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मौर्य शासक अशोक के धम्म-प्रचार के उपाय

बौद्ध धर्म ग्रहण करने के एक वर्ष बाद तक अशोक साधारण उपासक रहा और इस बीच उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये कोई उद्योग नहीं किया। इसके बाद वह संघ की शरण में आया और एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक संघ के साथ रहा।

बौद्ध धर्म से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य।

इसी बीच उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये इतना अधिक कार्य कि या कि उसे स्वयं यह देखकर आश्चर्य होने लगा कि बौद्ध धर्म की जितनी अधिक उन्नति इस काल में हुई उतनी इसके पूर्व कभी नहीं हुई। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपने विशाल साम्राज्य से सभी साधनों को नियोजित कर दिया। उसके द्वारा किये गये कुछ उपाय पर्याप्त रूप से मौलिक थे।

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अशोक की धार्मिक नीति ।

अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ अपनाये गये साधनों के बारे में निम्नलिखित बताया गया है-

  • धर्म – यात्राओं का प्रारंभ- अशोक ने बौद्धधर्म का प्रचार धर्म – यात्राओं से प्रारंभ किया। वह अपने अभिषेक के 10 वें वर्ष बोधगया की यात्रा पर गया। यह पहली धर्म यात्रा थी। इससे पहले अशोक अन्य राजाओं की भांति विहार- यात्राओं पर जाया करता था। उसने विहार यात्राओं में मृगया तथा अन्य प्रकार के आमोद-प्रमोद हुआ करते थे। परंतु कलिंग युद्ध के बाद उसने विहार यात्रायें बंद कर दी तथा धर्म यात्रायें प्रारंभ की। इन यात्राओं में वह ब्राह्मणों और श्रमणों का दर्शन, दान, वृद्धों का दर्शन, धन से उनके पोषण की व्यवस्था, जनपद के लोगों का दर्शन, धर्म का आदेश और धर्म के संबंध में उनसे प्रश्नादि किया करता था। अपने अभिषेक के 14 वें वर्ष में नेपाल की तराई में स्थित निग्लीवा (निगाली सागर) में जाकर उसने कनकमुनि बुद्ध के स्तूप के आकार को द्विगुणित करवाया। 20 वें वर्ष में वह बुद्ध के जन्मस्थल लुम्बिनी ग्राम गया, वहां शिलास्तंभ स्थापित करवाया तथा पूजा की। चूँकि वहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था, अतः वहाँ का कर घटाकर 1/8 कर दिया। अशोक के इन कार्यों का जनता के ऊपर बङा प्रभाव पङा। और वह बौद्ध धर्म की ओर आकृष्ट हुई।

