इतिहासराजस्थान का इतिहास

संयुक्त राजस्थान का निर्माण कब हुआ

संयुक्त राजस्थान – भारत सरकार का रियासती विभाग दक्षिणी राजस्थान के छोटे-छोटे राज्यों के एकीकरण की समस्या को भी हल करना चाहता था। इधर जब मत्स्य संघ के निर्माण के लिये वार्ता चल रही थी तभी रियासती विभाग ने इन रियासतों का मध्य भारत और गुजरात की रियासतों के साथ एकीकरण का प्रस्ताव रखा। किन्तु यह प्रस्ताव न तो शासकों ने स्वीकार किया और न जन प्रतिनधियों ने। इस प्रस्ताव के प्रत्युत्तर में कोटा के महाराव भीमसिंह ने एक हाङौती संघ बनाने का प्रस्ताव किया जिसमें कोटा, बूँदी, झालावाङ, डूँगरपुर, बाँसवाङा, प्रतापगढ, शाहपुरा, टोंक और किशनगढ के राज्य शामिल हों। डूँगरपुर और झालावाङ के शासकों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। 3 मार्च, 1948 ई. को कोटा, डूँगरपुर और झालावाङ के शासकों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। 3 मार्च, 1948 ई. को कोटा, डूँगरपुर और झालावाङ के शासक दिल्ली गये और भारत सरकार से प्रस्तावित संघ बनाने का अनुरोध किया। प्रस्तावित नये संघ के क्षेत्र के बीच मेवाङ अपना पृथक अस्तित्व बनाये रखने का अधिकारी था। इसलिए रियासती विभाग मेवाङ पर प्रस्तावित संघ में विलय के लिये दबाव नहीं डाल सकता था। फिर भी, कतिपय शासकों के आग्रह पर रियासती विभाग ने मेवाङ को नये राज्य में शामिल होने का नियंत्रण दिया। किन्तु मेवाङ के महाराणा भूपालसिंह तथा मेवाङ राज्य के दीवान सर एस. वी. राममूर्ति ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि मेवाङ का 1300 वर्ष पुराना राजवंश अपनी गौरवशाली परंपराओं को तिलांजलि देकर भारत के मानचित्र पर अपना अस्तित्व समाप्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि यदि दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान की रियासतें चाहें तो वे मेवाङ में अपना विलय कर सकती हैं। दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान की रियासतें मेवाङ में विलय के लिये तैयार नहीं हुई।

मेवाङ राज्य के इस रवैये को देखते हुए रियासती विभाग ने निर्णय लिया कि फिलहाल उदयपुर को छोङकर दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान की रियासतों को मिलाकर संयुक्त राजस्थान का निर्माण कर लिया जाय। उदयपुर राज्य अपनी इच्छानुसार बाद में भी इसमें सम्मिलित हो सकता है। प्रस्तावित संयुक्त राजस्थान में कोटा सबसे बङी रियासत थी। अतः रियासती विभाग ने निर्णय लिया कि संयुक्त राजस्थान के राजप्रमुख का पद कोटा के महाराव भीमसिंह को दिया जाय और 25 मार्च, 1948 ई. को श्री गाडगिल इस नये राज्य का विधिवत उद्घाटन करें। कोटा के महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख का पद दिया जाना, बूँदी के महाराव बहादुरसिं के गले नहीं उतरा, क्योंकि वंशपरंपरा के अनुसार कोटा के महाराव, बूँदी महाराव के छुटभैय्या थे। अतः बूँदी महाराव उदयपुर पहुँचे और महाराणा से नये राज्य में शामिल होने की प्रार्थना की, ताकि उदयपुर के महाराणा राजप्रमुख बन जायेंगे, जिससे बूँदी महाराव की कठिनाई का स्वतः निराकरण हो जायेगा। किन्तु महाराणा ने बूँदी महाराव को भी वही उत्तर दिया जो उन्होंने कुछ दिनों पहले रियासती विभाग को दिया था। अंत में विवश होकर बूँदी महाराव को, कोटा महाराव को राजप्रमुख बनाने का प्रस्ताव स्वीकार करना पङा। बूँदी महाराव का सम्मान करने के लिए भारत सरकार ने बूँदी महाराव को उप राजप्रमुख तथा डूँगरपुर के महाराव को जूनियर उप राजप्रमुख बनाने का निर्णय किया।

राजस्थानी रियासतों के इस नूतन संघ के प्रति उदयपुर के महाराणा की बेरुखी की मेवाङ में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। मेवाङ प्रजा मंडल के प्रमुख नेता और संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य श्री माणिक्यलाल वर्मा ने दिल्ली से जारी एक वक्तव्य में कहा कि मेवाङ की 20 लाख जनता के भाग्य का फैसला अकेले महाराणा साहब और उनके प्रधान सर राममूर्ति नहीं कर सकते। प्रजा मंडल की यह स्पष्ट नीति है कि मेवाङ अपना अस्तित्व समाप्त कर राजपूताना प्रान्त का एक अंग बन जाये। प्रजा मंडल के मुख पत्र मेवाङ प्रजा मंडल पत्रिका के 8 मार्च, और 15 मार्च, 1948 ई. के संपादकीय में भी मेवाङ को प्रस्तावित संघ में विलय करने की माँग का जबरदस्त समर्थन किया गया, किन्तु महाराणा अपने निश्चय पर अटल रहे। शीघ्र ही मेवाङ की राजनैतिक परिस्थितियों ने पलटा खाया। मेवाङ में मंत्रिमंडल के गठन को लेकर प्रजा मंडल और मेवाङ सरकार के बीच गतिरोध उत्पन्न हो गया। अतः राज्य में उत्पन्न राजनैतिक संकट को छुटकारा पाने के लिए महाराणा ने 23 मार्च, 1948 को मेवाङ को संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन की तारीख 25 मार्च, को आगे बढाने का आग्रह किया। इस पर भारत सरकार ने कोटा के महाराव से इस संबंध में बातचीत की। कोटा महाराव का कहना था कि चूँकि विलय की प्रक्रिया एवं उद्घाटन की सभी तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं, अतः ऐन वक्त पर कार्यक्रम में परिवर्तन करना संभव नहीं होगा। इसीलिए पूर्व निर्णय के अनुसार 25 मार्च, 1948 ई. को श्री गाडगिल ने संयुक्त राजस्थान का विधिवत उद्घाटन किया। प्रो.गोकुल प्रसाद असावा को प्रधानमंत्री बनाया गया। किन्तु भारत सरकार की सलाह पर मंत्रिमंडल के गठन का कार्य स्थगित कर दिया गया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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