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जहाँगीर की धार्मिक नीति एवं महत्त्वपूर्ण तथ्य

जहाँगीर

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जहाँगीर धार्मिक दृष्टि से असहिष्णु नहीं था। उसने 1612ई. में पहली बार रक्षाबंधन त्यौंहार मनाया और अपनी कलाई पर राखी बँधवायी।जहाँगीर ने दीवाली के दिन जुआ खेलने की इजाजत दे रखी थी। जहाँगीर भी अकबर की तरह ब्राह्मणों  को और मंदिरों को प्रभूत दान देता था। जिसकी पुष्टि वृंदावन के चैतन्य सम्प्रदाय के मंदिरों मे ंउपलब्ध प्रलेखों से होती है। इसके अलावा उसने अकबर द्वारा जारी गो-हत्या निषेध की परंपरा को जारी रखा।

  • जहाँगीर ने श्रीकांत नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं का जज नियुक्त किया ताकि वे सहूलियत महसूस कर सके और उन्हें किसी मुसलमान की कृपा का मोहताज न  होना पङे।
  • जहाँगीर ने एक नयी प्रथा चलायी जिसके अनुसार पुरुषों का कान छिदवाकर मूल्यवान रत्न पहनना फैशन बन गया।
  • जहाँगीर ने सूरदास को आश्रय दिया था और उसी के संरक्षण में सूरसागर की रचना हुई।

किन्तु कुछ घटनाओं से यह साबित होता है कि जहाँगीर ने कभी-2इस्लाम का पक्ष लिया था। जैसे-

  1. राजौरी के हिन्दुओं को दंड दिया, क्योंकि वे मुस्लिम लङकियों से विवाह कर उन्हें हिन्दू बना लेते थे।
  2. कांगङा के किले को जीतने के बाद वहाँ उसने गाय कटवाकर जश्न मनाया।
  3. अजमेर स्थित वराह मंदिर की मूर्तियों को उसने एक तालाब में फिकवा दिया था।
  4. पुर्तगालियों से युद्ध के समय राज्य के सभी गिरजाघरों को बंद करवा दिया था।
  5. एक अवसर पर उसने जैनियों से अप्रसन्न होकर उन्हें गुजरात से बाहर चले जाने का आदेश दे दिया था।

अन्य घटनाएँ-

  • जहाँगीर ने ही सर्वप्रथम मराठों के महत्त्व को समझा और उन्हें मुगल अमीर वर्ग में शामिल किया।
  • जहाँगीर ईसाई धर्म से सबसे अधिक प्रभावित था और उसने अपने पौत्रों की शिक्षा का प्रबंध उन्हीं की देख-रेख में किया।
  • जहाँगीर का सबसे बङा गुण उसकी न्यायप्रियता थी तो उसका सबसे बङा अवगुण बहुत अधिक शराब पीना था। उसके इन्हीं अवगुों पर दुखी होकर उसकी पत्नी मानबाई (शाहवेगम) ने जहर पीकर आत्मह्त्या कर ली थी। 
  • मुगल काल में पिता के शासन काल में ही अर्थात् पिता के खिलाफ विद्रोह करन की शुरूआत जहाँगीर के समय से लहर शुरू हुई।
  • जहांगीर ने अपनी प्रेयसी अनारकली के लिए 1615ई. में लाहौर में एक सुन्दर कब्र बनवायी और जिस पर यह प्रेमपूर्ण अभिलेख लिखवाया कि – “यदी मैं अपनी प्रेयसी का चेहरा एक बार पुनः देख पाता , तो कयामत के दिन तक अल्लाह को धन्यवाद देता।”
  • जहाँगीर के शासन काल में हाकिन्स  आया था। यह इस्ट इंडिया कंपन्नी  का प्रतिनिधि  था  ,1608से 1611ई. तक भारत में रहा था।
  • सर टामस रो  जो सम्राट जेम्स का दूत था ,1615 से 1619ई. तक भारत  में रहा था।
  • जहाँगीर ने हाकिन्स को 4000 का मनसब दिया था।

नूरजहाँ गुट-

नूरजहाँ से संबंधित सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके द्वारा बनाया गया जुन्टा गुट था। जिसमें उसका पिता एतमादुद्दौला, माता अस्मत बेगम, भाई आसफ खाँ तथा शाहजादा खुर्रम  सम्मिलित था।

नूरजहाँ के जन्म एवं प्रारंभिक जीवन के बारे में जानकारी मुअतमिद खाँ द्वारा लिखित – इकबाल नामा-ए-जहाँगीरी से मिलता है। उसके बचपन का नाम मेहरुन्निसा था।

नूरजहाँ के पिता गयासबेग ( जिसे जहाँगीर ने ऐतमादुद्दौला की उपाधि दी थी) एवं माता अस्मत बेगम फारस के रहने वाले थे, जो अकबर के काल में मुगल दरबार में आये थे।

नूरजहाँ और जहाँगीर का विवाह 1611ई. में हुआ था। विवाह के फलस्वरूप उसे नूरजहाँ की उपाधि दी गयी।

नूरजहाँ अलीकुली खाँ (शेर अफगन) की विधवा थी। जिसे कुछ इतिहासकारों के अनुसार जहाँगीर ने मरवा दिया था।

नूरजहाँ के चरित्र की मुख्य विशेषता – उसकी अपरिमित महत्वाकांक्षा थी। नूरजहाँ जहाँगीर के साथ झरोखा दर्शन देती थी। सिक्कों पर बादशाह के साथ उसका भी नाम अंकित होता था। इसके अतिरिक्त शाही आदेशों पर बादशाह के साथ उसका भी हस्ताक्षर होता था।

नूरजहाँ ने भी श्रृंगार – प्रसाधनों और जेवरों में सुरुचिपूर्ण परिवर्तन किये।

नूरजहाँ 2 लाख रुपये प्रति वर्ष की पेंशनभोगी बनकर अपना अंतिम जीवन लाहौर में बिताया और 1645ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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