इतिहासनेपोलियन बोनापार्टविश्व का इतिहास

फ्रांस में कोंसल शासन व्यवस्था : सुधारों का दौर

फ्रांस में कोंसल शासन व्यवस्था : सुधारों का दौर

कोंसल शासन के सामने अनेक समस्याएँ थी, परंतु कुछ काम ऐसे थे, जिनकी तरफ तुरंत ध्यान देना आवश्यक था, वे थे –

  • एक नए संविधान का निर्माण,
  • आंतरिक शांति और व्यवस्था में सुधार
  • फ्रांस के शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध को जारी रखना तथा शत्रु-संघ को छिन्न भिन्न करना।

संविधान का निर्माण

नेपोलियन ने सत्ता हस्तगत करने के बाद एक माह के भीतर ही नया संविधान बनवाकर उसे लागू भी करवा दिया। क्रांति के बाद यह चौथा संविधान था। इसके निर्माण में नेपोलियन का सर्वाधिक योगदान रहा था। संविधान का निर्माण इस ढंग से किया गया कि शासन के सर्वोच्च अधिकार नेपोलियन को प्राप्त हो जाय। कार्यपालिका शक्ति तीन कोंसलों को सौंप दी गयी।

कोंसलों की कार्यवधि दस साल तय की गयी। कोंसलों का निर्वाचन सीनेट नामक संस्था को सौंपा गया, परंतु शुरू के तीनों कोंसलों का नाम पहले से ही संविधान में दिया गया, ये थे –

  1. नेपोलियन,
  2. केम्बेसरी,
  3. लीब्रन
नए संविधान में चार संस्थाओं की व्यवस्था की गई
  1. राज्य परिषद
  2. ट्रिब्यूनेट
  3. व्यवस्थापिका
  4. सीनेट।

राज्य परिषद का काम विधेयकों का प्रारूप तैयार करना था। ट्रिब्यूनेट उन विधेयकों का वाद-विवाद कर सकती थी, परंतु उसे वोट देने का अधिकार न था। व्यवस्थापिका में 300 सदस्यों का प्रावधान था। व्यवस्थापिका अपने सम्मुख रखे जाने वाले विधेयकों पर वोट दे सकती थी, परंतु उसे विधेयकों पर विवाद करने का अधिकार न था।

गुप्त मतदान प्रणाली के आधार पर व्यवस्थापिका वोट देती थी। सीनेट को संविधान की रक्षा का दायित्व सौंपा गया। इसके अलावा सीनेट, कोंसलों, ट्रिब्यूनेट के सदस्यों तथा व्यवस्थापिका सभा के सदस्यों को भी चुनती थी, किन्तु इस काम में वह पूरी तरह से स्वतंत्र न थी।

इस संविधान में भी फ्रांस के नागरिकों को मतदान का अधिकार दिया गया, परंतु वह मात्र ढोंग था और उशका एकमात्र उद्देश्य जन-प्रभुत्व के ढकोसले को जीवित रखना था, अन्यथा जनता का प्रभुत्व समाप्त हो चुका था। नेपोलियन फ्रांस का प्रभु बन चुका था। उसने अपने सुधारों के द्वारा अपने आपको इस योग्य भी प्रमाणित कर दिखाया था।

व्यवस्था की स्थापना

पिछले कई वर्षों से क्रांति और विदेशी के परिणास्वरूप फ्रांस का राष्ट्रीय जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। देश में शांति और सुव्यवस्था का अभाव था। पुरानी व्यवस्था का अंत हो गया था, परंतु उसके स्थान पर नई व्यवस्था भली-भाँति नहीं जम पाई थी, अतः नेपोलियन का प्रथम कार्य संस्थाओं का नवीन संगठन और सामाजिक जीवन का पुनर्निर्माण था।

इसके लिये नेपोलियन ने क्रांति की भावना एवं सिद्धांतों का उपयोग किया। उसके सुधारों का ध्येय सामाजिक समानता स्थापित करना था। इस दृष्टि से उसने पुराने मतभेद, दलबंदी और झगङों को भुलाकर सभी को समान स्थान दिया किन्तु जो लोग उसकी इस नीति से संतुष्ट न हुए, उनको उसने कठोरता एवं निर्दयता के साथ कुचल दिया।

उसने सरकारी पदों के द्वार सभी के लिये समान शर्तों पर खोल दिये। भगोङों तथा विद्रोही पादरियों के विरुद्ध जो कानून पास किये गये थे, उन्हें उसने काफी नरम बना दिया। क्रांति के समय फ्रांस छोङकर भागने वाले कुलीनों और सामंतों को फिर से फ्रांस में बसने के लिये आमंत्रित किया गया।

