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कुषाण कालीन सिक्कों का इतिहास

उत्तर-पश्चिम भारत में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन यवन राजाओं ने करवाया तथापि इन्हें नियमित एवं पूर्णरूपेण प्रचलित करने का श्रेय कुषाण राजाओं को दिया जा सकता है। कुषाण-सत्ता में रोम तथा अन्य पाश्चात्य देशों के साथ भारत के व्यापारिक संपर्क बढ जाने से निश्चित माप के सिक्कों की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतः कुषाण राजाओं ने विभिन्न आकार -प्रकार के स्वर्ण, ताम्र एवं रजत सिक्कों का प्रचलन करवाया।

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कुषाणकालीन राजाओं के समय में सिक्कों का इतिहास-

कुजुल कडफिसेस के सिक्के-

कुषाणवंश के संस्थापक सम्राट कुजुल कडफिसेस के केवल ताँबे के सिक्के ही मिलते हैं। मार्शल को तक्षशिला की खुदाई से उसके बहुसंख्यक सिक्के मिलते हैं। ये दो प्रकार के हैं – 1.) काबुल के यवन नरेश हर्मियस तथा कुजुल दोनों का उल्लेख मिलता है। इसका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग – बेसिलियस बेसिलिन हरमेआय।

पृष्ठ भाग – खरोष्ठी में कुजुल कसस कुषाण युवगस।

कुजुल तथा हर्मियस के साथ-2 उल्लेख से ऐसा निष्कर्ष निकाला गया है, कि कुजुल पहले हर्मियस की अधीनता स्वीकार करता था। बाद में उसने अपनी स्वाधीनता घोषित कर दी।

कुजुल ने स्वतंत्र शासक बनने के बाद जो सिक्के प्रचलित करवाये उनका विवरण निम्नलिखित है-

मुख भाग- यूनानी भाषा में उपाधि सहित नाम कोसानो कोजोलौ कडफिजाय उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग – खरोष्ठी लिपि में कुजुल कसस कुषण यवुगसध्रमिथइदस अंकित मिलता है।

ध्रमथिदस अर्थात् धर्म में स्थित से ऐसा निष्कर्ष निकाला जाता है, कि कुजुल कडफिसेस ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। कुजुल कडफिसेस के सिक्कों का वजन 30 ग्रेन के लगभग था।

विम कडफिसेस के सिक्के-

सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन इसी शासक ने करवाया था। यद्यपि उसके ताम्र तथा रजत सिक्के भी मिले हैं। तथापि स्वर्ण सिक्कों की संख्या अधिक है। स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग- टोप धारण किये हुए राजा की आकृति है। वह अपने दायें हाथ में वज्र ग्रहण किये हुए है। तथा उसके कंधे से अग्नि की लपटें निकलरही हैं। यूनानी भाषा में मुद्रालेख सिलियस बेसिलियन ओमो कडफिसेस उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग – त्रिशूलधारी शिव की आकृति है, जो नंदी के सामने है। साथ में खरोष्ठी मुद्रालेख महरजस रजदिरजस सर्वलोग इश्वरस महिश्वरस विम कडफिशस त्रतरस ( महाराज राजाधिराज सर्वलोकेश्वर विम कडफिसेस उत्कीर्ण है।

इन स्वर्ण सिक्कों का वजन 124 ग्रेन है। विम कडफिसेस का 20 ग्रेन वजन का एक स्वर्ण सिक्का मिला है। इसके मुख भाग पर चौखट में राजा का सिर है, तथा यूनानी लेख उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर महाराज राजाधिराज विम कडफिसेस मुद्रालेख अंकित है। त्रिशूल की आकृति भी बनी हुई है।

ताम्र सिक्के-

विम कडफिसेस के जो ताम्र सिक्के मिलते हैं, उनका वजन 270-65 ग्रेन है। इनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग- राजा की खङी मूर्ति बनी है। वह वेदी पर आहुति दे रहा है। उसका बाईं ओर त्रिशूल की आकृति तथा मुद्रा लेख बेसिलियस बेसिलियन सोटर मेगास वोमो कैडफिसेस अंकित है।