कलिंग कहां स्थित है? तथा कलिंग युद्ध का वर्णन।

  • राजकीय पदाधिकारियों की नियुक्ति- अशोक का साम्राज्य बहुत विशाल था। अतः यह एक व्यक्ति के लिये संभव नहीं था, कि वह सभी स्थानों में जाकर धर्म का प्रचार कर सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अशोक ने अपने साम्राज्य के उच्च पदाधिकारियों को भी धर्म प्रचार के काम में लगा दिया। संतभ-लेख 3 एवं स 7 से पता चलता है, कि उसने व्युष्ट, रज्जुक, युक्त नामक पदाधिकारियों को जनता के बीच जाकर धर्म के प्रचार एवं उपदेश करने का आदेश दिया। ये अधिकारी प्रति 5वें वर्ष अपने-2 क्षेत्रों में दौरे पर जाया करते थे तथा सामान्य प्रशासकीय कार्यों के साथ जनता में धर्म का प्रचार किया करते थे।
  • धर्मश्रावन तथा धर्मोपदेश की व्यवस्था- धर्म-प्रचार के उद्देश्य से अशोक ने अपने साम्राज्य में धर्मश्रावन (धम्म सावन) तथा धर्मोपदेश (धम्मानुसथि) की व्यवस्था करवाई। उसके साम्राज्य के विभिन्न पदाधिकारी जगह-2 घूमकर धर्म के विषय में लोगों को शिक्षा देते तथा राजा की ओर से जो धर्म-संबंधी घोषणायें की जाती थी, उनसे जनता को अवगत कराते थे।
  • धर्म-महामात्रों की नियुक्ति- अपने अभिषेक के13वें वर्ष बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये अशोक ने पदाधिकारियों का एक नवीन वर्ग बनाया जिसे धर्म-महामात्र (धम्ममहामात्त) कहा गया। 5वें शिलालेख में अशोक कहता है कि, प्राचीन काल में धर्ममहामात्र कभी नियुक्त नहीं हुए थे। मैंने अपने अभिषेक के 13 वें वर्ष धर्ममहापात्र नियुक्त किये हैं। इनका एक कार्य विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच के द्वेष भाव को समाप्त कर धर्म की एकता पर बल देना था। उनका प्रमुख कर्तव्य धर्म की रक्षा, धर्म की वृद्धि (धम्माधिथानाये, धम्मवढिया) करना बताया गया है। धर्ममहामात्र राजपरिवार के सदस्यों से धर्म के लिये धन दान में प्राप्त करते थे।तथा राजा द्वारा जो धन दान में दिया जाता था, उसकी समुचित व्यवस्था करके उसे धर्म प्रचार के काम में नियोजित करते थे। इन धर्म महामात्रों के प्रयास से धर्म की अधिकाधिक वृद्धि हुई।
  • दिव्य रूपों का प्रदर्शन- अशोक पारलौकिक जीवन में आस्था रखता था। उसने धर्म को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से जनता के बीच उन स्वर्गीय सुखों का प्रदर्शन करवाया जो मनुष्य को देवत्व प्राप्त करने पर स्वर्ग लोक में मिलते हैं। इनमें विमान, हस्ति, अग्निस्कंध आदि दिव्य रूपों का प्रदर्शन किया गया।
  • लोकोपकारिता के कार्य- अपने धर्म को लोकप्रिय बनाने के लिये अशोक ने मानव तथा पशु जाति के कल्याणार्थ अनेक कार्य किये। सबसे पहले पशु-पक्षियों की हत्या पर रोक लगा दी गई। इसके बाद उसने अपने साम्राज्य तथा विदेशी राज्यों में भी मनुष्यों तथा पशुओं के चिकित्सा की अलग-2 व्यवस्था करवाई गई।7वें स्तंभ-लेख में अशोक हमें बताता है, कि मार्गों में मेरे द्वारा वट-वृक्ष लगाये गये। विश्राम गृह बनवाये गये। मनुष्य तथा पशु के उपयोग के लिये प्याउ चलाये गये………. मैंने यह इस अभिप्राय से किया है, कि लोग धम्म का आचरण करें।
  • धर्मलिपियों का खुदवाना- धर्म के प्रचार के लिये अशोक ने विभिन्न शिलाओं एवं स्तंभों के ऊपर उसके सिद्धांतों को उत्कीर्ण करवाया। ये लेख उसके विशाल साम्राज्य के प्रत्येक कोने में फैले थे। इनके दो उद्देश्य थे- 1) पाषाणों पर खुदे होने से ये लेख चिरस्थायी होगें 2.) उसके परवर्ती पुत्र-पौत्रादि प्रजा के भौतिक एवं वैतिक लाभ के लिये उनका अनुसरण कर सकेंगे।इन लेखों में धर्म के उपदेश एवं शिक्षायें लिखी होती थी। इनकी भाषा संस्कृत न होकर पाली थी और यह उस समय आम जनता की भाषा थी।
  • विदेशों में धर्म-प्रचारकों को भेजना- अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ विदेशों में प्रचारकों को भेजा। दूसरे तथा तेरहवें शिलालेख में वह उन देशों के नाम गिनाता है, जहां उसने अपने दूत भेजे थे। इनमें दक्षिणी सीमा पर स्थित राज्य चोल, पांड्य, केरलपुत्त एवं ताम्रपर्ण (लंका) बताये गये हैं। 13 वें शिलालेख में पांच यवन राजाओं के नाम मिलते हैं, जिनके राज्यों में उसके धर्म प्रचारक गये थे-

5 यवन राजा निम्नलिखित हैं-

  1. अंतियोक (सीरियाई नरेश)-अंतियोक सीरिया का राजा एन्टियोकस द्वितीय थियोस (ई.पू.261-246 ) था।
  2. तुरमय (मिस्री नरेश)- तुरमय मिस्र का शासक टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस (ई.पू.285-247) था।
  3. अंतिकिनि (मेसीडोनियन राजा)-अंतिकिन, मेसीडोनिया का एन्टिगोनस गोनाटास (ई.पू. 276-239)था।
  4. मग (एपिरस )-मग से तात्पर्य सीरियाई नरेश मगस (ई.पू. 300-250 ) से है।
  5. अलिकसुंदर (सिरीन)- अलिकसुंदर के बारे जानकारी प्राप्त नहीं है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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