इतिहासनेपोलियन बोनापार्टविश्व का इतिहास

नेपोलियन बोनापार्ट की विदेश नीति

फ्रांस में कोंसल बनते ही नेपोलियन को फ्रांस के नए शत्रु संघ से निपटना पङा। इसमें इंग्लैण्ड, आस्ट्रिया और रूस सम्मिलित थे।

रूस की अपने मित्रों से अनबन हो गयी थी और वह संघ से अलग हो गया। इस समय आस्ट्रिया की एक सेना राइन के किनारे पर स्थित थी और दूसरी इटली में। हुआ यह था, कि जब नेपोलियन मिस्त्र अभियान पर गया हुआ था, तो उस समय आस्ट्रियाई सेना ने फ्रांसीसी सेनापति मेसीना को परास्त करके जिनोआ में शरण लेने पर विवश कर दिया और बाद में उसने जिनोआ की घेराबंदी कर दी। इस समय मेसीना की स्थिति दयनीय हो चुकी थी।

नेपोलियन ने एक अत्यधिक जोखिमपूर्ण योजना बनाई। उसने आस्ट्रियाई सेनाओं तथा देश के बीच में घुसकर पीछे से आक्रमण करने का निश्चय किया। इसके लिये उसे विशाल सेना सहित बर्फीले आल्प्स पर्वत को लाँघना पङा और यह काम केवल एक सप्ताह में पूरा कर लिया गया। सारा संसार उसके इस वीर कार्य से आर्श्चयचकित हो गया। 14 जून, 1800 के दिन उसने इटली स्थित आस्ट्रियाई सेना को पराजित किया।

आस्ट्रियाई सेना को युद्ध विराम संधि के लिये विवश होना पङा और मिसिओ तक का उत्तरी इटली का संपूर्ण भू-भाग फ्रांस को सौंपना पङा। राइन के किनारे स्थित आस्ट्रियाई सेना से निपटने के लिये नेपोलियन ने अपने एक वीर सेनानायक मोरू को पहले से ही भेज दिया था।

6 मास के बाद जर्मनी में होहेन लिण्डन नामक स्थान पर लङे गये युद्ध में मोरू ने आस्ट्रियन सेना को परास्त कर दिया। फलस्वरूप 9 फरवरी, 1801 को आस्ट्रिया ने लुनेविले की संधि कर ली। इसकी शर्तें केम्पोफोर्मियों की संधि के समान ही थी।

अब केवल इंग्लैण्ड शेष रह गया और उससे निपटना बहुत कठिन था। दोनों देशों के मध्य लंबे समय तक संघर्ष चलता रहा और संघर्षकाल में इंग्लैण्ड ने फ्रांसीसी बेङे को कई बार परास्त किया तथा उसके मित्र राज्यों – स्पेन, हालैण्ड आदि के कुछ उपनिवेशों को भी जीत लिया।

अंत में दोनों पक्षों ने थककर मार्च, 1802 में आमिन्स की संधि कर ली। संधि के अनुसार इंग्लैण्ड ने फ्रांसीसी गणतंत्र को मान्यता दे दी। उसने फ्रांस के सब उपनिवेश लौटा दिये। लंका और ट्रिनिडाड के अलावा स्पेन और हालैण्ड के सभी उपनिवेश भी वापस कर लदिये गये।

इंग्लैण्ड ने माल्टा और मिस्त्र से अपनी सेनाएँ हटा लेने का आश्वासन दिया। इस प्रकार, गत दस वर्षों के बाद यूरोप को युद्ध से मुक्ति मिली, परंतु यह स्थायी शांती नहीं थी। केवल एक वर्ष बाद ही संघर्ष पुनः शुरू हो गया।

वस्तुतः नेपोलियन ने संधि के तुरंत बाद अगले संघर्ष की तैयारी प्रारंभ कर दी थी। उसने फ्रांस के बंदरगाहों तथा गोदियों को विकसित किया। नए जहाज बने और उन्हें मौरिशस और मदागास्कर की ओर भारत के रास्ते पर भेजा गया। उधर इंग्लैण्ड भी पूरी तरह से चौकन्ना था।

लार्ड कार्नवालिस तथा नेपल्सन ने अगले संघर्ष की पूरी तैयारी कर ली थी। माल्टा के प्रश्न को लेकर दोनों पक्षों में पुनः संघर्ष शुरू हो गया, जो पहले से भी अधिक भयानक सिद्ध हुआ और वाटरलू के युद्ध(18 जून 1815) तक जारी रहा। संधि के अनुसार इंग्लैण्ड को माल्टा द्वीप खाली करना था, परंतु अब इंग्लैण्ड उसे छोङने को तैयार नहीं हुआ। 1803 ई. में दोनों देशों की बीच कूटनीतिज्ञ संबंध समाप्त हो गया।

इसके बाद युद्ध शुरू हो गया, परंतु नेपोलियन को इंग्लैण्ड के विरुद्ध सफलता न मिली। इसके विपरीत फ्रांस तथा स्पेन के जहाजी बेङे को भारी क्षति उठानी पङी।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

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