इतिहासप्राचीन भारतराजपूत काल

खजुराहो के मंदिर बुंदेलखंड में स्थित हैं, जो चंदेलकालीन हैं

बुंदेलखंड का प्रमुख स्थल मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो( khajuraaho ) नामक स्थान है। यहाँ चंदेल राजाओं के समय में 9वीं शता. से लेकर 12वीं शता. तक अनेक सुंदर तथा भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया गया। ये पूर्व मध्ययुगीन वास्तु एवं तक्षण कला के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

खजुराहो में 25 मंदिर आज भी विद्यमान हैं। इनका निर्माण ग्रेनाइट तथा लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है। ये शैव, वैष्णव तथा जैन धर्मों से संबंधित हैं।

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खजुराहो के मंदिरों की विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

  • मंदिरों का निर्माण ऊँची चौकी पर हुआ है, जिसके ऊपरी भाग को अनेक अलंकरणों से सजाया गया है।
  • चौकी या चबूतरे पर गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा अर्धमंडप हैं। सभी पर शिखर एक निश्चित रेखा में बने हैं, जो क्रमशः छोटे होते गये हैं। इन्हें आरोहवरोह कहा गया है।
  • शिखरों पर छोटे-छोटे शिखर संलग्न हैं, जिन्हें उरुश्रृंग कहा जाता है। ये छोटे आकार के मंदिर के ही प्रतिरूप हैं। उरुश्रृंगों से मंदिर की आकृति और भी सुंदर हो गयी है।
  • सर्वोच्च शिखर के ऊपर आमलक, स्तूपिका तथा कलश स्थापित हैं। दीवारों में बनी खिङकियों में छोटी-छोटी मूर्तियाँ रखी गयी हैं। गर्भगृह के ऊपर उत्तुंग शिखर हैं।
  • मंदिर आकार में बहुत बङे नहीं हैं तथा उनके चारों ओर दीवार भी नहीं बनाई गयी है।
  • प्रत्येक मंदिर में मंडप, अर्धमंडप तथा अंतराल मिलते हैं।
  • कुछ मंदिरों में विशाल मंडप बने हैं, जिससे उन्हें महामंडप कहा जाता है।
  • मंदिरों के प्रवेश-द्वार को मकर-तोरण कहा गया है, क्योंकि उनके ऊपर मकर मुख की आकृति बनी हुई है।
  • कुछ मंदिरों में गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ भी बनाये गये हैं।
  • गर्भगृह के प्रवेश-द्वार पर भी काफी अलंकरण मिलते हैं।
  • मंदिरों के सभी अंग एक दूसरे के साथ अविच्छिन्न रूप से संबद्ध हैं, जिसके फलस्वरूप खजुराहो के मंदिर एक ऐसे पर्वत के समान लगते हैं, जिस पर छोटी-बङी कई श्रेणियाँ होती हैं।

विकास क्रम की दृष्टि से खजुराहो मंदिरों को कई समूहों में बांटा गया है। वामन तथा आदिनाथ मंदिर प्रारंभिक अवस्था के सूचक हैं। दोनों की बनावट एक जैसी है। गर्भगृह की दीवारें सुंदर ढंग से गढी गयी हैं। तथा खोदी गयी हैं। आदिनाथ मंदिर का शिखर, वामन मंदिर से ऊँचा है। दूसरे समूह के मंदिर जगदंबा, चतुर्भुज, पार्श्वनाथ, विश्वनाथ तथा अंतिम सीढी पर कंडारिया महादेव मंदिर है। इनकी बनावट और रचना शैली मूलतः समान है। अंतिम चार के गर्भगृह की परिधि में प्रदक्षिणापथ से जुङा हुआ मंडप है। इसमें तीन ओर वातायन बने हैं। विश्वनाथ तथा चतुर्भुज मंदिर एक जैसे हैं। इनके प्रत्येक कोने पर पूरक छोटे मंदिर निर्मित हैं, जिसके कारण इसे पंचायतन कहा जाता है। जगदंबा मंदिर में प्रदक्षिणापथ नहीं है। जैन मंदिरों की योजना भी बहुत कुछ इसी प्रकार की है।

