इतिहासगुप्त कालप्राचीन भारत

गुप्त काल में विभिन्न कर कौन-कौन से थे?

गुप्त काल में विभिन्न कर निम्नलिखित थे – इन करों के बारे में परीक्षा में कई बार पूछा जाता है।

भाग – यह सभी कृषकों द्वारा देय उत्पादन में राजा का प्रथागत हिस्सा था जो साधारणतः उत्पादन का छठा भाग हुआ करता था।

भोग – ग्रामीणों द्वारा राजा को दी जाने वाले फल, फूल, लकङी आदि की नियमित आपूर्ति। भूमिकर भोग का उल्लेख ‘मनुस्मृति’ में भी हुआ है।

कर – ग्रामीणों द्वारा समय-समय पर देय एक कर । यह नियमित भूमि कर का भाग नहीं था बल्कि एकविशेष कर था जिसे ईमानदार शासकों द्वारा माफ किया जा सकता था।

बलि – मूलतः यह लोगों द्वारा राजा को स्वेच्छा से दिया जाता था, पर बाद में आवश्यक हो गया। गुप्त काल में यह अतिरिक्त दमनकारी कर था।

उदिआंग – यह पुलिस चौकियों के रख-रखाव के लिये लिया जाने वाला पुलिस कर था अथवा जल पर लगने वाला कर भी हो सकता है। यह भी लोगों पर एक अतिरिक्त कर था।

उपरिकर – इसकी प्रकृति के बारे में भी एकमत नहीं है, पर यह भी एक प्रकार का अतिरिक्त कर था। यह एक प्रकार का भूमि कर होता था। भूमि कर की अदायगी दोनों ही रूपों में ‘हिरण्य’ (नकद) या ‘मेय’ (अन्न) में किया जा सकता था, किन्तु छठी शती के बाद किसानों को भूमि कर की अदायगी अन्न के रूप में करने के लिए बाध्य होना पड़ा। भूमि का स्वामी कृषकों एवं उनकी स्त्रियों से बेकार या विष्टि लिया करता था। गुप्त अभिलेखों में भूमिकर को ‘उद्रंग’ या ‘भागकर’ कहा गया है। स्मृति ग्रंथों में इसका ‘राजा की वृत्ति’ के रूप में उल्लेख किया गया है।

हिरण्य – इसका शाब्दिक अर्थ स्वर्ण मुद्राओं में लिया जाने वाला कर है, लेकिन व्यवहार में संभवतः यह कुछ फसलों पर अनाज के रूप में राजा के हिस्से की तरह लिया जाता था।

वात-भूत कर – वात (वायु) तथा भूत (आत्मा) के रख-रखाव के लिये विभिन्न प्रकार के कर।

हलिवकर – हल रखने वाले प्रत्येक कृषक द्वारा दिया जाने वाला कर।

शुल्क – व्यापारियों द्वारा शहर अथवा बंदरगाह पर लाई गई सामग्रियों पर लगाया जाने वाला राजसी कर। इसकी तुलना सीमा-शुल्क तथा चुंगी से की जा सकती है।

क्लिप्त एवं उपक्लिप्त – क्रय एवं विक्रय कर।

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

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