गहङवाल वंश का संस्थापक कौन था
गहङवाल वंश –गहड़वाल वंश की स्थापना राजपूत प्रतिहारों के बाद चन्द्रदेव ने कन्नौज में की थी। उसने 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। प्रतिहारों के बाद कन्नौज के वैभव तथा उसकी समृद्धि को गहङवालों ने नया जीवन प्रदान किया। 1080-85 ई. के बीच चंद्रदेव ने राष्ट्रकूट शासक गोपाल को हराकर कन्नौज और लगभग संपूर्ण (आधुनिक) उत्तर प्रदेश पर अपना आधिपत्य स्थापित करके 1100 ई. तक शासन किया। उसके उत्तराधिकारी मदन चंद्र या मदन पाल के संबंध में विस्तृत जानकारी आज उपलब्ध नहीं है। मदन चंद्र का पुत्र और उत्तराधिकारी गोविंद चंद्र (1114-1154 ई.) महत्वाकांक्षी तथा योग्य शासक था। उसने बंगाल के पालों से मगध को जीता था और मालवा पर भी अधिकार कर लिया। उसने उङीसा और कलिंग के शासकों से भी शक्ति-परीक्षण किया था तथा कश्मीर के शासक जयसिंह, गुजरात के जयसिंह सिद्धराज तथा दक्षिण के चोल शासकों से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए। इसने लाहौर के तुर्की हाकिम को हराकर आगे बढने से रोका। युद्ध और कूटनीति दोनों में समर्थ गोविंद चंद्र ने एक बङे साम्राज्य का निर्माण किया। अनेक शत्रुओं के आक्रमण को विफल करने में भी उसने भारी सफलता प्राप्त की थी। वह अपने वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली शासक था। इसके लङके विजयचंद्र ने (1156-1170 ई.) गहङवाल साम्राज्य को सुरक्षित बनाए रखा और लाहौर के तुर्की हाकिम को भी हटाया।
जयचंद्र (1170-1193 ई.) इस वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था। पूर्व की ओर विस्तार के प्रयास में इसे बंगाल के शासक लक्ष्मण सेन से पराजित होना पङा। दिल्ली पर आधिपत्य को लेकर चौहानों और गहङवालों में शत्रुता चली आ रही थी जिस पर अंततः चौहानों ने कब्जा कर लिया। यदि राजपूत आख्यानों को स्वीकार कर लें तो मानना होगा कि जयचंद्र की पुत्री संयोगिता का पृथ्वीराज तृतीय द्वारा हरण कर लिए जाने के कारण यह शत्रुता और भी बढ गई थी। दिल्ली विजय के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक तथा मुहम्मद गौरी ने जयचंद्र पर आक्रमण किया। 1193 ई. में चंदावर के युद्ध में जयचंद्र हार गया और मार डाला गया। उसका पुत्र हरिश्चंद्र कन्नौज को तुर्कों से मुक्त कराने में असफल रहा। इल्तुतमिश ने यहाँ स्थायी रूप से तुर्की सत्ता को स्थापित किया।