इतिहासराजस्थान का इतिहास

राव गोपालसिंह का इतिहास

राव गोपालसिंह (1872-1939ई.) – अजमेर-मेरवाङा में खरवा ठिकाने के राव गोपालसिंह आर्य समाज के सिद्धांतों से प्रभावित थे, और राजपूतों में कुछ सुधार लाना चाहते थे। अजमेर का प्रतिनिधित्व करते हुए धर्म महामंडल के शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में उन्हें बंगाल जाने का अवसर मिला, जहाँ उनकी भेंट कुछ क्रांतिकारियों से हुई। 1907 ई. में उन्होंने अजमेर में एक राजपूत छात्रावास खोला तथा कुछ राजपूत एवं ब्राह्मण विद्यार्थियों को डी.ए.वी. स्कूल अजमेर में पढने के लिए छात्रवृत्तियाँ दी। ब्यावर के उद्योगपति सेठ दामोदरदास राठी से आर्थिक सहायता लेकर अस्र-शस्र एकत्रित किये। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्तरी भारत में सशस्र क्रांति की योजना बनायी गयी। राव गोपालसिंह भी इस योजना से संबंधित थे। किन्तु भेद खुल जाने पर योजना विफल हो गयी।

राव गोपालसिंह

इस षडयंत्र की जाँच के दौरान राव गोपालसिंह का नाम सरकार के सामने आया। अतः राव के बारे में गहरी छानबीन की गयी तथा उसके विरुद्ध जोधपुर और नसीराबाद सेना के राजपूत सैनिकों में अँग्रेज-विरोधी भावनाएँ फैलाने का आरोप लगाया गया। 26 जून, 1915 ई. को ब्रिटिश सरकार ने राव को टॉडगढ में रहने का आदेश दिया कि वह बिना अनुमति के टॉडगढ की सीमा से बाहर न जाए। इस पर राव टॉडगढ चला गया, किन्तु 10 जुलाई, 1915 ई. को वह टॉडगढ से भाग निकला। अगस्त, 1915 ई. में सलेमाबाद (किशनगढ) में पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। अँग्रेजी सरकार उसके विरुद्ध कोई अपराध सिद्ध न कर सकी। अन्ततः उसके खिलाफ भारत सरकार अधिनियम की धारा 3 के अधीन मुकदमा चलाया गया। उसका केवल यही अपराध था कि वह टॉडगढ से बिना अनुमति के चला आया था। उसे दो वर्ष के साधारण कारावास की सजा देकर शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) भेज दिया। उसकी जागीर खरवा सरकार ने जब्त कर ली।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Online References
विकिपीडिया : राव गोपाल सिंह

Related Articles

error: Content is protected !!