इतिहासनेपोलियन बोनापार्टविश्व का इतिहास

नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के कारण

नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के कारण

उत्थान के बाद पतन प्रकृति का शाश्वत नियम है। नेपोलियन बोनापार्ट भी इस नियम से अछूता नहीं रह सका। एक सामान्य सैनिक से वह फ्रांस का सम्राट बन गया, परंतु वाटरलू के मैदान में उसे सम्राट पद तथा साम्राज्य, दोनों से हाथ धोना पङा और एक बंदी की हैसियत से उसे अपने अपने जीवन के शेष दिन बिताने पङे। उसके पतन के लिये निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-

नेपोलियन की महत्वाकांक्षा

नेपोलियन अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी था। वह समूचे यूरोप को अपने अधिकार में करना चाहता था। इसके लिये उसे लगभग चालीस युद्ध लङने पङे और अधिकांश में उसे सफलता मिली। इन सफलताओं में उसके सेनानयकों का भी विशेष योगदान रहा, परंतु सभी सफलताओं का सारा श्रेय वह स्वयं लेने का प्रयास करता था, जिससे उसके कई विश्वस्त सेनानायक भी उससे रुष्ट रहने लगे।

शारीरिक शक्तियों का कमजोर पङना

नेपोलियन ढलती उम्र के साथ अधिक मोटा और विलासप्रिय हो गया था। जिसके कारण परिश्रम और काम करने की उसकी शक्ति दिन प्रतिदिन कम होती जा रही थी। आस्ट्रिया की राजकुमारी के साथ विवाह करने के बाद वह प्रशासनिक कार्यों के प्रति उदासीन रहने लग गया। जो नेपोलियन दिन-रात काम करने तथा अपने मंत्रियों एवं सलाहकारों के साथ घंटों मंत्रणा करने का अभ्यस्त था, वह अब प्रशासनिक कार्यों के लिये कुछ घंटे भी नहीं दे पा रहा था।

चारित्रिक दुर्बलताएँ

नेपोलियन में बहुत सी चारित्रिक कमजोरियाँ थी। वह क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति था और जल्दी ही आवेश में आ जाता था। इसी कारण उसने विजित देशों के प्रति उदार व्यवहार नहीं किया और अपने शत्रुओं की संख्या मे वृद्धि करता गाय। सम्राट बनने के बाद उसने अपने योग्य सलाहकारों की राय लेना भी बंद कर दिया था।

भाई-भतीजावाद

प्रारंभ में नेपोलियन ने सरकारी पदों को योग्य व्यक्तियों के लिये खोल दिया था, परंतु सम्राट बनने के बाद वह भी भाई-भतीजावाद के चक्कर में फँस गया।उसने अपने एक भाई लुई को हालैण्ड का राजा बनाया। दूसरे भाई जेरोम को वेस्टफिलिया का राजा बनाया तो तीसरे भाई जोसफ को स्पेन के सिंहासन पर बैठा दिया।

अपनी माँ को उसने राजमाता की पदवी से विभूषित किया। उसने अपने सौतेले पुत्र यूजेन को इटली का वायसराय नियुक्त किया। अपनी बहिनों को भी पर्याप्त मान-सम्मान दिलवाया। एलिस को लुक्का की राजकुमारी बनवा दिया और एक अन्य बहिन कैरोलिन का विवाह अपने सेनापति मुरा के साथ कर दिया और मुरा को नेपिल्स का राजा बना दिया। इस प्रकार, उसने अपने परिवार के लगभग सभी सदस्यों को उजागर कर दिया।

नेपोलियन का अधिनायकवाद तथा जन प्रतिनिधित्व का अभाव

ज्यों-ज्यों नेपोलियन की स्थिति सुदृढ होती गयी, उसमें निरंकुशलता घर करती गयी, जिसका अंतिम सोपान था – अधिनायकवाद। निरंकुशलता से जनता में भय और आतंक तो उत्पन्न किया जा सकता है, परंतु निष्ठा और समर्थन प्राप्त नहीं किया जा सकता। फ्रांस के बाहर उसने मनमाने ढंग से पुराने राजवंशों तथा राज्यों का विघटन कर नए राज्यों का निर्माण किया।

