इतिहासपरमार वंशप्राचीन भारत

मालवा के परमार शासक भोज का इतिहास

परमार शासक सिंधुराज के बाद उसका बेटा भोज परमारवंश का शासक बना। भोज परमार वंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक था, जिसके समय में राजनीतिक और सांस्कृतिक उन्नति हुई। भोज के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले कई अभिलेख मिले हैं, जो 1011 ईस्वी से 1046 ईस्वी तक के हैं।

उदयपुर प्रशस्ति से हमें भोज की राजनैतिक उपलब्धियों के बारे में सूचना प्राप्त होती है। इस प्रशस्ति के अनुसार भोज ने चेदिश्वर, इंद्ररथ, तोग्गल, राजा भीम, कर्नाट, लाट और गुर्जर के राजाओं तथा तुर्कों को पराजित किया ।

भोज द्वारा किये गये युद्ध तथा विजयें

भोज का सर्वप्रथम संघर्ष कल्याणी के चालुक्यों के साथ हुआ। प्रारंभ में उसे सफलता मिली। तथा गोदावरी नदी के आस-पास का क्षेत्र उसने जीत लिया था। इस युद्ध में त्रिपुरी के कलचुरि नरेश गांगेयदेव विक्रमादित्य तथा चोलनरेश राजेन्द्र से भोज को सहायता प्राप्त हुई थी। कल्वन लेख, जो भोज के सामंत यशोवर्मा का है, से पता चलता है, कि उसने कर्नाट, लाट तथा कोंकण का प्रदेश जीता था।…अधिक जानकारी

भोज का चंदेलों से संघर्ष

जिस समय भोज मालवा में अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था, उसी समय बुंदेलखंड में चंदेल भी अपनी सत्ता सुदृढ करने में लगे हुये थे। भोज का समकालीन चंदेल शासक विद्याधर उससे बढकर महत्वाकांक्षी एवं पराक्रमी था। ग्वालियर तथा दूबकुण्ड में उसके कछवाहा वंशी सामंत शासन करते थे। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच संघर्ष होना स्वाभाविक ही था।

ऐसा पता चलता है, कि भोज विद्याधर की बढती हुई शक्ति के आगे कमजोर पङ गया और उसे पराजित होना पङा।

चंदेल वंश के एक लेख में कहा गया है, कि भोज ने विद्याधर के ऊपर आक्रमण किया तथा पराजित हुआ था। किन्तु चंदेल शासक विद्याधर की मृत्यु के बाद चंदेल शक्ति कमजोर पङ गयी और कछवाहों ने (जो पहले चंदेलों के सहयोग से शक्तिशाली बने हुये थे ) भोज की अधीनता स्वीकार कर ली ।

मालवा के पश्चिमोत्तर में राजपूतों का शासन था । परमार भोज का इन राजपूतों के साथ भी संघर्ष हुआ।…अधिक जानकारी

भोज की पराजय तथा परमार सत्ता का अंत

परमार वंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक भोज अत्यधिक महत्वाकांक्षी था, इसके साथ ही साथ उसने बहुत सारे युद्ध किये थे, जो बिना किसी योजना के अनुसार करे थे, जिसके कारण उसकी पराजय हुई। यही कारण परमारवंश के पतन का मुख्य कारण है।

भोज अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने साम्राज्य की रक्षा नहीं कर सका तथा उसे भारी असफलताओं का सामना करना पङा था।…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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