संघ को भंग करेगा, वह श्वेत वस्र पहनाकर अयोग्य स्थान पर रखा जायेगा। इस प्रकार यह आदेश भिक्षुसंघ और भिक्षुणीसंघ में सूचित किया जाना चाहिए, क्योंकि मेरी इच्छा है कि संघ समग्र होकर चिरस्थायी हो जाय। इसके अतिरिक्त किसी भी धार्मिक अथवा लौकिक ग्रंत से अशोक का किसी बौद्धेतर धर्म से संबंधित होना सूचित नहीं होता।

अशोक आजीवन उपासक ही रहा और वह भिक्षु अथवा संघाध्यक्ष कभी नहीं बना।

संघ-भेद रोकने का आदेश भी उसने राजा की हैसियत से ही दिया था। इस समय बौद्ध संघ में कुछ ऐसे अवांछनीय तत्व प्रविष्ट हो गये थे, जिनसे संघ की व्यवस्था गङबङ हो रही थी। संघ की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने के लिये इन तत्त्वों का विष्कासन आवश्यक था।

महावंश से ज्ञात होता है, कि अपने अभिषेक के 18 वें वर्ष अशोक ने लंका के राजा के पास भेजे गये एक संदेश में बताया था, कि वह शाक्यपुत्र (गौतम बुद्ध के) धर्म का एक साधारण उपासक बन गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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