प्राचीन भारतइतिहाससिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन तथा हङप्पा सभ्यता से जुङे प्रश्न(2600ई.पू. से1800ई.पू.)

हङप्पाई लोगों का धार्मिक  (religious) जीवन – सिंधु घाटी से मिले ताम्र-लेखों, पत्थर की मूर्तियों, मोहरों तथा मिट्टी की मूर्तियों के अध्ययन से सिंधु घाटी के लोगों के धर्म के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त हुई है। इन लोगों का धार्मिक जीवन प्रकृतीवादक(प्राकृतिक शक्तियों में विश्वास) था। ये लोग एकेश्वरवादी(संपूर्ण सृष्टि का एक ही पालनकर्ता) नहीं थे। इनके धार्मिक विचार लौकिक तथा भौतिक उद्येश्यों से प्रेरित थे। इस सभ्यता में मंदिर के साक्ष्य नहीं मिलते । सैंधव लोग संतान प्राप्ति, फसल की प्राप्ति, धन-धान्य की प्राप्ति आदि के लिए पूजा करते थे।ये लोग मोक्ष प्राप्ति में विश्वास नहीं करते थे। 

लोथल तथा कालीबंगा से अग्निवेदिकाएं मिली हैं। पारलौकिक(मरने के बाद का ) में विश्वास करते थे। उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं कि – मृत व्यक्ति के दाह संस्कार में दैनिक उपभोग की वस्तुएं मिली हैं। हङप्पाई लोग स्वास्तिक चिन्ह का भी प्रयोग करते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सैंधव लोगों का धार्मिक जीवन उस समय की सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार संचालित था। वर्तमान धार्मिक  जीवन की तरह पूर्णतः विकसित नहीं था। कई मुहरों पर पेङ-पौधे उत्कीर्णित हैं,मान्यतानुसार प्रकृति की पूजा के संकेत मिलते हैं।मुहरों पर बनाए कुछ जानवर -जैसे कि एक सींग वाला जानवर जिसे, एकश्रृंगी कहा जाता है कल्पित लगता है। कुछ मुहरों पर एक आकृति जिसे  पालथीमार कर योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया हैऔर कभी-कभी जिसेजानवरों से घिरा दिखाया गया है, को आद्य शिव, अर्थात हिंदू  धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का आरंभिक रूप की संज्ञा दी गई है। इसके अलावा पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है। लिंग ( उस परिष्कृत पत्थर को कहा जाता है जिसकी पूजा भगवान शिव के रूप में होती है)। कुछ नारी मृण्मूर्तियाँ भी मिली हैं जो आभूषणों से लदी हुई हैं। इन्हें मातदेवी की संज्ञा दी गई थी।

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प्रश्न  – कथन  – हङप्पा सभ्यता में धर्म की विविध विशेषताएँ दिखती हैं। 

         कारण  – हङप्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।

उत्तर – हङप्पा सभ्यता से नगरीय सभ्यता के अनुकूल विभिन्न प्रकार के धर्मों की सभ्यता की जानकारी प्राप्त होती है। दोनों कथन सही हैं। तथा व्याख्या हो रही है।

व्हीलर के अनुसार –सिंधु -धर्म ईसा पू. 3शता.  में एशिया में प्रचलित धार्मिक रीतियों का ही मिश्रित रूप था जिसमें बाद के हिन्दू -धर्म की कुछ रीतियाँ भी प्रवेश पा गई थी।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन से संबंधित  महत्वपूर्ण तथ्य