पादरियों से सिर्फ राज्य भक्ति का वचन देने को कहा गया। उसने कैथोलिक पूजा की छूट भी दे दी। इस प्रकार, नेपोलियन ने फ्रांस की जनता को खुश करने के लिये चतुरता एवं दूरदर्शिता का सहारा लिया।

फ्रांसीसी क्रांति के कारण

प्रशासनिक सुधार

नेपोलियन ने शासन व्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण सुधार किये। राष्ट्रीय महासभा ने क्रांति की भावना में बहते हुये संपूर्ण फ्रांस को भिन्न-भिन्न डिपार्टमेंटों (विभागों) में विभाजित कर दिया था तथा प्रत्येक डिपार्टमेंट का अधिकारी वहां की जनता द्वारा निर्वाचित किया जाता था।

डाइरेक्टरी के शासनकाल में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया और सरकारी अधकिारियों की नियुक्ति की जाने लगी। नेपोलियन ने इसे ठोस रूप दिया। उसने संपूर्ण फ्रांस को विभागों (जिलों) में बाँट दिया। प्रत्येक विभागन का एक अधिकारी होता था, जो प्रीफेक्ट कहलाता था।

जिलों को उपविभागों (एरोण्डिजमेंट) में बाँटा गया। उसका अधिकारी उप-प्रीफेक्ट कहलाता था। प्रत्येक नगर अथवा कम्यून का प्रमुख मेयर कहलाता था। नेपोलियन ने अधिकांश विभागों पर अपने सैनिक अधिकारियों को नियुक्त किया। ये सैनिक अधिकारी सिर्फ नेपोलियन के प्रति उत्तरदायी होते थे।

इस प्रकार, स्थानीय प्रशासन पर नेपोलियन का पूरा अधिकार हो गया। स्थानीय नागरिक अपने स्थानीय मामलों का प्रबंध करने की सुविधा एवं स्वतंत्रता से वंचित हो गये।राष्ट्रीय तथा स्थानीय शासन के सभी सूत्र पेरिस में केन्द्रित हो गये।देश की व्यवस्था और शांति की स्थापना के लिये यह परम आवश्यक भी था।

आर्थिक सुधार

फ्रांस की आर्थिक स्थिति क्रांति के पूर्व ही खराब हो चुकी थी और क्रांति की उथल-पुथल के कारण और भी अधिक बिगङ गई थी। उद्योग-धंधे चौपट हो रहे थे। राज्य के कर नियमित रूप से वसूल नहीं हो पाते थे, जिससे राज्य की आय में भारी कमी आ गयी थी। नेपोलियन ने आर्थिक दशा को सुधारने का प्रयास किया।

सर्वप्रथम, उसने सरकारी कर-पद्धति में परिवर्तन किया। अब तक करों की वसूली स्थानीय संस्थाओं द्वारा की जाती थी। नेपोलियन ने राजकीय करों की वसूली के लिये सरकारी कर्मचारी नियुक्त किये। दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य था, व्यापारी-वाणिज्य की स्थिति में सुधार लाना। 1800 ई. में बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की गयी।

स्वर्ण एवं चाँदी के सिक्कों का स्तर निर्धारित किया गया। प्रत्यक्ष करों को कम किया गया तथा अप्रत्यक्ष करों (जैसे – शराब, नमक, तम्बाकू आदि पर) को बढाया गया। पराजित देशों से फ्रांसीसी सेनाओं का खर्चा वसूल किया जाने लगा तथा युद्ध का हर्जाना भी लिया जाने लगा।

व्यापार की उन्नति के लिये राष्ट्रीय उद्योग समिति का गठन किया गया तथा खाद्य-सामग्री की सुव्यवस्थित वितरण-पद्धति के संबंध में कई नियम बनाए गये। दशमलव पद्धति को लागू किया गया तथा यातायात के साधनों को सुधारा गया। इन सबके परिणामस्वरूप फ्रांस की आर्थिक स्थिति काफी उन्नत हो गयी।

पोप के साथ समझौता

धर्म के क्षेत्र में नेपोलियन स्वयं तटस्थ था, परंतु सार्वजनिक जीवन में वह धर्म के महत्त्व को समझता था। और इसका प्रयोग अपनी राजनीतिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में करना चाहता था। फ्रांस के अधिकांश निवासी रोमन कैथोलिक थे और क्रांति के पूर्व रोमन चर्च, फ्रांस के राजतंत्र तथा कुलीनों का समर्थक था।

क्रांति के समय में चर्च की सम्पत्ति तथा भूमि को जब्त कर लिया गया और पादरियों के विशेषाधिकार भी समाप्त कर दिये गये। पादरियों को सरकारी कोष से वेतन देने की व्यवस्था की गयी तथा उन्हें पादिरयों के संविधान के प्रति शपथ लेने के लिये विवश किया गया।

