इतिहासरूसी क्रांतियाँविश्व का इतिहास

लेनिन कौन था

लेनिन कौन था

ब्लादिमीर इलिच उल्यानोव जो लेनिन के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ, बोल्शेविक दल का प्रमुख संस्थापक था। लेनिन का जन्म 1870 ई. में सिम्बिर्स्क नामक स्थान पर एक साधारण राजकर्मचारी के घर में हुआ था। लेनिन के बङे भाई को जार अलेक्जेण्डर द्वितीय की हत्या का प्रयत्न करने के आरोप में मृत्यु दंड दिया गया था।

इस प्रकार बचपन से ही उस पर क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव था। कजान विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हुये वह मार्क्सवादी विचारों का कट्टर समर्थक बन गया था। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उसे विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।

1892 – 93 ई. में सेण्ट पीटर्सबर्ग में वकालत आरंभ की तथा साथ ही मार्क्सवादी विचारों का गहन अध्ययन और उनका प्रचार भी करता रहा। इस काल में वह प्लेखानोव के विचारों से भी अधिक प्रभावित हुआ। 1895 ई. में उसे क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण गिरफ्तार कर लिया गया तथा उसे साइबेरिया में निर्वासित कर दिया गया। साइबेरिया से मुक्त होने के बाद उसने जेनेवा से इस्करा और जार्या नामक समाचार पत्रों के सम्पादन में सक्रिय सहयोग दिया। इन समाचार पत्रों के माध्यम से रूस के मार्क्सवादी विचारों का प्रचार होने लगा।

लेनिन कौन था

1917 की रूसी क्रांति के कारण

1903 ई. में जनतंत्रीय समाजवादी दल का दो भागों में विभाजन हो गया। एक दल मेन्शेविकों का था और दूसरा बोल्शेविकों का। बोल्शेविक दल का प्रधान नेता लेनिन था। लेनिन की यह दृढ मान्यता थी कि रूस में साम्यवाद की स्थापना क्रांतिकारी उपायों से ही हो सकती है।

लेनिन चाहता था कि दल चाहे छोटा हो, किन्तु वह सुसंगठित हो और उसमें केवल ऐसे लोग ही सम्मिलित किए जाएँ जो सर्वहारा वर्ग की हिंसात्मक क्रांति में विश्वास करते हों। मेन्शेविकों की मान्यता थी कि दल बङा होना चाहिए और उसमें क्रांतिकारियों के अलावा क्रांति से सहानुभूति रखने वाले भी सम्मिलित किए जाएँ।

1905 ई. में मेन्शेविकों का प्रभाव अधिक था और उनके पास प्रचार के साधन भी अधिक थे, फिर भी लेनिन हतोत्साहित नहीं हुआ। 1905 ई. की क्रांति में मेन्शेविकों और बोल्शेविकों ने पारस्परिक सहयोग की भावना से कार्य किया, किन्तु उनका सहयोग स्थायी नहीं रह सका।

मार्च, 1917 ई. की क्रांति के समय लेनिन देश से बाहर था। क्रांति के आरंभ में मेन्शेविकों को अपना प्रभाव एवं शक्ति बढाने का अच्छा अवसर मिल गया। बोल्शेविकों को क्रांति से कोई लाभ नहीं हुआ। फिर भी बोल्शेविकों ने प्रावदा नामक समाचार-पत्र के माध्यम से अपने दल की नीतियों और कार्यक्रम का प्रचार आरंभ कर दिया।

उसने अस्थायी सरकार को पूँजीपतियों और भू-स्वामियों की सरकार कहना आरंभ किया तथा सोवियत के सैनिकों और मजदूरों का गणतंत्र स्थापित करने की सलाह दी। 3 अप्रैल, 1917 को जर्मनी के सहयोग से लेनिन पेट्रोग्राड पहुँचा और अपने सहयोगियों से तत्कालीन स्थिति पर विचार-विमर्श किया। उसका विचार था कि क्रांति का प्रथम चरण, जिसमें शक्ति बुर्जुआ वर्ग के हाथ में पहुँच चुकी है, समाप्त हो रहा है।

अतः जब शक्ति मजदूरों एवं कृषकों के अथवा सर्वहारा वर्ग के हाथों में पहुँचाने की तैयारी करनी चाहिए। वस्तुतः लेनिन मध्यमवर्गीय क्रांति को समाजवादी क्रांति में परिणित करना चाहता था, लेकिन उस समय सभी रूसियों को लेनिन के विचार बङे उग्र और अव्यवहारिक लग रहे थे। अप्रैल, 1917 ई. के अंत में अखिल रूसी बोल्शेविक सम्मेलन में भी लेनिन ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

