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नेपोलियन बोनापार्ट का मास्को अभियान

नेपोलियन बोनापार्ट का मास्को अभियान

नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था ने रूस को भी फ्रांस का शत्रु बना दिया। इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी थे, जिनकी वजह से दोनों की मैत्री टूट गई। पहला कारण रूस के सामंतों का फ्रांस के प्रति विरोध था। फ्रांसीसी क्रांति ने उस देश के सामंतों को विशेषाधिकारों तथा जागीरों से वंचित करके दीन-हीन बना दिया था।

इससे रूसी सामंतों को बङी ठेस पहुँची थी और वे अपने राजा पर फ्रांस विरोधी नीति अपनाने पर निरंतर जोर डालते रहे। महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण रूसी सामंतों को भी इंग्लैण्ड से आमोद-प्रमोद तथा भोग-विलासिता का सामान प्राप्त करने में बहुत अधिक कठिनाई आ रही थी। दूसरा कारण, रूस का जार अलेक्जेण्डर था।

उसे नेपोलियन की मैत्री से जो कुछ लाभ मिलना था, वह मिल चुका था। उसने फिनलैण्ड और डेन्यूब का क्षेत्र ले लिया था। अब और अधिक लाभ की आशा नहीं थी। क्योंकि नेपोलियन ने रूस को कुस्तुनतुनिया न देने का फैसला कर लिया था। अलेक्जेण्डर को यह भी भय था, कि कहीं नेपोलियन पोलैण्ड के राज्य का पुनरुद्धार न करे। इस स्थिति में उसे भी पोलैण्ड के अपने प्रदेशों से हाथ धोना पङ सकता था, परंतु तनाव का मुख्य कारण महाद्वीपीय व्यवस्था ही थी।

जर्मनी में इस व्यवस्था को सख्ती के साथ लागू करने की दृष्टि से नेपोलियन ने ओल्डेनबुर्ग की डची को अपने अधिकार में ले लिया था। यहाँ का शासक जार अलेक्जेण्डर का बहनोई था, अतः जार का रुष्ट होना स्वाभाविक ही था। इसके बाद नेपोलियन ने जार को भी सख्ती के साथ महाद्वीपीय व्यवस्था का पालन करवाने को कहा, परंतु जार ने न केवल असंतोषजनक उत्तर ही भिजवाया अपितु उसने तटस्थ देशों के जहाजों को रूसी बंदरगाहों में आने के लिये कुछ सुविधाएँ भी दे दीं, जिससे नेपोलियन क्रोधित हो उठा और उसने रूस पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया।

रूस के बारे में यह विख्यात था, कि वहाँ छोटी सेनाएँ परास्त हो जाती हैं और बङी सेनाएँ भूखों मर जाती हैं। नेपोलियन इस सत्य से भली-भाँति परिचित था। उसने एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें लगभग 6 लाख सैनिक थे। इतनी बङी सेना के लिये आवश्यक सामान भी पर्याप्त मात्रा में साथ ले लिया गया।

मई, 1812 ई. में जब सब तैयारियाँ पूरी हो गयी तो 24 जून को अभियान शुरू हुआ। अपनी परंपरागत शैली के अनुसार रूसी सेना पीछे हटती गयी। पीछे हटते समय रूसी लोग अपने खेतों एवं खलिहानों को जलाते गये ताकि शत्रु को अन्न और घास भी न मिल सके।

14 सितंबर को नेपोलियन मास्को पहुँच गया और 22 अक्टूबर तक वहीं रहा। अब तब उसको अधिक कठिनाई अथवा प्रतिरोध का सामना नहीं करना पङा था, परंतु अब रूस की कङकङाती सर्दी ने उसके सैनिकों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। घास के अभाव में सैकङों घोङे मरने लगे।

मास्को से वापस रवाना होते ही रूसियों ने फ्रांसीसियों पर पीछे से जोरदार आक्रमण कर दिया। हजारों सैनिक रोज मरने लगे, जो बचे थे उनको भरपेट भोजन नसीब नहीं हो रहा था। इस प्रकार, उसे बहुत सी कठिनाइयाँ उठानी पङी और नेपोलियन अपनी विशाल सेना के केवल बीस हजार सैनिकों के साथ वापस आ सका अर्थात् उसके पाँच लाख अस्सी हजार सैनिक मारे गये और किसी प्रकार का लाभ भी न हुआ।

रूस के हाथों नेपोलियन की दुर्दशा की कहानी सुनकर दूसरे देशों में भी जोश पैदा हो गया और उन्होंने नेपोलियन के विरुद्ध पुनः हथियार उठा लाये।

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