कंडारिया महादेव का मंदिर

खजुराहो के मंदिरों में कन्डारिया महादेव मंदिर सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है, जिस पर चढने के लिये सीढियां बनाई गयी हैं। प्रवेशद्वार काफी अलंकृत है। इसमें चौकोर अर्धमंडप तथा वर्गाकार मंडप है। मंडप के बाजू का भाग गर्भगृह के चारों ओर विस्तृत है तथा बारजे के वातायन से जुङा हुआ है। गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा शिखर तथा कई छोटे-छोटे शिखर बनाये गये हैं। इनकी दीवारों पर बहुसंख्यक मूर्तियां उत्कीर्ण मिलती हैं। एख सामान्य गणना के अनुसार यहाँ खुदे हुए रूपचित्रों की संख्या नौ सौ के लगभग है। इनमें मकर, विद्याधर, संगीतज्ञ, बाघ तथा कामासक्त मिथुन मूर्तियाँ दिखाई देती हैं। बाह्म भाग में प्रेमी युगल, देवी-देवता, देवदूत आदि अंकित हैं। सभी सजीव एवं आकर्षक हैं। मंदिर के गर्भगृह में संगमरमर का शिवलिंग स्थापित किया गया है। इस प्रकार कंडारिया महादेव का मंदिर खजुराहो के मंदिरों का सिरमौर है।

जैन मंदिरों में पार्श्वनाथ मंदिर प्रसिद्ध है। इसकी बाहरी दीवारों पर जैन मूर्तियों की तीन पंक्तियाँ खोदी गयी हैं। वैष्णव मंदिरों में चतुर्भुज मंदिर उल्लेखनीय हैं। इसका वास्तु विन्यास कन्डारिया महादेव जैसा ही है। यहाँ के कुछ अन्य मंदिर इस प्रकार हैं- चौंसठ योगिनी, ब्रह्मा, लालुआँ महादेव, लक्ष्मण, विश्वनाथ मंदिर आदि। ये सभी वास्तु कला के अत्युत्कृष्ट उदाहरण हैं।

वास्तु कला के समान खजुराहो के मंदिर अपनी तक्षण-कला के लिये भी प्रसिद्ध हैं। इनकी भीतरी तथा बाहरी दीवारों को बहुसंख्यक मूर्तियों से सजाया गया है। गुम्बददार छतों के ऊपर भी अनेक चित्र उत्खचित हैं। यद्यपि यहाँ की मूर्तियाँ उङीसा की मूर्तियों की भाँति सुदृढ नहीं हैं, तथापि उनसे कहीं अधिक सजीव तथा आकर्षक प्रतीत होती हैं।

खजुराहो मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ-साथ कई दिग्पालों, गणों, अप्सराओं, पशु-पक्षियों आदि की बहुसंख्यक मूर्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। अप्सराओं या सुंदर स्त्रियों की मूर्तियों ने यहाँ की कला को अमर बना दिया है। ये मंदिर के जंघाओं, रथिकाओं, स्तंभों, दीवारों आदि पर उत्कीर्ण हैं। उन्हें अनेक मुद्राओं और हाव-भावों में प्रदर्शित किया गया है। कहीं वे देवताओं के पार्श्व में तथा कहीं हाथों में दर्पण, कलश, पद्म आदि लिये हुए दिखाई गयी हैं। कहीं अप्सराओं के रूप में वे विभिन्न मुद्राओं में नृत्य कर रही हैं। पैर से काँटा निकालती हुई नायिका, अलस नायिका, माता और पुत्र सहित बहुसंख्यक मिथुन आकृतियाँ खोद कर बनायी गयी हैं, जो अत्यंत कलापूर्ण एवं आकर्षक हैं। कुछ मूर्तियाँ अत्यंत अश्लील हो गयी हैं, जिन पर संभवतः तांत्रिक विचारधारा का प्रभाव लगता है।

इस प्रकार समग्र रूप से खजुराहो के मंदिर अपनी वास्तु तथा तक्षण दोनों के लिये अत्यंत प्रसिद्ध हैं। के.जी. वाजपेयी के शब्दों में प्रकृति और मानव की ऐहिक सौंदर्यराशि को यहाँ के मंदिरों में शाश्वत रूप प्रदान कर दिया गया है। शिल्प श्रृंगार का इतना प्रचुर तथा व्यापक आयाम भारत के अन्य किसी कला केन्द्र में शायद ही देखने को मिले।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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