सम्मेलन में अस्थायी सरकार की बुर्जुआ वर्ग और भू-स्वामियों की प्रति-क्रांति के साथ सहयोग करने की नीति की आलोचना की गई तथा शहरों व गाँवों के सर्वहारा वर्ग मजदूरों और सैनिकों के सोवियत के हाथ में सत्ता हस्तान्तरित कराने की तैयारी करने का आह्वान किया गया। इस सम्मेलन ने सोवियत को संपूर्ण शक्ति का केन्द्र बनाने का निर्णय करके बोल्शेविक क्रांति की योजना को एक निश्चित वैधानिक स्वरूप प्रदान किया गया।

मई, 1917 ई. में ट्राट्स्की, जो इस समय अमेरिका में था, पेट्रोग्राड पहुँचा और थोङे ही समय में वह रूस का प्रभावशाली नेता बन गया। बोल्शेविकों के साथ सहयोग करने के विषय में लेनिन से बातचीत की। जून में अखिल रूसी सोवियत सम्मेलन में सभी समाजवादी दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में भी बोल्शेविक दल ने राज्य की संपूर्ण शक्ति मजदूरों, सैनिकों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सोवियत को हस्तान्तरित करने का प्रस्ताव रखा, किन्तु क्रांतिकारी समाजवादी दल तथा मेन्शेविकों के विरोध के कारण वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।

जून, 1917 के बाद बोल्शेविकों का प्रभाव बढने लगा। 3 जुलाई के विद्रोह के बाद अस्थायी सरकार ने बोल्शेविक नेताओं को गिरफ्तार करना आरंभ कर दिया। लेनिन को रूस छोङकर फिनलैण्ड जाना पङा। इसी समय ट्राट्स्की ने बोल्शेविक दल से मिलने का निश्चय किया, जिससे बोल्शेविकों की शक्ति और भी बढ गयी।

इधर गेलीशिया में रूसी सेना की आक्रामक कार्यवाही की असफलता के समाचार मिले, जिससे जन साधारण का विरोध बढ गया। बोल्शेविकों ने युद्ध विरोधी प्रचार करके अस्थायी सरकार को बदनाम किया तथा युद्ध भूमि से लौटे निराश एवं क्रुद्ध सैनिकों की सहानुभूति अर्जित करने का प्रयास किया। इधर केरेन्स्की की सरकार भी आंतरिक स्थिति में सुधार नहीं कर सकी।

देश में खाद्यान्नों एंव औद्योगिक उत्पादन में कमी होती जा रही थी, किसानों के उपद्रव बढते जा रहे थे तथा युद्ध क्षेत्र में रूसी सेनाएँ निरंतर पराजित होती जा रही थी। ऐसी स्थिति में कार्नीलॉव ने सेना की सहायता से सत्ता हथियाने का प्रयास किया, किन्तु केरेन्स्की ने बोल्शेविकों की सहायता से सत्ता हथियाने का प्रयास किया, किन्तु केरेन्स्की ने बोल्शेविकों की सहायता से कार्नीलॉव के प्रयत्न को विफल कर दिया।

अब बोल्शेविकों को अपनी शक्ति बढाने का अच्छा अवसर मिल गया। सितंबर में ट्राट्स्की पेट्रोग्राड सोवियत का प्रधान बना और मास्को की सोवियत में भी बोल्शेविक कार्यकारिणी को गुप्त पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि अब सशस्त्र-क्रांति द्वारा सत्ता-हस्तगत करने का समय आ गया है।

लेनिन कौन था

बोल्शेविक क्रांति लेनिन के आदेशानुसार बोल्शेविक कार्यकारिणी ने 23 अक्टूबर को सशस्त्र क्रांति द्वारा सत्ता हथियाने का निर्णय ले लिया। बोल्शेविकों के प्रचार के फलस्वरूप सेना ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया तथा किसानों ने जमीदारों की भूमि पर अधिकार करना आरंभ कर दिया।

मजदूरों ने भी अपने काम के घंटों में कमी करना तथा वेतन बढाने की माँग को लेकर हङताल कर दी। इससे अराजकता फैल गई। 5 नवंबर को केरेन्स्की ने सभी बोल्शेविकों को कैद करनी की आज्ञा दे दी, किन्तु इस समय तक बोल्शेविक नेता क्रांति की तैयीरी पूरी कर चुके थे।

6 नवंबर, की रात्रि को बोल्शेविक स्वयंसेवकों ने, जिन्हें लाल रक्षक कहा जाता था तथा नियमित सैनिक टुकङियों ने पेट्रोग्राड के समस्त सरकारी भवनों, टेलीफोन केन्द्र, रेल्वे स्टेशन आदि प्रमुख स्थानों पर अधिकार कर लिया। 7 नवंबर को प्रातः केरेन्स्की देश छोङकर भाग गया। अस्थायी सरकार के सभी मंत्रियों को बंदी बना लिया गया। इस प्रकार बिना रक्त की बूँद गिराए रूस की राजधानी पर बोल्शेविक दल का अधिकार हो गया।