पृष्ठ भाग – शिव की आकृति है। वह दायें हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए है तथा बायाँ हाथ नंदी के ऊपर टिका हुआ है। खरोष्ठी में मुद्रालेख जैसा ही है।

विम कडफिसेस का अब तक केवल एक रजत का सिक्का प्राप्त हुआ है। और यह संप्रति ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित है। इस पर राजा की खङी मूर्ति है। इसका विवरण विल्सन ने दिया है। वह पट्टीयुक्त टोप, कुरता, कोट, पायजामा धारण किये हुए है। सामने वेदी तथा त्रिशूल है। उसके दायें हाथ के पीठे गदा है तथा बायें हाथ में कोई बर्तन लिये हुए है। मार्शल को कुछ ऐसे रजत सिक्के मिले हैं, जिनसे प्रटलन का श्रेय विम को ही दिया जाता है।

विम के सिक्कों पर उत्कार्ण चिन्ह पूर्णतया भारतीय है। शिव, नंदी, त्रिशूल की आकृतियाँ तथा महेश्वर की उपाधि से उसका नैष्ठिक शैव होना सूचित होता है।

कनिष्क के सिक्के-

कनिष्क के बहुसंख्यक स्वर्ण एवं ताम्र सिक्के पश्चिमोत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल तथा उङीसा के विभिन्न स्थानों से प्राप्त किये गये हैं। स्वर्ण सिक्के तौल में रोमन सिक्कों ( 124ग्रेन ) के बराबर हैं। स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग- खङी मुद्रा में राजा की आकृति है। वह लंबी कोट, पायजामा, नुकीली टोपी पहने हुये हैं। उसके बायें हाथ में माला है, तथा दायें हाथ से हवन कुंड में आहुति दे रहा है। ईरानी उपाधि के साथ यूनानी लिपि में शाओ नानो शाओ कनिष्की कोशानो मुद्रालेख अंकित है।

शाओ नानो शाओ से तात्पर्य शाहनशाह से है। समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तंभ – लेख से पता चलता है, कि कुषाण शासक देवपुत्रषाहिषाहानुषाहि की उपाधि ग्रहण करते थे।

पृष्ठ भाग – विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं। ये यूनानी, भारतीय तथा ईरानी देव समूह से लिये गये हैं। प्रत्येक सिक्के पर एक ही देवता तथा नीचे उसका नाम उत्कीर्ण है। नाम यूनानी भाषा में है, जैसे – मिइरो (सूर्य), मेओ (चंद्र), आरलेग्नो, नाना, आरदोक्षो (देवी) आदि।

कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर चतुर्भुजी शिव की आकृति तथा यूनानी भाषा में आइसो (शिव) अंकित है। हाथ में त्रिशूल, बकरा, डमरू तथा अंकुश है। किसी- किसी सिक्के पर प्रभामंडलयुक्त खङी मुद्रा में बुद्ध प्रतिमा तथा उसके नीचे यूनानी लिपि में वोडो (बुद्ध) खुदा हुआ है।

ताम्र सिक्के – ये गोलाकार हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग- कनिष्क की आकृति तथा मुद्रालेख बेसिलियस बेसेलियन उत्कीर्ण है। यह यूनानी उपाधि है, जिससे तात्पर्य राजाओं का राजा से है।

पृष्ठ भाग – यूनानी, ईरानी अथवा भारतीय देवी-देवता की आकृति तथा यूनानी भाषा में उसका नाम उत्कीर्ण है।

कुछ ऐसे ताम्र मिले हैं,जिनके ऊपर बैठी हुई मुद्रा में राजा की आकृति बनी हुई है। इन पर राजा का नाम नष्ट हो गया है। इनमें से चार का वजन 68 ग्रेन है।

हुविष्क के सिक्के-

हुविष्क ने भी बहुत से स्वर्ण एवं ताम्र सिक्कों का प्रचलन करवाया था। स्वर्ण सिक्कों की विश्षताएं निम्न प्रकार हैं-