फ्रांस के अंदर उसने स्थानीय शासन संस्थाओं में निर्वाचन पद्धति को समाप्त कर दिया और निर्वाचित अधिकारियों के स्थान पर अपने विश्वस्त अधिकारियों को नियुक्त किया, जो केवल उसी के प्रति उत्तरदायी होते थे। इससे स्थानीय नागरिक अपने स्थानीय मामलों का प्रबंध करने की सुविधा एवं स्वतंत्रता से वंचित हो गये। फ्रांस की जनता को यह बात खटकने लगी। वास्तव में उसकी शासन व्यवस्था में जन प्रतिनिधित्व का अभाव था।

सैनिक दुर्बलताएँ

प्रारंभ में नेपोलियन की सेना के सामने एक आदर्श था। वह स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के लिये लङ रही थी, परंतु जब नेपोलियन ने इन आदर्शों की अवहेलना करनी शुरू कर दी तो उसकी सेना का क्रांतिकारी जोश भी समाप्त हो गया। अब उसमें और एक निरंकुश शासक की सेना में कोई अंतर नहीं रह गया। वाटरलू के मैदान में नेपोलियन जिन सैनिकों के साथ लङ रहा था, उनकी औसत आयु 15 से 16 वर्ष की थी । उसकी सैनिक निर्बलता ही अंत में उसके पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई।

नौ-शक्ति की दुर्बलता

नेपोलियन के पतन का एक प्रमुख कारण फ्रांस की नौ शक्ति की दुर्बलता था। उसने स्थल युद्धों में यूरोप के सभी देशों को पराजित करने में सफलता प्राप्त की, परंतु वह इंग्लैण्ड को पराजित करने में असफल रहा। इंग्लैण्ड ही उसका प्रमुख एवं प्रबल शत्रु था और वही नेपोलियन के विरुद्ध बार-बार गुटों का निर्माण करता रहा और गुट में सम्मिलित होने वाले देशों को सैनिक साज-सामान से मदद करता रहा।

इंग्लैण्ड को अपनी श्रेष्ठ नौ-शक्ति के कारण अपनी सुरक्षा का भय नहीं था। उसके जहाजी बेङे के परास्त करना आसान काम नहीं था। नेपोलियन को दो बार इंग्लैण्ड के जहाजी बेङे के हाथों पराजय का मुँह देखना पङा। फ्रांस की नौ सैनिक शक्ति की दुर्बलता के कारण ही नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था असफल रही थी।

महाद्वीपीय व्यवस्था

पोप से शत्रुता

जब पोप ने महाद्वीपीय व्यवस्था का पालन करने से इंकार कर दिया तो नेपोलियन ने पोप का राज्य छीन लिया और पोप को वेटिकन में बंदी बनाकर रखा गया। प्रत्युत्तर में पोप ने नेपोलियन को ईसाई समाज से बहिष्कृत कर दिया और समस्त निष्ठावान ईसाइयों से उसके विरुद्ध धर्मयुद्ध करने की अपील की। परिणास्वरूप यूरोप का कैथोलिक समाज नेपोलियन का शत्रु बन गया।

स्पेन का राष्ट्रीय आंदोलन

स्पेन का राजा नेपोलियन का घनिष्ठ मित्र था और उसने नेपोलियन को जन,धन और सामग्री से भरपूर सहायता भी दी थी। परंतु जब साम्राज्य लोलुप नेपोलियन ने उसे सिंहासनच्युत करेक अपने भाई जोसेंफ को स्पेन का राजा बना दिया, तो स्पेन की जनता उसके विरुद्ध उठ खङी हुई स्पेन के राष्ट्रीय आंदोलन ने इंग्लैण्ड को यूरोप की धरती पर पैर टिकाने का अवसर प्रदान कर दिया।

स्पेन के राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिये नेपोलियन को एक बहुत बङी सेना स्पेन में रखनी पङी। फिर भी, उसे सफलता नहीं मिली। स्पेन का राष्ट्रीय आंदोलन उसके लिये एक नासूर सिद्ध हुआ।

मास्को अभियान

फ्रांस की आर्थिक स्थिति का बिगङना

नेपोलियन के आर्थिक सुधारों एवं विजित देशों से प्राप्त धन संपदा ने फ्रांस की आर्थिक स्थिति को काफी सुधार दिया था। परंतु लगातार युद्धों से प्राप्त धन संपदा ने फ्रांस की आर्थिक स्थिति को पुनः डगमगा दिया। नेपोलियन के ठाठ ने भी राजकीय कोष को क्षति पहुँचायी और विवश होकर सरकार को जनता पर अनेक कर लगाने पङे। इससे जन असंतोष में वृद्धि हुई।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Related Articles

error: Content is protected !!