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हल्दी के गुण और हल्दी कितने प्रकार की होती है? | Haldee ke gun aur haldee kitane prakaar kee hotee hai | Types of turmeric |

हल्दी एक बहुत प्रसिद्ध, प्रतिदिन व्यवहार में आने वाली तथा सामान्यतः भोजन में मसाले के रूप में प्रयुक्त होने वाली वस्तु है। घर में मसाले मिलें या न मिलें किन्तु हल्दी अमीर से लेकर गरीब की झोपङी में भी मिल जाएगी, क्योंकि इसके बिना दाल-सब्जी में स्वाद व रंगत नहीं आती है।

हल्दी औषधीय गुणों से युक्त होती है। हल्दी एंटीसैप्टिक का काम करती है, इसलिए इसका किसी भी रूप में इस्तेमाल शरीर को कीटाणुओं से बचा कर रखता है। घर परिवार के त्यौंहारों व पूजा व शादी-ब्याह में तो शुभ है ही हल्दी, स्वास्थ्य के लिए भी अतिलाभकारी है। जुकाम, खाँसी, नाक बद, गले में खराबी, टाँसिल के दर्द, कफ विकार, चर्म रोग, अतिसार, यकृत विकार, पीलिया, प्रदर, नेत्र रोगों आदि के निदान में हल्दी काफी सहायक होती है।

हल्दी

इसके सुनहरे रंग के कारण इसे कंचनी कहते हैं। इसे खाने वालों के चेहरे पर चमक होती है तथा वे ताकतवर होते हैं। हल्दी के नियमित सेवन करने से शरीर सांड की भाँति मजबूत बन जाता है। इसीलिए पंजाबी व गुजराती भाषा में इस हलधर कहते हैं। यह भोजन को स्वादिष्ट व आकर्षक ही नहीं वरन खाने वाले के शरीर को भी सुंदर बनाती है। इसके अलावा इसका औद्योगिक एवं औषधीय उपयोग भी है। उद्योग में ऊन, सिल्क व अन्य कपङों की रंगाई में इसका प्रयोग किया जाता है। दवाइयों, सौंदर्य क्रीम, हर्बल सौंदर्य प्रसाधन, एंटीसैप्टिक क्रीम, टूथ पेस्ट, पाउडर आदि में इसका प्रयोग बढने लगा है।

हल्दी में पौष्टिक तेल की भी मात्रा होती है जो दिखाई नहीं देती। हल्दी सूखी त्वचा को मुलायम और चिकनी बनाती है इसीलिए हल्दी त्वचा के लिये श्रेष्ठ मानी जाती है। त्वचा एवं सौंदर्य से संबंधित समस्याओं के लिये इसका विभिन्न रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें तेल की मात्रा होने पर भी इसका तेल चेहरे अथवा शरीर पर दिखाई नहीं देता। इसका तेल त्वचा में अंदर जाकर उसे प्राकृतिक रूप देता है। ब्रह्मचारियों के हल्दी से रंग यत्रोपवीत, वान-प्रस्थियों के हल्दी में रंगे वस्त्र उन्हें पवित्रता से भर देते हैं। इसका वैज्ञानिक महत्त्व भी है। हल्दी उन्हें छूत के रोगों व संक्रमण से बचाती है, तन बदन में ठंडक पहुँचाती है, रक्त में संचार लाती है, खून की सफाई करती है, जुकाम-नजले से बचाती है, दिमाग को ताजगी देती है तथा फेफङों को सुगंधित वायु से भरे रहती है।

हल्दी की बुवाई भुरभुरी भूमि में मध्य अप्रैल से मध्य जुलाई तक की जाती है। हल्दी को सुखाते समय इसके ऊपर की मिट्टी को धोकर साफ करके इसकी गाँठों को कपङे की पोटली में बाँध कर कढाव में उबलते पानी में डाल दिया जाता है, इसमें हल्दी की पत्तियाँ भी डाली जाती हैं, जिससे हल्दी का रंग गहरा हो जाता है। अधिक उबालने से वाष्पशील तेल की क्षति होती है, इसलिए इसे 15-20 मिनट उबलने के बाद गठरी में से निकालकर 15-20 दिन तेज धूप में सुखाया जाता है। फिर सख्त जगह पर या मशीनों से इसका छिलका उतारकर चमक लाने के लिये पॉलिश की जाती है।

हल्दी के प्रकार

हल्दी चार प्रकार की होती है-

  1. साधारण या सामान्य हल्दी
  2. आमा हल्दी
  3. वन हल्दी
  4. दारु हल्दी

साधारण हल्दी –

इसका वानस्पतिक नाम करक्युमा लौंगा है। यह पूर्णरूप से पीली होती है और अंदर से भी चमकीले पीले रंग की छोटी गाँठ होती है। इसकी गाँठ पर सिकुङन व झुर्रियाँ नहीं होती। बाजार में पंसारी के यहाँ यही हल्दी बिकती है।

रासायनिक संगठन

इसमें करक्यूमिन नामक एक पीला एवं रवेदार रंजक पदार्थ होता है जो मद्यसार में पूर्णतया घुल जाता है। हल्दी में 5-6 प्रतिशत एक उङनशील तेल होता है, उसमें कर्पूर जैसी गंध आती है तथा इस तेल में करक्यूमेन नामक पदार्थ होता है, जो रक्त में विद्यमान वसीय पदार्थ कोलस्ट्रॉल के घुलने में उपयोगी होता है। इसके अलावा हल्दी में 69.5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 6.3 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा तथा 3.5 प्रतिशत खनिज पदार्थ तथा विटामिन ए होते हैं।

