इतिहासफ्रांस की क्रांतिविश्व का इतिहास

नेपोलियन का सत्ता हस्तगत करने का षड्यंत्र

नेपोलियन का सत्ता हस्तगत करने का षड्यंत्र

फ्रांस में डाइरेक्टरी को काम करते हुये चार वर्ष हो गये थे। इस समय वह बदनामी और अप्रियता की चरम सीमा पर थी। जनता उसकी भ्रष्टता, अयोग्यता एवं अराजकता से ऊब चुकी थी। और शासन में परिवर्तन चाहती थी। डाइरेक्टरी की अयोग्यता के कारण ही फ्रांस के विरुद्ध पुनः एक नया गुट बन गया था, जिसमें इंग्लैण्ड, अस्ट्रिया और रूप सम्मिलित थे।

इस गुट को काफी सफलता मिली और फ्रांसीसी फौजों को जर्मनी के बाहर राइन के किनारे तक खदेङ दिया गया था। ऐसी स्थिति में नेपोलियन ने सत्ता हस्तगत करने के लिये अपना जाल फैलाया। उसने उन नेताओं से संपर्क कायम किया जो किसी न किसी वजह से मौजूदा संविधान में संशोधन चाहते थे।

ऐसे लोगों में आबे साइस और बरास मुख्य थे। ये दोनों डाइरेक्टरी के सदस्य भी थे। नेपोलियन साइस और बरास ने योजना बनाई कि किसी न किसी प्रकार से संचालकों को त्याग पत्र देने के लिये विवश किया जाये। तब दोनों विधानमंडलों को विवश होकर संविधान में संशोधन करने के लिये एक समिति बनानी पङेगी। साइस और नेपोलियन इस समिति में घुस जायँ। फिर जैसी परिस्थिति उत्पन्न होगी, उसी के अनुसार काम किया जाएगा। नेपोलियन के भाग्यवश 500 के विधानमंडल का अध्यक्ष उसी का भाी लूसियन बोनापार्ट था।

योजना को तुरंत अमल में लाया गया। साइस, बरास और ड्यूकोस, तीनों ने डाइरेक्टरी की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया। जिन शेष दो सदस्यों ने त्याग-पत्र देने से मना किया, उन्हें नजरबंद कर दिया गया। 9 नवंबर, 1799 को सेंट क्लाउड नामक स्थान पर दोनों विधानमंडलों का अधिवेशन शुरू हुआ। नेपोलियन ने दोनों सदनों को संबोधित किया, परंतु उसके भाषण का कोई प्रभाव पैदा नहीं हुआ।

500 की परिषद् में तो उस पर तङातङ घूँसे पङे और धक्के देकर बाहर निकाल दिया गया, किन्तु लूसियन ने नाटकीय ढंग से स्थिति को संभाल लिया। उसके आदेश से सैनिकों ने सभागृह में प्रवेश करके संशोधन विरोधी सदस्यों को सभागृह से भगा दिया । बहुत से तो अपने आप भाग गए थे। सायंकाल को पुनः दोनों सदनों की बैठक हुई, जिसमें एक प्रस्ताव पास करके संचालक मंडल को समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर तीन कोंसल (कॉन्सल) नियुक्त किये – सेनापति नेपोलियन बोनापार्ट, आबे साइस और ड्यूकोस। कुछ समितियाँ भी गठित की गयी।

उनका मुख्य काम था कोंसलों को नया संविधान बनाने में सहयोग देना। उसके साथ ही सत्ता हस्तगत करने की योजना पूरी हो गयी। 11 नवंबर को नेपोलियन पेरिस लौट आया। वस्तुस्थिति यह थी, कि क्रांति की शुरूआत से लेकर अब तक पूरे दस साल से जनता शांति और अनुशासन के लिये तरस रही थी।

अशांतियों, गङबङियों और रक्तपात से लोग ऊब गये थे। लोगों में यह धारणा घर कर चुकी थी, कि कोई शक्तिशाली सेनानायक ही देश का उद्धार कर सकेगा। अतः जब नेपोलियन को प्रथम कोंसल नियुक्त किया गया तो जनता ने उसका विरोध नहीं किया।

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