  • हङप्पा से प्राप्त एक मोहर पर  एक स्री का चित्र अंकित है, जिसके गर्भ से पौधा निकला हुआ है। इससे प्रतीत होता है की हङप्पाई लोग मातृदेवी की पूजा करते थे।
  • कुबङवाला बैल का चित्रांकन मोहरों पर अधिक मिलता है तथा एकश्रृंगी बैल का चित्र भी मिलता है। जो पशुपूजा की ओर संकेत करते हैं।
  • कुछ मिट्टी की मोहरों तथा बर्तनों पर – पीपल,बबूल, नीम आदी वृक्षों के चित्र मिलते हैं । पीपल के वृक्ष को देवता के रूप में पूजा जाता था। इससे पता लगाया जा सकता है का ये लोग वृक्ष पूजा करते थे।
  • लोथल से प्राप्त मृदभांडों पर सर्प के चित्र अंकित हैं  यहाँ के लोग सर्प पूजा करते थे।
  • जनन अंगों की पूजा- योनी और लिंग तथा उर्वरता की पूजा की जाती थी।
  • जल पूजा –   मोहनजोदङो से प्राप्त महास्नानागार से जल के धार्मिक महत्व का पता चलता है।
  • प्रेतवाद- किसी अनिष्ट की आशंका से बचने के लिए आत्माओं की पूजा की जाती थी।
  • जादू-टोने- कालीबंगा से प्राप्त एक कंकाल की खोपङी में छेद मिले हैं, इसी से यह बात सिद्ध होती है कि हङप्पाई लोग पुन: जीवन में विश्वास करते थे।
  • अग्नि पूजा- हवन कुण्ड(अग्निवेदिकाएँ) लोथल तथा कालीबंगा से अग्निकुण्ड के साक्ष्य मिले हैं।
  • मोहनजोदङो से स्वास्तिक चिन्ह प्राप्त हुआ है।मोहनजोदङो से एक मोहर मिली है जिस पर बैल की

आकृति है , इस बैल की रक्षा एक शर्प कर रहा है तथा यह बैल एक शत्रु से लङ रहा है इस शत्रु की आकृति मनुष्यों की सी है। इस बैल का उस शत्रु से लङने का उद्येश्य यह है कि वह शत्रु को पवित्र वृक्ष के निकट आने से रोक सके। यह मनुष्य शायद कोई दैत्य होगा जिसको हराने की कोशिश की जा रही है।

सिंधु सभ्यता के लोगों का यंत्र, मंत्र तथा तंत्र में विश्वास था इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि वे दैत्यों से डरते थे। वहाँ के लोग योग का अभ्यास भी किया करते थे।

व्हीलर ने लिखा है कि  – सिंधु घाटी के लोगों के निकट जल की महत्ता और दैवीकरण का अत्यधिक महत्व था। मोहनजोदङो का विशाल जलकुण्ड स्नान की विशेष व्यवस्था और नमर भर में नालियों का बिछा जाल उपर्यक्त तथ्य को प्रमाणित करता है। स्नान , विधि-विधानों आदि द्वारा अपने आपको पवित्र करने की प्रथा वहाँ के लोगों के धार्मिक जीवन का आवश्यक अंग रही होगी।

हङप्पा सभ्यता से संबंधित महत्तवपूर्ण प्रश्न

Q .1. हङप्पा सभ्यता का सर्वाधिक मान्यता प्राप्त काल कब से कब तक माना जाता है ?

ANS.  2500ई.पू. से 1750ई.पू.

Q.2. सिंध घाटी की सभ्यता निम्नलिखित में से किस सभ्यता के समकालीन नहीं थी ?

A) मिस्र की सभ्यता

B) मेसोपोटामिया की सभ्यता

C)चीन की सभ्यता

D)ग्रीक की सभ्यता                               ANS.    (D)    ग्रीक की सभ्यता

Q. 3. सिंधु घाटी सभ्यता में घोङे के अवशेष कहां से मिले हैं ?

A)सुरकोटदा

B)वंशावली

C)मांडा

D)कालीबंगा                                                    ANS. ( A)     सुरकोटदा

Q. 4. सिंधु घाटी स्थल कालीबंगन किस प्रदेश में है ?

A)राजस्थान में

B)गुजरात में

C)उत्तरप्रदेश में

D)मध्यप्रदेश में                                                      ANS. (A)  राजस्थान में

Q.5.निम्नलिखित में से किस पदार्थ का उपयोग हङप्पा काल की मुद्राओं के निर्माण के रूप में किया जाता था ?

A)सेलखङी

B)कांसा

C)ताँबा

D)लौहा                                                                               ANS. (A) सेलखङी

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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