प्राचीन भारतइतिहास

नासिक की (पांडव लेनी) गुफाओं का वर्णन

नासिक गोदावरी नदी तट पर स्थित एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल था। यहाँ कुल 17 गुफायें खोदी गयीं, जिनमें एक चैत्यगृह तथा शेष 16 विहार गुफायें हैं। प्रारंभिक विहार हीनयान मत से संबंधित हैं। सबसे प्राचीन छोटे आकार का है। इसका भीतरी मंडप वर्गाकार है। इसके तीन ओर दो-2 चौकोर कक्ष बने हैं। बाहरी मुखमंडप में अठपहलू दो स्तंभ बने हुए हैं। गुहा में अंकित एक लेख से पता चलता है, कि सातवाहन नरेश कृष्ण (ई.पू. दूसरी शती.) ने इसका निर्माण करवाया था।

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तीन बङे गुहा विहार क्रमशः नहपान, गौतमीपुत्र शातकर्णि तथा यज्ञश्री शातकर्णी के समय के हैं। गौतमीपुत्र के विहार में 18 कमरे हैं। इसके बरामदे में छः अलंकृत स्तंभ हैं। जिनके शीर्ष पर वृषभ, अश्व, हाथी आदि पशुओं की आकृतियां बनी हैं। यज्ञश्री के विहार का विशाल मंडप 61 फुट लंबा है। भीतर तथा बाहर की ओर इसका विस्तार क्रमशः 44 फुट तथा 37 फुट है। इसके तीन 8 कक्ष बनाये गये हैं।

मंडप के पीछे गर्भगृह तथा उसके सम्मुख दो अलंकृत स्तंभ बनाये गये हैं। इसी में आसीन मुद्रा में बुद्ध की एक बङी प्रतिमा भी उत्कीर्ण हैं, जिनके अगल-बगल अनुचरों की आकृतियां हैं। यहाँ अंकित एक लेख के अनुसार इस गुहा का निर्माण वासु नामक किसी महिला ने करवाया था। वह संभवतः यज्ञश्री के सेनापति की पत्नी थी।

नासिक की अन्य गुफायें महायान मत से प्रभावित हैं।

नासिक गुहा विहारों में बना एकांकी चैत्य संभतः ईसा पूर्व पहली शताब्दी के मध्य उत्कीर्ण करवाया गया था। इसके भीतरी मंडप में सीधे स्तंभ लगे हैं। तथा दुतल्ला मुखमंडप वास्तु कला का सुंदर नमूना प्रस्तुत करता है। नीचे के तल्ले में गोल प्रवेश-द्वार तथा ऊपरी तल्ले में बङा झरोखा बनाया गंया है। यहाँ उत्कीर्ण लेखों में दानकर्ताओं के नाम दिये गये हैं।

मंडप के चौकोर स्तंभों पर चौकोर अंडभाग के ऊपर अत्यंत सुंदर एवं कलात्मक मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी हैं, तथा स्तंभों को नीचे पूर्ण कुंभों में बारीकीके साथ नियोजित किया गया है।

नासिक चैत्यगृह को पाण्डुलेण कहा जाता है। इसमें एक संगीतशाला भी बनाई गयी है। चैत्य के प्रवेश द्वार की परिष्कृत कला से यह सूचित होता है कि इसका निर्माण अत्यंत निपुण कलाकारों द्वारा किया गया था।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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