मार्च, 1917 ई. की क्रांति ने जारशाही के निरंकुश शासन का अंत कर मध्य-वर्ग के शासन की स्थापना की। 8 नवंबर, 1917 को नई सरकार का प्रथम मंत्रिमंडल गठित किया गया। लेनिन को मंत्रि-परिषद का अध्यक्ष बनाया गया और ट्राट्स्की विदेश मंत्री बना। नई सरकार ने सर्वप्रथम संविधान सभा के चुनाव कराने की घोषणा की। 15 नवंबर, को देश की संविधान सभा के लिये चुनाव हुए, किन्तु बोल्शेविक दल को बहुमत प्राप्त नहीं हो सका।

अतः लेनिन ने इस सभा को प्रतिक्रियावादी सभा कहकर इसे भंग कर दिया तथा देश में पूर्णतया सर्वहारा वर्ग का अधिनायक तंत्र स्थापित कर दिया।

रूस का युद्ध से अलग होना

सत्ता ग्रहण करने के कुछ ही दिन बाद बोल्शेविक सरकार ने सभी राज्यों से युद्ध बंद करने की अपील की, किन्तु मित्र राष्ट्रों ने इस प्रस्ताव की ओर कोई ध्यान नहीं दिया, अतः रूस ने केन्द्रीय राज्यों से पृथक संधि करने का निश्चय किया, क्योंकि देश में आंतरिक व्यवस्था स्थापित करने तथा विकास की योजनाएँ कार्यान्वित करने के लिये शांति आवश्यक थी।

दिसंबर, 1917 में युद्ध विराम हुआ और कुछ ही समय बाद ब्रेस्टलिटोवस्क में संधि-वार्ता आरंभ हुई, जिसमें जर्मनी, आस्ट्रिया, बल्गेरिया, तुर्की और रूस के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। रूस किसी भी शर्त पर शांति चाहता था, अतः उसे जर्मनी की सभी शर्तें स्वीकार करनी पङी।3 मार्च, 1918 को ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि हो गई। इस संधि के अनुसार

  • रूस ने एस्टोनिया, लिथोनिया, लिटेवाया, फिनलैण्ड और आलैण्ड से अपने अधिकार त्याग दिए तथा केन्द्रीय शक्तियों को वहां जनता की इच्छानुसार नवीन व्यवस्था स्थापित करने का अधिकार दिया गया।
  • रूस ने अर्दहान, कार्स तथा बाटुम के प्रदेश तुर्की को दे दिए।
  • पोलैण्ड, लिथुआनिया और कोरलैण्ड से रूस ने अपने अधिकार त्याग दिए। रूस ने यूक्रेन से भी अपनी सेनाएँ हटा ली। यूक्रेन सरकार एवं केन्द्रीय शक्तियों के बीच की गई संधियों को मान्यता दे दी।
  • रूस ने यह वचन दिया कि खाली किए क्षेत्रों में बोल्शेविक विचारधारा का प्रचार नहीं करेगा।
  • रूस ने जर्मनी को तीन करोङ पौण्ड युद्ध का हर्जाना देने का वचन दिया।

इस संधि के अनसुर रूस को विशाल क्षेत्र तथा लगभग साढे छः करोङ जनसंख्या से वंचित होना पङा। इस प्रकार यह संधि रूस के लिये बहुत अपमानजनक थी, किन्तु इस संधि के सम्पन्न होने पर रूस युद्ध से अलग हो गया, जिससे बोल्शेविक सरकार को देश की आंतरिक समस्याओं की ओर अधिक ध्यान देने का अवसर मिल गया। बोल्शेविक सरकार ने निम्नलिखित कार्यक्रम अपनाए –

  • राज्य में बङे पैमाने पर राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन करना।
  • सर्वहारा वर्ग का अधिनायक तंत्र उस समय तक बनाए रखा जाय जब तक कि देश की संपूर्ण जनता साम्यवादी शासन में भाग लेने के योग्य न हो जाय।
  • सर्वहारा वर्ग की क्रांति का विश्व में प्रचार करना।
  • गृह युद्ध और विदेशी हस्तक्षेप

बोल्शेविक दल ने जिस प्रकार सत्ता ग्रहण की थी और जो नीति अपनाई थी, उससे रूस की जनता के कुछ वर्ग असंतुष्ट थे। बोल्शेविकों के विरोधियों में तीन प्रकार के लोग थे। प्रथम तो वे लोग जिनकी भूमि छीन ली गयी थी, जारशाही के पुराने अधिकारी और सामंतवर्ग जो क्रांति को विफल करके जार शासन को पुनः स्थापित करना चाहते थे।