अधिकांश पादिरयों ने शपथ लेने से इंकार कर दिया और फ्रांस के कुछ क्षेत्रों में पादरियों के नेतृत्व में हजारों किसानों ने सरकार के विरुद्ध हथियार उठा लिये थे। काफी रक्तपात के बाद भी समस्या का सही समाधान नहीं हो पाया था। नेपोलियन ने कैथोलिकों का विश्वास जीतने का निश्चय किया।

इसमें उसका उद्देश्य शुद्ध रूप से राजनैतिक था। वह राजतंत्र के समर्थकों और पादरियों के गठबंधन को समाप्त करना चाहता था, ताकि उसकी स्वयं की सत्ता सुदृढ हो जाये। वह कैथोलिकों को सभी की स्वतंत्रता देने को तैयार था बशर्तें कि वे क्रांति द्वारा स्थापित व्यवस्था का विरोध करना छोङ दें। स्वयं नेपोलियन को धर्म के प्रति अधिक अनुराग न था। वह कहा करता था, मैं मिस्त्र में मुसलमान हूँ और फ्रांस में कैथोलिक।

वह अन्य लोगों पर किसी धर्म विशेष को बलात् लादना व्यर्थ का प्रयास समझता था। इसलिये उसने एक समझदार राजनीतिज्ञ की हैसियत से पोप के साथ समझौता करने का निश्चय कर लिया। इस समझौते से क्रांतिकाल में पारित बहुत से चर्च – विरोधी नियम समाप्त हो गये और चर्च तथा राज्य के मध्य निश्चित संंबंध कायम हो गये जो एक लंबी अवधि तक कायम रहे।

पोप के साथ समझौता कान्कार्डेट के नाम से प्रसिद्ध है। इस समझौते के द्वारा पोप ने क्रांतिकाल में चर्च की जब्त भूमियों पर से अपना अधिकार त्यागना स्वीकार कर लिया और बदले में नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया। पादरियों के नाम प्रस्तुत करने का अधिकार सरकार को दिया गया, परंतु उनकी नियुक्ति का अधिकार पोप को सौंपा गया।

पादरियों को वेतन राज्य कोष से देने की व्यवस्था जारी रखी गयी। पादिरयों को फ्रांस के संविधान के प्रति भक्ति की शपथ लेने की व्यवस्था भी रखी गयी। निर्वासित पादरियों को, जो क्रांति के समय फ्रांस को छोङकर भाग गये थे, उन्हें फ्रांस वापस लौटने की अनुमति मिल गयी तथा प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी।

क्रांति के कलेण्डर को भी स्थगित कर दिया गया तथा प्राचीन अवकाश के दिन पुनः प्रचलित हो गये। केवल 14 जुलाई तथा 22 सितंबर, प्रजातंत्र की स्थापना के दिवसों पर अवकाश रखा गया। क्रांति की शेष सभी छुट्टियों को बंद कर दिया गया।

नेपोलियन की धार्मिक नीति से फ्रांस के अधिकांस लोग संतुष्ट हो गये। सभी को धार्मिक स्वतंत्रता मिल गयी थी, अतः वे नेपोलियन के समर्थक बन गये। पादरी लोग भी जो क्रांति के विरोधी थे, अब नेपोलियन के समर्थक बन गये। इस प्रकार, नेपोलियन ने विशुद्ध राजनीतिक लाभ के लिये धर्म का प्रयोग किया।

शिक्षा संबंधी सुधार

नेपोलियन ने देश में शिक्षा के प्रसार के लिये विशेष रूप से प्रयत्न किया। उसने शिक्षा के कार्य को तीन भागों में विभाजित किया

  1. प्रारंभिक
  2. उच्च
  3. माध्यमिक और विश्वविद्यालय

प्रत्येक नगर में प्राथमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थापित किये गये। शिक्षकों को राज्य की ओर से वेतन दिया जाने लगा। शिल्प और व्यवसाय के विद्यालय भी खोले गये। पेरिस विश्वविद्यालय का पुनर्गठन किया गया। इस विश्वविद्यालय के प्रमुख अधिकारियों तथा प्रोफेसरों की नियुक्ति नेपोलियन स्वयं करता था। देश के सभी उच्च विद्यालयों को इस विश्वविद्यालय के साथ संबंधित किया गया। नेपोलियन ने निर्धन तथा योग्य छात्रों के लिये छात्रवृतियों की व्यवस्था की तथा शोध-कार्यों के लिये एक पृथक संस्थान भी स्थापित किया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Related Articles

error: Content is protected !!