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नेपोलियन बोनापार्ट का मिस्त्र अभियान

नेपोलियन बोनापार्ट का मिस्त्र अभियान

1798-99 ई. में नेपोलियन ने मिस्त्र का अभियान किया था। फ्रांस की क्रांति के आरंभ में इंग्लैण्ड के बहुत से लोगों की सहानुभूति क्रांति के साथ थी, परंतु जब क्रांतिकारियों ने हत्याओं एवं जुल्मों का सिलसिला शुरू किया तो अधिकांश अंग्रेज क्रांति के विरोधी हो गए।

1793 ई. में जब फ्रांस ने महादेशीय युद्ध छेङ दिया तो इंग्लैण्ड भी अन्य देशों की सहायता के लिये युद्ध में कूद पङा। प्रारंभिक असफलता के बाद फ्रांसीसी सेनाओं ने यूरोप के मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को परास्त करके खदेङ दिया और उन्हें संधि करने के लिये विवश कर दिया। अब केवल इंग्लैण्ड मैदान में रह गया था।

डाइरेक्टरी ने नेपोलियन को इंग्लैण्ड से लङने वाली फ्रांसीसी सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त किया। नेपोलियन यह भली भांति जानता था, कि इंग्लैण्ड पर सीधा आक्रमण करने में कभी सफलता नहीं मिलेगी। अतः उसने मिस्त्र पर अधिकार करके इंग्लैण्ड और भारत के मार्ग को नियंत्रित करने का निश्चय किया, क्योंकि नेपोलियन का मत था, कि इंग्लैण्ड की शक्ति का स्त्रोत भारत की अतुल्त धन संपदा है। उस समय में मिस्त्र अंग्रेजी साम्राज्य का भाग भी नहीं था।

वह टर्की के सुल्तान के अधीन था। 1798 ई. की बसंत ऋतु में नेपोलियन एक शक्ताशाली सेना के साथ जल मार्ग के द्वारा मिस्त्र की ओर चल पङा। सर्वप्रथम उसने माल्टा द्वीप पर अधिकार किया और फिर अलेक्जेण्ड्रिया के सुप्रसिद्ध बंदरगाह पर अधिकार कर लिया।

भाग्य की बात थी, कि अंग्रेज जल सेनानायक नेल्सन तीन दिन पहले ही उसकी तलाश में इसी बंदरगाह से रवाना हो चुका था। यदि रास्ते में नेपोलियन की मुलाकात उससे हो गयी तो शायद इतिहास का क्रम ही बदल जाता। 1 अगस्त, 1798 ई. को अबौकिर बे में निर्णायक युद्ध में नेल्सन ने नेपोलियन के जहाजी बेङे को नष्ट कर दिया। केवल दो जहाज और दो फ्रिगेट किसी प्रकार बच निकले।

अंग्रेजों की इस विजय के फलस्वरूप नेपोलियन का फ्रांस से संपर्क टूट गया और पूरब में एक विस्तृत विजय का उसका स्वप्न समाप्त हो गया, परंतु वह हताश होने वाला नहीं था। उसने सीरिया पर आक्रमण किया। प्रारंभ में उसे कुछ सफलता मिली और जापान नगर पर उसका अधिकार हो गया। इसके बाद उसकी स्थिति बिगङती गई। उसने एकरे नगर का घेरा डाला परंतु नगर को लेने में वह असफल रहा।

उसकी सेना में महामारी का जोर बढ गया और गोला – बारूद भी समाप्त हो गया। 25 जुलाई, 1799 ई. को अबूकर की खाङी के युद्ध में उसने एक विशाल तुर्की सेना को पराजित किया। इस अभियान की यह उसकी अंतिम विजय थी। 21 अगस्त, 1799 को अपनी सेना को उसके भाग्य के भरोसे छोङकर वह स्वयं कुछ चुने हुए साथियों के साथ गुप्त रूप से भाग निकला।

किसी प्रकार वह कोर्सिका द्वीप जा पहुँचा। यहाँ के लोगों ने उसका भव्य स्वागत किया। समूचे मार्ग में लोगों ने उसका स्वागत – सत्कार किया।

लोगों के उत्साह को देखकर नेपोलियन ने अपने एक साथी से कहा, ऐसा प्रतीत होता है, कि प्रत्येक व्यक्ति मेरा इंतजार कर रहा था। यदि मैं तनिक पहले आता तो यह ठीक न होता और यदि मैं बाद में आता तो बहुत देर हा जाती। मैं ठीक समय पर आया हूं। उसका यह कथन सत्य सिद्ध हुआ।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

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