गुण

साधारण हल्दी उष्ण, कटु, तिक्त, सुगंधित एवं उत्तेजक होती है। साधारणतः हल्दी को पीसकर उसका नित्य भोजन में मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। किन्तु इसके चिकित्सीय उपयोग हैं। अनेक औषधियों, लेपों, अवलेहों, चटनियों, अर्क आदि में भी इसका उपयोग होता है।

आमा हल्दी

इसका वानस्पतिक नाम क्यूरकुमा अमाडा है। इसी गाँठ व पत्तों में कच्चे आम की सी सुगंध आती है। इसीलिए इसे आमा हल्दी या आम्रगंदी हरिद्रा कहा जाता है। इसकी गाँठें बङी-बङी अदरक के समान, ऊपर से पीले रंग की व अंदर से लोल होती है। इसकी गाँठों पर झुर्रियाँ अधिक होती हैं।

रासायनिक संगठन

इसमें 1 से 1.5 प्रतिशत तक एक उङनशील तेल पाया जाता है। इसके अलावा इसमें राल, शुगर, गोंद, सार्च, एल्ब्युमिनॉयड्, कार्बनिक अम्ल तथा राख आदि पदार्थ पाए जाते हैं।

गुण

अम्बिया हल्दी शीतल, वातकारक, पित्तनाशक, मधुर, कङवी और आम की सुगंध वाली होती है। यह सभी प्रकार की खुजली को दूर करने वाली, पेट की वायुनाशक, भूख बढाने वाली, भोजन पचाने वाली, एवं मल बाँधने वाली होती है। मिठाइयों, चटनी में सुगंध लाने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।

वन हल्दी

इसका वानस्पतिक नाम क्यूरकुमा एरोमेटिका है। यह काले से पीले रंग की काफी बङे अंडे के समान गोल होती है। इसके अंदर का रंग गहरा नारंगी होता है। इसमें साधारण हल्दी से तेज और कर्पूर की सी गंध आती है। यह मैसूर व मलावा के जंगलों में पैदा होती है। इसका प्रयोग सामान्य हल्दी के स्थान पर या रंगाई के काम में लिया जाता है।

रासायनिक संगठन

इसमें 6 प्रतिशत एक हरे भूरे रंग का कर्पूर की सी गंध वाला उङनशील तेल होता है तथा इसमें करक्यूमिन नामक रंजक द्रव्य होता है। इसके अलावा इसमें स्टार्च एवं एल्ब्यूमिनॉयड पाए जाते हैं।

गुण

इसमें साधारण हल्दी के से गुण होते हैं। वन हल्दी का रक्त विकार एवं त्वचा के रोगों की औषधियों में उपयोग होता है।

दारु हल्दी

बर्बेरिस की 12-13 जाति की काँटेदार झाङियाँ होती हैं। बर्बेरिस अरिस्टेटा की 3-4 प्रकार की झाङियाँ मध्य व दक्षिण भारत के नीलगिरी पर्वत पर पाई जाती हैं। इस हल्दी का चिकित्सा में उपयोग किया जाता है। यह हल्दी पीले रंग की होती है, इसमें हल्की सी गंध आती है और इसका स्वाद कङवा होता है।

रासायनिक संगठन

इसमें 8 विभिन्न प्रकार के क्षारीय पदार्थ पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें कषाय द्रव्य, गोंद एवं स्टार्च पदार्थ पाए जाते हैं।

गुण

दारु हल्दी उष्ण होती है। इसके गुण अन्य हल्दी के समान होते हैं। दारु हल्दी के सत्व को रसौत कहा जाता है। इसका चिकित्सीय उपयोग सामान्य हल्दी की चिकित्सा के समान होता है।

हल्दी को उपयोग में लाने का तरीका

पंसारी के यहाँ से सामान्य हल्दी लाकर 2-4 दिन धूप लगाकर कूट कर पीस लें और मसाले के रूप में उपयोग करें।

साबुत हल्दी की गाँठों को 4-5 घंटे सादे पानी में भिगोकर रख दें। यह फूल कर काफी मोटी-मोटी हो जाएँगी। पानी में से निकाल कर कूट कर सुखा लें। सूखने पर बारीक पीसकर मसाले व औषधि के रूप में उपयोग करें। इस प्रकार हल्दी को तैयार करने से सब्जी में डालने पर सब्जी का रंग बहुत अच्छा व आकर्षक आता है तथा हल्दी को कूटते समय वह सरलता व आसानी से कूट जाती है। कीङे पङने का भी डर नहीं रहता है।

साबुत हल्दी की गाँठों को लगभग 12 घंटे तक छाछ में भिगोकर रखें, उसके बाद गाँठों को निकालकर कङी धूप में सुखा लें। फिर कङाही में एक चम्मच सरसों का तेल गरम करके गाँठों को हल्का भून लें, फिर इसे बारीक पीस कर प्रयोग करने से हल्दी में कीङा नहीं लगेगा तथा सब्जी-दाल में इसका रंग बहुत बढिया आएगा।

औषधीय रूप में लेने की मात्रा

कच्ची हल्दी का रस बङों को दस से पच्चीस ग्राम दे सकते हैं तथा बच्चों को पाँच ग्राम ही दें। सूखी हल्दी का चूर्ण बङों को पाँच से दस ग्राम तक पर्याप्त है, बच्चों को एक से आधा ग्राम तक दे सकते हैं। भुनी हुई हल्दी या भस्म का प्रयोग बङे रत्ती की मात्रा में ही करें।

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