दूसरे वे लोग जो फ्रांस और अमेरिका के नमूने का लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे और तीसरे मेन्शेविक दल के लोग जो समाज के आर्थिक संगठन को क्रांतिकारी उपायों द्वारा बदलने के विरोधी थे। इन सभी के विरुद्ध बोल्शेविक सरकार को तीन वर्ष (1917-1920) तक घोर संघर्ष करना पङा। इन विरोधियों को प्रारंभ में जर्मनी से और उसके बाद मित्र राष्ट्रों से सहायता प्राप्त हुई, जिससे बोल्शेविक सरकार को घोर संकट का सामना करना पङा।

मित्र राष्ट्र रूस में पुनः मध्यमवर्गीय सरकार स्थापित करना चाहते थे ताकि जर्मनी के विरुद्ध पूर्वी मोर्चा पुनः खोला जा सके। बोल्शेविक सरकार ने जार के समय लिये गए समस्त ऋणों को अस्वीकार कर दिया था, जिससे मित्र राज्यों में बोल्शेविक सरकार के विरुद्ध रोष उत्पन्न हो गया और उन्होंने रूस पर सैनिक आक्रमण कर दिया।

हजारों चैक और स्लोवाक, जो पहले आस्ट्रिया की सेना को छोङकर रूस से जा मिले थे, अब बोल्शेविकों के विरुद्ध मित्र राष्ट्रों का साथ देने लगे। मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने बोल्शेविक विरोधी दलों के सहयोग से प्रतिक्रियावादी अथवा श्वेत सरकारें स्थापित की। प्रारंभ में ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बोल्शेविक सरकार आंतरिक विरोध और बाह्य शत्रुओं की संयुक्त शक्ति का सामना नहीं कर सकेगी, किन्तु लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक निराश नहीं हुए।

बोल्शेविकों की लाल सेना तथा प्रतिक्रांतिकारियों की श्वेत सेना के बीच भयंसर संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के काल में बोल्शेविक सरकार ने जार और उसके परिवार को पेट्रोग्राड से हटाकर यूराल प्रदेश के इक्टरिनबर्ग नामक स्थान पर भेज दिया, किन्तु जब श्वेत सेनाएँ उस क्षेत्र में आगे बढने लगी तब 16 जुलाई, 1918 को बोल्शेविकों ने जार और जारीना को गोली से उङा दिया। बोल्शेविकों ने चेका नामक गुप्त क्रांतिकारी न्यायालय की स्थापना की, जिसे किसी भी व्यक्ति को कैद कर मृत्यु दंड देने का अधिकार था।

चेका ने हजारों प्रतिक्रांतिकारियों को पकङकर गोली से उङा दिया और एक प्रकार से आतंक का राज्य स्थापित कर दिया। ट्राट्स्की ने शक्तिशाली लाल सेना का गठन किया, जिसके सैनिक पूर्ण रूप से प्रशिक्षित थे। लाल सेना के कारण बोल्शेविक सरकार की शक्ति मजबूत हो गई। फलस्वरूप मित्र राष्ट्रों ने धीरे-धीरे अपने सैनिक दल वापस बुला लिए। लाल सेना ने प्रतिक्रिक्रांतिकारियों को पूर्ण रूप से कुचल दिया। इस प्रकार विदेशी राज्यों के सैनिक हस्तक्षेप से उत्पन्न संकट समाप्त हो गया।

प्रतिक्रांतिकारियों और विदेशी सेना की असफलता के मुख्य रूप से दो कारण थे। प्रथम तो विदेशी सेनाओं के हस्तक्षेप से रूस के देशभक्तों की राष्ट्रीय भावना जागृत हो उठी और उन्होंने बोल्शेविकों का साथ दिया। दूसरा कारण यह था कि बोल्शेविक सरकार ने जमीदारों को बिना मुआवजा दिए भूमि छीनकर किसानों में वितरित की थी, अतः उन किसानों ने बोल्शेविक सरकार का पूर्ण समर्थन किया। इस संघर्ष काल में उद्योगों का राष्ट्रीयकरम किया जा चुका था।

अतः गृह युद्ध के फलस्वरूप रूस की आर्थिक स्थिति अत्यन्त ही दयनीय हो गई और मजदूरों की हालत बिगङ गई, किन्तु लेनिन के कुशल नेतृत्व जमें रूस में पुनः आर्थिक सुदृढता आने लगी। रूस में बोल्शेविक शासन सत्ता के पैर मजबूती से जम गए। लेनिन ने रूस में साम्यवाद को व्यावहारिक रूप देने का प्रयत्न किया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : लेनिन

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