मुख भाग- राजा के आधे शरीर की आकृति बनी हुई है। वह गोलाकार टोप, अलंकृत कोट पहने हुए है। उसके दायें हाथ में दंड तथा बायें हाथ में अंकुश है। मुद्रालेख में शाओ नानो शाओ ओइशकी कोशानो उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग- विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियों तथा यूनानी लिपि में उनके नाम मिलते हैं।

ताम्र सिक्के – ये गोल आकार के हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग- प्रभामंडल से युक्त राजा अंकुश, भाला के साथ हाथी पर सवार है। कुछ सिक्कों पर पलंग पर झुके हुये अथवा गद्दे पर वज्रासन में बैठे हुए राजा की आकृति है। उसके बायें हाथ में दंड है और वह अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाए हुए है।

पृष्ठ भाग – विभिन्न देवी – देवताओं की आकृतियाँ तथा यूनानी भाषा में उनके नाम खुदे हुए हैं।

वासुदेव के सिक्के

वासुदेव के स्वर्ण तथा ताम्र सिक्के प्राप्त हुए हैं। सभी गोलाकार हैं तथा तौल में रोमन सिक्कों के बराबर हैं। सिक्कों पर शिव तथा उनके प्रतीकं का अंकन प्रमुखता से किया गया है। विवरण निम्न प्रकार है-

मुख भाग – प्रभामंडल युक्त राजा की खङी आकृति है। वह लंबी टोप तथा पायजामा पहने हुए हैं। उसके बायें हाथ में त्रिशूल है तथा दायें हाथ से अग्निकुण्ड में आहुति दे रहा है। मुद्रालेख – शाओ नानो शाओ बोजैङो वासुदेव कोशानो उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग – त्रिशूल तथा पाश लिये हुये दोभुजी शिव की आकृति है। शिव के पीछे नंदी तथा यूनानी भाषा ओएशो (शिव) उत्कीर्ण है। कुछ ताम्र सिक्कों के पृष्ठ भाग पर सामने की ओर देवी (उमा) सिंहासन पर बैठी हुई है। उसके दायें हाथ में फीता तथा बायें हाथ में समृद्धिश्रृङ्ग है।

कुछ ताम्र सिक्कों के मुख भाग पर ब्राह्मी लिपि में वासु उत्कीर्ण है तथा पृष्ठ भाग पर वासुदेव का मोनोग्राम मिलता है। अल्तेकर ने वासुदेव के एक नये प्रकार के सिक्के का उल्लेख किया है, जिसके पृष्ठ भाग पर शिव का हाथी के साथ चित्रण किया गया है। यह गजासुर का वध करते हुए शिव का चित्रण प्रतीत होता है।

इस प्रकार सभी कुषाण राजाओं के सिक्कों के अग्रभाग पर ईरानी वेष-भूषा में शासक की आकृति तथा उपाधि के साथ उसका नाम मिलता है। मुद्रालेख सदा यूनानी भाषा में है।

परवर्ती कुषाण राजाओं के सिक्के-

परवर्ती कुषाण राजाओं के सिक्के दो प्रकार के थे –

  1. शिव तथा नंदी प्रकार ।
  2. सिंहासनासीन देवी प्रकार।

सिक्कों के मुख भाग पर कवच तथा ऊँची टोपी धारण किये हुए राजा की आकृति है। वह दायें हाथ से आहुति दे रहा है तथा उसके बायें हाथ में लंबा त्रिशूल है। मुद्रालेख यूनानी तथा ब्राह्मी दोनों में है। पृष्ठ भाग पर शिव, नंदी तथा देवी की आकृतियां मिलती हैं। कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर सिंहवाहिनी देवी का चित्रण है। वह पाश दंड धारण किये हुए है।

कुषाण सिक्कों की देवी को गुप्तकाल में लक्ष्मी के रूप में ग्रहण कर लिया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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